ये पंक्तियां लिखने तक अयोध्या के कारण कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण हो गई उत्तर प्रदेश की फैजाबाद लोकसभा सीट से भाजपा की हार को अनेक कोणों से व्याख्यायित व विश्लेषित किया जा चुका है. फिर भी एक कोण छूट गया लगता है.
यह कि उसकी इस हार ने साफ कर दिया है कि सत्तारूढ़ दलों द्वारा अस्मिताओं की राजनीति, धार्मिक-सांप्रदायिक भावनाओं के अंधाधुंध दोहन के रास्ते मतदाताओं पर लगातार ‘इमोशनल अत्याचार’, जमीनी हकीकतों को झुठलाने वाली, असंतुलित व अदूरदर्शी विकास योजनाओं के लिए सरकारी खजाना खोले रखने की ‘दरियादिली’ और संवैधानिक मूल्यों को मुंह चिढ़ाकर प्रधानमंत्री तक को ‘धर्माधीश’ बना डालने का ‘शातिराना’ हमेशा जीत की गारंटी नहीं होता.
तिस पर विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा में इस बाबत जो कुछ कहा, उसे माने तो इस गारंटी के न होने से भाजपा भी अनजान नहीं थी.
राहुल के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फैजाबाद से चुनाव लड़ने का अपना ‘अरमान’ इसलिए पूरा नहीं कर पाये क्योंकि उनकी ओर से वहां जो दो चुनावपूर्व सर्वे कराए गए, दोनों का निष्कर्ष था कि वे हार सकते हैं. इसके बाद विवश होकर वे अपने पुराने चुनाव क्षेत्र वाराणसी से ही चुनाव लड़े और किसी तरह ‘बच निकले.’
शेखचिल्ली का सपना या…?
लेकिन उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा कमीशन किए गए भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान (जिसका मुख्यालय अहमदाबाद में स्थित है) के एक अध्ययन के निष्कर्षों से लगता है कि भाजपा की उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को यह बात अभी भी ठीक से समझ में नहीं आई है.
अध्ययन के अनुसार यह सरकार 85,000 करोड़ रुपये के निवेश से वर्ष 2033 तक अयोध्या को ‘दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शहरों में से एक’ बनाने को ‘तैयार’ है. भले ही उसके द्वारा अयोध्या में निर्मित राम पथ वगैरह की पहली ही बारिश में हुई बदहाली के मद्देनजर उसका यह तैयार होना शेखचिल्ली के सपने जैसा नजर आता हो, इसे लेकर वह किसी असमंजस या संकल्प-विकल्प में फंसी नहीं दिखती.
उसकी अब तक की रीति-नीति के मद्देनजर यह तो कोई बताने की बात ही नहीं है कि उसके निकट ‘अयोध्या को सर्वश्रेष्ठ’ बनाने की तैयारियों का एक ही अर्थ है: हिंदुत्ववादियों के अस्मिताबोध की तुष्टि के प्रयत्न और तेज करना.
आगे बढ़ने से पहले आंक लेना बेहतर होगा कि 85,000 करोड़ रुपयों की यह धनराशि कितनी बड़ी है. और इसके लिए किसी विशेषज्ञता की जरूरत नहीं है. सामान्य ढंग से इसे यों आंक सकते हैं कि गोवा के वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में ऋण अदायगी को छोड़कर कुल 24,571 करोड़ रुपये का व्यय ही निर्धारित था, जबकि मणिपुर के बजट में यह व्यय 30,312 करोड़ रुपये था. इसी तरह मेघालय के उक्त वित्तवर्ष का कुल बजट खर्च 21,034 करोड़ रुपये, मिजोरम का 12,767 करोड़ रुपये, नगालैंड का 16,904 करोड़ रुपये, त्रिपुरा का 26,726 करोड़ रुपये और हिमाचल प्रदेश के बजट का कुल बजट खर्च 47,296 करोड़ रुपये निर्धारित था.
साफ है कि अयोध्या के प्रति ‘दरियादिल’ योगी सरकार उसकी तस्वीर बदलने के लिए इन राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के वार्षिक बजट व्यय से दोगुनी-तिगुनी धनराशि का निवेश कर या करा रही है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्र सरकार द्वारा अयोध्यावासियों के लिए घोषित ‘सौगातें’ इसके अतिरिक्त हैं.
