नई दिल्ली: चुनावी बॉन्ड से हुए प्रत्येक लेन-देन, भ्रष्टाचार और रिश्वत के मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 19 जुलाई, 2024 को कहा कि इस याचिका पर 22 जुलाई को सुनवाई होगी.
यह याचिका कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दायर की गई थी, जिनका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, नेहा राठी और चेरिल डिसूजा कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक उल्लेखों के दौरान भूषण को इसकी जानकारी दी है.
याचिका में कहा गया है कि देश की कुछ प्रमुख जांच एजेंसियां जैसे सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग ‘भ्रष्टाचार में सहायक बन गई हैं’. याचिका के मुताबिक, इन एजेंसियों द्वारा जांच के दायरे में आई कई कंपनियों ने सत्तारूढ़ दल को बड़ी मात्रा में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिया है, जिसका उद्देश्य जांच के परिणामों को प्रभावित करना था.
याचिका में लिखा है, ‘प्रत्येक मामले में पूरी साजिश को उजागर करने की आवश्यकता है, क्योंकि इसमें न केवल कंपनी के अधिकारी, सरकार के अधिकारी और राजनीतिक दलों के पदाधिकारी शामिल हैं, बल्कि ईडी/आईटी और सीबीआई आदि जैसी एजेंसियों के संबंधित अधिकारी भी शामिल हैं, जो इस साजिश का हिस्सा बन गए हैं.’
कई मीडिया संस्थानों द्वारा की गई रिपोर्टों का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि प्रकाशित जानकारी (चुनावी बॉन्ड की) से पता चलता है कि कॉरपोरेट्स द्वारा राजनीतिक दलों को अधिकांश बॉन्ड किसी एवज में दिए गए हैं.
याचिका में कहा गया है, ‘ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हजारों करोड़ों का चंदा देकर लाखों करोड़ों के अनुबंध हासिल किए गए.’ याचिका में नियामक एजेंसियों पर निष्क्रियता बरतने का भी संदेह जताया गया है, जिससे बाजार में खराब और ख़तरनाक दवाएं बेची जा रही हैं. उन दवाइयों से लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ गई है.
याचिका में लिखा है कि इन्हीं वजहों से चुनावी बॉन्ड योजना को कई विशेषज्ञ भारत का सबसे बड़ा घोटाला बता रहे हैं और संदेह जता रहे हैं कि शायद यह दुनिया का भी सबसे बड़ा घोटाला हो.
बता दें कि 15 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉन्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार दिया था. शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि यह योजना राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग का खुलासा करने में विफल रहने के कारण संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करती है.
इसके परिणामस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी अधिनियम, आयकर अधिनियम और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में चुनावी बॉन्ड से संबंधित प्रावधानों को भी अमान्य कर दिया था. इसके अलावा, शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड के खरीदारों और प्राप्तकर्ताओं की जानकारी भी सार्वजनिक करने का आदेश दिया था. उक्त जानकारी के मुताबिक, 1260 कंपनियों और व्यक्तियों ने 12,769 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे. शीर्ष 20 कंपनियों ने 5,945 करोड़ रुपये का चंदा दिया था, जो चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान की गई कुल राशि का लगभग आधा हिस्सा था.
भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जारी डेटा के मुताबिक, सभी चुनावी बॉन्ड का लगभग आधा हिस्सा सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिला. इसमें तेलंगाना स्थित बुनियादी ढांचा कंपनी मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एमईआईएल) ने सबसे अधिक चंदा दिया.
रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने चुनावी चंदे से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को सौंप दी थी, जिसके बाद आयोग ने इसे अपनी वेबसाइट पर साझा किया. इस डेटा के अनुसार, भाजपा ने 12 अप्रैल 2019 से 24 जनवरी 2024 के बीच कुल 6,060.5 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड भुनाए, जबकि मार्च 2018 से पार्टी द्वारा भुनाई गई कुल राशि 8,251.8 करोड़ रुपये रही.
रिपोर्ट के मुताबिक, एमईआईएल ने भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा दिया. कंपनी ने साल 2019 से 2023 के बीच अपनी कुल बॉन्ड खरीद 966 करोड़ रुपये में से 519 करोड़ रुपये का चंदा भाजपा को दिया था. कंपनी के पास टीवी9 नेटवर्क में भी एक बड़ी हिस्सेदारी है. एक अन्य एमईआईएल कंपनी वेस्टर्न यूपी पॉवर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड ने भी भाजपा को अतिरिक्त 80 करोड़ रुपये का चंदा दिया.