यूपी: मुस्लिम शख़्स की कथित लिंचिंग के दावे को लेकर पत्रकारों के ख़िलाफ़ एफआईआर का विरोध

बीते 04 जुलाई को यूपी के शामली में कबाड़ बेचने वाले फ़िरोज़ की कथित मारपीट के बाद मौत हो गई थी, जिसे कुछ पत्रकारों ने लिंचिंग बताया था. पुलिस ने घटना को लेकर ग़ैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज करने के साथ ही दो पत्रकारों समेत पांच लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश पुलिस ने शामली जिले में हुई एक मुस्लिम कबाड़ बेचने वाले व्यक्ति फ़िरोज़ की हत्या के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट करने को लेकर दो मुस्लिम पत्रकारों सहित पांच व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है, जिसकी व्यापक आलोचना हो रही है.

आरोपी बनाए गए लोगों का दावा था कि यह मॉब लिंचिंग का मामला है. जबकि पुलिस ने फिरोज की कथित हत्या के लिए तीन व्यक्तियों (सभी हिंदू) के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. हालांकि घटना के चार दिन बाद भी कुछ सवाल अनसुलझे हैं, जैसे कि मामला हत्या के लिए नहीं बल्कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 105 (गैर इरादतन हत्या) के तहत दर्ज किया गया है.

पुलिस ने चेतावनी दी है कि वे उन सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई करेंगे, जो उनके बताए घटनाक्रम से अलग बात या लिंचिंग के दावे करेंगे. हालांकि, यह असामान्य बात है कि घटना होने के इतने दिनों के बाद भी जिले के किसी भी वरिष्ठ अधिकारी ने घटना पर वीडियो बयान जारी नहीं किया है, जैसा कि पुलिस प्रक्रिया के तहत किया जाना चाहिए था.

बीते शनिवार (6 जुलाई) को शामली पुलिस ने पत्रकार जाकिर अली त्यागी, वसीम अकरम त्यागी तथा तीन अन्य- आसिफ राना, सैफ इलाहाबादी और अहमद रजा खान- के खिलाफ सोशल मीडिया साइट एक्स पर फिरोज की मौत को मॉब लिंचिंग का मामला बताने के लिए एफआईआर दर्ज की है. उन पर बीएनएस की धारा 196 और 353 के तहत धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य और सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देने वाले बयानों के आरोप में मामला दर्ज किया गया है.

इसके एक दिन बाद 7 जुलाई को पुलिस ने ‘हिंदुस्तानी मीडिया’ के एक अज्ञात पत्रकार के खिलाफ समान आरोपों में एक और एफआईआर दर्ज की है. बताया गया है कि ‘हिंदुस्तानी मीडिया’ एक सोशल मीडिया चैनल है.

चार जुलाई को हुई थी फिरोज की मौत

बताया गया है कि फिरोज के साथ मारपीट की घटना 4 जुलाई को हुई थी, जिसके बाद उसकी मौत हो गई .

मृतक के भाई और पशु व्यापारी अफजल की लिखित शिकायत पर थाना भवन थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार, फिरोज रात करीब 8 बजे स्थानीय लोगों से कबाड़ का सामान खरीदने शहर के आर्य नगर इलाके में गया था. आर्य नगर में तीन लोगों- धर्मपाल के बेटे पिंकी, पंकज और राजेंद्र- और उनके साथियों ने फिरोज के साथ मारपीट की. एफआईआर में कहा गया है कि अरशद और इकराम नाम के दो लोग उसे घर ले आए, जहां रात करीब 11 बजे उसकी मौत हो गई.

एफआईआर में अफजल ने इस बात का उल्लेख किया है कि उसका भाई ‘कभी-कभी नशा करता था.’

सूत्रों ने बताया कि स्थानीय लोगों के 112 नंबर डायल करने के बाद फिरोज को हमले वाली जगह से पुलिस ने बचाया था. हालांकि घटना 4 जुलाई की देर शाम को हुई थी, लेकिन एक संक्षिप्त एफआईआर 5 जुलाई की दोपहर को दर्ज हुई.