तो नया सवेरा होता!
सोचिए जरा: अयोध्या को ‘दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शहरों में से एक’ बनाने के बहाने इतनी धनराशि हिंदुत्ववादियों के अस्मिताबोध को तुष्ट करने पर खर्च करने के बजाय अयोध्या के निवासियों के जीवन की दुश्वारियां दूर करने और उसका स्तर सुधारने के लिए खर्च की जाती तो कितना अच्छा होता!
तब वहां जो प्रति व्यक्ति वार्षिक आय उत्तर प्रदेश के औसत और 57 हजार दोनों से कम है, वह बढ़ती और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार, वहां के जो पचास प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं, उनके जीवन में भी नया सवेरा आता. तब इस सवेरे के लिए वे पर्यटन व तीर्थाटन आधारित ‘उद्योगों’ से बेहिस उम्मीदें रखने को मजबूर न होते. बड़ी संख्या में अयोध्यावासी चौड़ी सड़कों के लिए अपने घरों, दुकानों व प्रतिष्ठानों से विस्थापित भी नहीं होते, न ही रोजी-रोटी से महरूम. न उनके समक्ष ‘होगा कठिन यहां भी जीना, दांतों आ जाएगा पसीना’ जैसे हालात पैदा होते और न उनमें असंतोष भड़कता.
लेकिन इसके उलट इस धर्मनगरी के विकास के सरकारी मंसूबे का ज्यादातर तकिया इस संभावना पर है कि यह जल्दी ही पर्यटन नगरी में बदल जाएगी और पर्यटकों, श्रद्धालुओं व तीर्थयात्रियरें के रेलों पर रेले आएंगे तो अयोध्यावासियों की चांदी हो जाएगी. लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद उसके क्रुद्ध समर्थकों ने इसी के मद्देनजर निर्माणाधीन भव्य मंदिर में भगवान राम के दर्शन-पूजन के लिए आने वालों का ‘आह्वान’ किया था कि वे अयोध्या आएं तो उसके ‘नाशुक्रों’ को मजा चखाने के लिए वहां चवन्नी भी खर्च न करें.
शायद उन्हें मालूम नहीं था कि अयोध्या में संचालित कई हवाहवाई सरकारी योजनाओं के गुब्बारे लोकसभा चुनाव से पहले ही फूटने लगे थे और सरकार समर्थक समाचार व प्रचार माध्यम उनमें हवा भरने की कोशिशें करते थे, तो अयोध्यावासियों में खीझ भर जाती थी. तब उनमें से अनेक को मशहूर शायर दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां याद आने लगती थीं: तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं. मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं, मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं.
ढोल फूटे!
ताजा हालात पर लौटें, तो डाॅ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय तक की भूमि लेकर जिस अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से पहले युद्धस्तर पर निर्मित करके चालू किया गया और पहले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का, फिर महर्षि वाल्मीकि का नाम दिया गया, उसके छह महीने भी नहीं बीते हैं कि वह यात्रियों का टोटा झेलने लगा है. इस कदर कि विमानन कंपनियां नियमित सेवाओं से हाथ खींच ले रही हैं.
22 जनवरी के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से तीन दिन पहले 19 जनवरी, 2024 को अयोध्या व लखनऊ के बीच हेलीकॉप्टर सेवा शुरू करने की उत्तर प्रदेश पर्यटन निगम की घोषणा पर तो अभी तक अमल ही नहीं हो पाया है. निगम का दावा था कि इस सेवा के तहत आठ से अठारह यात्रियों को ले जा सकने में समर्थ तीन हेलीकॉप्टर अयोध्या से लखनऊ के लिए, तीन ही लखनऊ से अयोध्या के लिए प्रतिदिन उड़ान भरेंगे और अवध की इन दोनों राजधानियों के बीच की दूरी 30 से 40 मिनट में तय करेंगे.
पिछले साल भारी ताम-झाम से सरयू में उतारे गए क्रूज का पर्यटक लुभाऊ संचालन भी परवान नहीं ही चढ़ पाया है. कोई साल भर पहले एडवेंचर स्पोर्ट्स क्लब गठित कर सरयू के एक बालूघाट से आरंभ की गई पावर पैराग्लाइडिंग भी, जिसके तहत तेरह सौ रुपये से 15 सौ रुपये लेकर रोजाना सुबह से छह से दस बजे और शाम चार से छह बजे तक पंद्रह मिनट में ‘रामनगरी का आसमान से दीदार’ कराया जाता था, बंद हो गई है. अयोध्या विकास प्राधिकरण के मुताबिक लोग पैराग्लाइंडिंग के प्रति रुचि ही नहीं दिखा रहे थे और उसे संचालित करने वाली कंपनी के लिए अपनी जेब से उसका खर्च बर्दाश्त करना संभव नहीं हो पा रहा था.
