नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय ने दिल्ली, पंजाब और पश्चिम बंगाल को समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत मिलने वाले फंड को रोक दिया है, क्योंकि वे प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम-श्री) योजना में भाग लेने के लिए अनिच्छुक हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले पांच वर्षों के लिए 27,000 करोड़ रुपये से अधिक के बजट वाली इस योजना के तहत केंद्र को वित्तीय बोझ का 60% और राज्यों को 40% वहन करना है. योजना का उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के कार्यान्वयन को प्रदर्शित करने के लिए कम से कम 14,500 सरकारी स्कूलों को अनुकरणीय संस्थानों में अपग्रेड करना है. राज्यों को शिक्षा मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करके अपनी भागीदारी की पुष्टि करनी होगी.
पांच राज्यों – तमिलनाडु, केरल, दिल्ली, पंजाब और पश्चिम बंगाल – ने अभी तक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. तमिलनाडु और केरल ने अपनी इच्छा जाहिर की है, जबकि दिल्ली, पंजाब और पश्चिम बंगाल ने इनकार कर दिया है, जिसके चलते केंद्र ने उनके एसएसए फंड को रोक दिया है.
तीनों राज्यों को पिछले वित्तीय वर्ष की अक्टूबर-दिसंबर और जनवरी-मार्च तिमाहियों के लिए एसएसए फंड की तीसरी और चौथी किस्त नहीं मिली है, न ही चालू वित्तीय वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही की पहली किस्त मिली है. इस वजह से उन्हें लंबित फंड जारी करने के लिए मंत्रालय को कई पत्र और रिमाइंडर भेजने पड़े हैं.
राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार, दिल्ली को तीन तिमाहियों के लिए लगभग 330 करोड़ रुपये, पंजाब को लगभग 515 करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल को 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का इंतजार है.
अखबार के अनुसार, शिक्षा मंत्रालय ने फंड रोके जाने और राज्यों द्वारा दावा की गई लंबित राशि के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिया. मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य एसएसए के तहत धनराशि प्राप्त करना जारी नहीं रख सकते हैं और न ही पीएम-श्री योजना को लागू कर सकते हैं, जो कार्यक्रम का एक हिस्सा है.
दिल्ली और पंजाब ने इसमें भाग लेने से इनकार कर दिया क्योंकि आम आदमी पार्टी द्वारा शासित दोनों राज्य पहले से ही ‘स्कूल ऑफ एमिनेंस’ नामक आदर्श स्कूलों के लिए एक समान योजना चला रहे हैं. पश्चिम बंगाल ने अपने स्कूलों के नाम के आगे ‘पीएम-श्री’ लगाने का विरोध किया, खासकर इसलिए क्योंकि राज्य इसकी लागत का 40 प्रतिशत वहन करते हैं.
बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु और शिक्षा सचिव मनीष जैन ने मंत्रालय को पत्र लिखकर एसएसए फंड जारी करने की मांग की है. बताया जा रहा है कि दिल्ली सरकार ने भी केंद्र को पत्र लिखा है.
दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि जुलाई 2023 से अब तक केंद्र और पंजाब सरकार के बीच कम से कम पांच पत्रों का आदान-प्रदान हो चुका है. इसमें केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को लिखा गया पत्र भी शामिल है, जिसमें राज्य सरकार से इस परियोजना का हिस्सा बनने के लिए कहा गया है और राज्य ने इस योजना से बाहर निकलने के अपने रुख को दोहराया है.
पंजाब ने शुरू में पीएम-श्री योजना को लागू करने का विकल्प चुना था. इसने अक्टूबर 2022 में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए और जिन स्कूलों को अपग्रेड किया जाना था, उनकी पहचान की गई, लेकिन बाद में राज्य ने इससे किनारा कर लिया. 9 मार्च को प्रधान ने मान को पत्र लिखकर कहा कि ‘पंजाब ने हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन में निर्धारित शर्तों के विपरीत, पीएम-श्री योजना से एकतरफा रूप से बाहर निकलने का विकल्प चुना है.’
15 मार्च को पंजाब के शिक्षा सचिव कमल किशोर यादव ने फिर केंद्र को बताया कि राज्य इस परियोजना का हिस्सा नहीं बनना चाहता. उन्होंने लिखा कि राज्य पहले से ही अपने स्वयं के ‘स्कूल ऑफ एमिनेंस’, ‘स्कूल ऑफ ब्रिलिएंस’ और ‘स्कूल ऑफ हैप्पीनेस’ को लागू कर रहा है, जो एनईपी के साथ समायोजित होंगे.
समानांतर रूप से पंजाब शिक्षा विभाग के अधिकारी लंबित एसएसए फंड के बारे में पत्र लिख रहे हैं. 18 जनवरी को लिखे पत्र में पंजाब के समग्र शिक्षा राज्य परियोजना निदेशक विनय बुबलानी ने शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव विपिन कुमार को पत्र लिखकर फंड जारी करने का अनुरोध किया, ताकि शेष भुगतान और निर्धारित लक्ष्य समय पर प्राप्त किए जा सकें. मान ने 27 मार्च को प्रधान को भी पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि मामला गंभीर होता जा रहा है, (और) फंड जारी न होने से स्कूलों में बुनियादी गतिविधियां रुक गई हैं.
5 मार्च को यादव ने केंद्र सरकार के अपने समकक्ष संजय कुमार को पत्र लिखकर कहा, ‘वर्तमान में समग्र शिक्षा के एकल नोडल खाते में कोई शेष राशि नहीं है, जिसके कारण कर्मचारियों के वेतन सहित कुछ गतिविधियों के भुगतान लंबित हैं.’
दिल्ली में भी वित्तीय संकट महसूस किया जा रहा है, जहां एमसीडी के प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत लगभग 2,400 शिक्षकों और समग्र शिक्षा कार्यक्रम में कार्यरत 700 कर्मचारियों का वेतन सर्व शिक्षा अभियान निधि से दिया जाता है.
दिल्ली के एक अधिकारी ने बताया, ‘पिछले शैक्षणिक सत्र में दो किस्तों में से जो राशि बकाया थी, उसमें से राज्य सरकार ने करीब 200 करोड़ रुपये दिए थे. उससे वेतन का प्रबंध किया गया. हालांकि, 1 अप्रैल से शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन लंबित है. इन पैसों का इस्तेमाल सरकारी स्कूलों में छात्रों को पाठ्यपुस्तकें और यूनिफॉर्म मुहैया कराने और दिव्यांग बच्चों की मदद के लिए भी किया जाता है.’
अखबार से बात करते हुए पंजाब के शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस ने कहा कि ‘इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिए हर संभव प्रयास किया गया, लेकिन केंद्र द्वारा राज्य के फंड को रोके रखने के कारण, ऐसा लगता है कि आने वाले महीनों में वेतन देना मुश्किल होगा.’
बैंस ने कहा, ‘वे नए स्कूल भी नहीं बना रहे हैं, बल्कि केवल पहले से स्थापित स्कूलों का ही जीर्णोद्धार कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि उनका एकमात्र उद्देश्य बोर्ड पर पीएम-श्री लिखकर राज्य के शिक्षा परिदृश्य में प्रवेश करना है. अगर वे नए स्कूल बनाते हैं तो हम सभी पीएम-श्री के पक्ष में हैं.’