अफजल ने द वायर को बताया कि जैसा आमतौर पर छोटे शहरों में होता है वैसे ही फिरोज भी अपने ठेले पर लाउडस्पीकर लगाकर पुराना या टूटा-फूटा सामान खरीदने निकला था.

अफ़ज़ल ने बताया, ‘वो लोहे के टुकड़े, टिन की चादरें, पुराने मोबाइल फ़ोन और कबाड़ के ऐसे ही सामान उठाता था. लोग बताते हैं कि आरोपियों ने उसके माइक इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई थी. इस पर बहस शुरू हुई और मामला बिगड़ गया. उन्होंने उसे कहा कि कहीं और जाकर ये सब करे और उसे बुरी तरह पीटा.’

अफ़ज़ल उक्त घटना के समय अपने भतीजे की शादी में शामिल होने गए हुए थे.

यह पूछे जाने पर कि क्या फिरोज को मुस्लिम होने के चलते निशाना बनाया गया, उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात पर पूरा यकीन नहीं है. उन्होंने जोड़ा, ‘अल्लाह ही जानता है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया.’

मालूम हो कि फिरोज की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा की गई, जिसमें वे कथित तौर पर कुछ व्यक्तियों द्वारा पीटे जाने के दौरान बाहर ज़मीन पर बैठे हुए दिख रहे हैं, पर तस्वीर से यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि उनके आस-पास कौन लोग थे और यह तस्वीर किस समय ली गई थी.

अफ़ज़ल दावा करते हैं कि स्थानीय लोगों ने हमले का वीडियो बनाया था, लेकिन कोई भी इसे साझा करने को तैयार नहीं था.

अफ़ज़ल से जब पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि यह लिंचिंग का मामला था, तो वो बोले, ‘तस्वीर से यह साफ़ है. अगर मेरे भाई की मौत हमले के बाद लगी चोटों से नहीं हुई, तो फिर उसकी जान कैसे गई?’.

‘जब उसे घर लाया गया, तो उसकी हालत बहुत खराब थी और थोड़ी देर बाद उसने दम तोड़ दिया. और अब वो कह रहे हैं कि पोस्टमार्टम में कोई चोट नहीं मिली है. सिर्फ़ ऊपरवाला ही जानता है कि यह कैसे मुमकिन हो सकता है!’

पुलिस का दावा- शव पर नहीं थे चोट के निशान

शामली के थाना भवन पुलिस स्टेशन के थाना प्रभारी (एसएचओ) राजेंद्र प्रसाद विशिष्ठ ने द वायर को बताया कि शव का विसरा फॉरेंसिक साइंस लैब को भेजा गया है और उसके नतीजे का इंतजार है. जब उनसे पूछा गया कि प्रथमदृष्टया जांच में मौत का क्या कारण सामने आया है, तो उन्होंने कहा कि शव पर किसी भी तरह के चोट के निशान नहीं थे.

अफजल का कहना है कि जब घटना की रात फिरोज को घर लाया गया, तो उन्होंने उसे थोड़ा पानी पिलाने की कोशिश की. ‘लेकिन वह पानी निगल नहीं सका. बगल में एक डॉक्टर रहते हैं, हमने उसे डॉक्टर के पास ले जाने से पहले 10-15 मिनट तक इंतजार किया कि वो कुछ बेहतर हो जाए लेकिन उससे पहले ही उसकी मौत हो गई,’ अफजल ने बताया.

फिरोज की हत्या के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर आक्रोश फैल गया, जहां कई लोगों ने इसे देश में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ते घृणा अपराध बताया था. हालांकि, शामली पुलिस ने एक नोट जारी कर मॉब लिंचिंग के दावे को खारिज कर दिया.

पुलिस के अनुसार, 4 जुलाई की रात को फिरोज कथित तौर पर नशे की हालत में जलालाबाद के आर्य नगर में राजेंद्र नामक व्यक्ति के घर में घुस गया था. शामली पुलिस ने कहा, ‘दोनों पक्षों के बीच हाथापाई हुई.’ हालांकि, पुलिस ने यह नहीं बताया कि फिरोज शाम के व्यस्त समय में किसी के घर में घुसकर कथित तौर पर मारपीट क्यों कर रहे थे.