प्राधिकरण की प्रस्तावित एयरोसिटी परियोजना भी उससे प्रभावित किसानों के विरोध के कारण रोक देनी पड़ी है.
इतना ही नहीं, इस साल जनवरी में बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों, श्रद्धालुओं व पर्यटकों की आमद से मुनाफे की उम्मीद में होटलों की बड़ी श्रृंखला के सपने तो देखे ही गए थे, प्रदेश सरकार ने नागरिकों को अपने घरों को होम-स्टे में बदल और उनमें आगंतुकों को ठहराकर धनार्जन के लिए भी प्रोत्साहित किया था. तब अनेक नागरिकों ने उसके प्रोत्साहन का लाभ पाने के लिए कर्ज वगैरह लेकर अपने घरों में सुविधाओं के लिए जरूरी निर्माण व सुधार तो कराए ही, होमस्टे के रूप में उनके पंजीकरण की औपचारिकताएं भी पूरी की थीं.
लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद आगंतुक घटने लगे तो होमस्टे वालों की पूछ ही नहीं रह गई और अब वे अपने कर्ज की अदायगी व व्यावसायिक बिजली कनेक्शनों के बिलों की अदायगी को लेकर त्रस्त हैं.
एक ओर ये हालात हैं और दूसरी ओर भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान का अध्ययन कहता है कि अयोध्या में बुनियादी ढांचे, परिवहन व सौंदर्यीकरण सहित 27 ‘प्रमुख’ पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर व्यापक विकास की कई पहल कार्यान्वित हैं. इनमें से कई से जुड़ी परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जबकि दूसरी परियोजनाओं पर तेजी से काम हो रहा है.
परियोजनाओं की प्रकृति
इन परियोजनाओं के नामों पर गौर कर इनकी प्रकृति को आसानी से समझा जा सकता है: सड़कों व पार्किंग सुविधाओं का उन्नयन, रेलवे लाइनों का विस्तार, रेल व बस स्टेशनों का आधुनिकीकरण, हवाई अड्डे का विकास, गिटार घाट, मंदिर संग्रहालय, मोम संग्रहालय, संध्या सरोवर का विस्तार, अयोध्या के बाजार का पुनरुद्धार, जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण के माध्यम से अनेक धार्मिक स्थलों व मंदिरों का कायाकल्प, 25 पौराणिक स्थलों व 39 चौराहों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, सरयू पर नदी परिभ्रमण के साथ जलक्रीड़ा तथा ध्वनि व प्रकाश शो, सरयू के घाटों के किनारे शौचालयों की स्थापना और परिक्रमा मार्ग का विकास।
इनके अतिरिक्त अनेक भाषाओं में मौसम का पूर्वानुमान, सौर ऊर्जा से चलने वाली नावों का संचालन, 28 भाषाओं में बहुभाषी गाइड बोर्ड, हेलीकॉप्टर सेवाएं, ई-कार्ट और ह्वीलचेयर सुविधाएं, रेलवे ओवरब्रिज, लक्ष्मणपथ का निर्माण, एक ठोस अपशिष्ट उपचार संयंत्र की स्थापना, कैफेटेरिया, ओपन थिएटर सुविधाएं, सफाई कर्मचारियों की तैनाती और स्ट्रीट लाइटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना. साथ ही दुनिया की सबसे लंबी सौर स्ट्रीट लाइट परियोजना.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अयोध्या के नेता सूर्यकांत पांडेय कहते हैं कि इस सबका एकमात्र अर्थ यही है कि योगी सरकार ने अभी भी अयोध्या से ‘और’ राजनीतिक लाभ की उम्मीद नहीं छोड़ी है, हालांकि ओडिशा में भाजपा सरकार के शपथग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जयश्री राम’ की जगह ‘जय जगन्नाथ’ कहकर गोलपोस्ट बदलने के संकेत दे दिए हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)