पुलिस ने कहा कि हाथापाई के बाद फिरोज के परिवार वाले उन्हें घर ले गए, जहां बाद में उनकी मौत हो गई. हैरान करने वाली बात यह है कि हालांकि पुलिस ने माना कि फिरोज और दूसरे पक्ष के बीच हाथापाई हुई थी, जिसके कारण कुछ घंटों बाद उसकी मौत हो गई, लेकिन उन्होंने दावा किया कि उसके शरीर पर कोई गंभीर चोट नहीं थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जिसे मीडिया या पीड़ित के परिवार के सदस्यों के साथ साझा नहीं किया गया है, का हवाला देते हुए पुलिस ने कहा कि उसके शरीर पर ‘कोई गंभीर चोट’ नहीं पाई गई. पुलिस ने कहा, ‘मौत किसी चोट के कारण नहीं हुई.’

पुलिस ने जोड़ा कि उनका विसरा सुरक्षित रखा गया है.

शामली पुलिस ने कई बयान जारी किए हैं, जिनमें इस बात पर जोर दिया गया है कि यह घटना हिंदू समुदाय के आरोपियों द्वारा मुस्लिम शख्स की लिंचिंग का मामला नहीं है.

घटना को मॉब लिंचिंग बताने वाले सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ बार-बार कार्रवाई की धमकी देते हुए पुलिस ने आरोप लगाया है कि घटना को सांप्रदायिक रंग देते हुए ‘भ्रामक’ ट्वीट के जरिये ‘सांप्रदायिक नफरत’ फैलाने की कोशिश की जा रही है.

पुलिस ने कहा कि ‘बिना किसी जमीनी तथ्य पर विचार किए सांप्रदायिक नफरत भड़काने के इरादे से पोस्ट करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.’

इसी बीच, 5 जुलाई को स्थानीय लोगों ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया.

थाना भवन से भाजपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल के विधायक अशरफ अली खान ने 5 जुलाई को फिरोज की ‘क्रूर पिटाई’ के बाद ‘हत्या’ को ‘गंभीर अपराध’ बताया. खान ने पुलिस और प्रशासन से आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने और उन्हें सजा देने की अपील की.

​​हालांकि, दो दिन बाद खान का सुर बदला और उन्होंने कहा कि ‘इस घटना को मॉब लिंचिंग तौर पर देखना सही नहीं है.’

खान ने कहा, ‘हमारे शहर में सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल है. मैं प्रशासन से मांग करता हूं कि वह घटना से जुड़े सभी पहलुओं पर नजर रखते हुए उचित कार्रवाई करे. मैं शहर के लोगों और देशवासियों से अपील करता हूं कि वे घटना के संबंध में सोशल मीडिया साइट्स पर भड़काऊ और भ्रामक पोस्ट डालने से बचें.’

मीडिया संगठनों ने किया एफआईआर का विरोध

इसी बीच, सोमवार को 90 डिजिटल मीडिया संस्थानों और स्वतंत्र पत्रकारों के संगठन डिजीपब ने मांग की है कि उत्तर प्रदेश पुलिस मामले में नामजद किए गए पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर को तुरंत रद्द करे.

डिजीपब ने एक बयान में कहा, ‘सार्वजनिक हित में सार्वजनिक जानकारी साझा करने वाले पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना आपराधिक कानूनों का गंभीर उल्लंघन और दुरुपयोग है और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है, जिसका भयावह असर होता है.’

वहीं, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और इंडियन वीमेन प्रेस कोर ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए पत्रकारों के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की है और कहा है कि सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी को जनता तक पहुंचना पत्रकारिता है. इस तरह पत्रकारों के खिलाफ बीएनएस का इस्तेमाल संविधान के अनुच्छे 19 (ए) का स्पष्ट उल्लंघन है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)