नई दिल्ली: संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के अध्यक्ष मनोज सोनी ने कार्यकाल खत्म होने से करीब पांच साल पहले ही इस्तीफा दे दिया है. मनोज सोनी का कार्यकाल 2029 में खत्म होना था. उन्होंने अपने इस्तीफे के पीछे निजी कारणों का हवाला दिया है.
द हिंदू की खबर के मुताबिक, मनोज सोनी 2017 में संघ लोक सेवा आयोग में सदस्य के तौर पर शामिल हुए थे. उन्होंने 16 मई 2023 को अध्यक्ष पद की शपथ ली थी.
एक शीर्ष सूत्र ने अखबार को बताया कि मनोज सोनी ने लगभग एक महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था. हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि उनका इस्तीफा स्वीकार किया जाएगा या नहीं.
सूत्र ने यह भी स्पष्ट किया कि इस इस्तीफे का यूपीएससी उम्मीदवारों द्वारा नौकरी पाने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र पेश करने से जुड़े विवाद से कोई लेना-देना नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि मनोज सोनी ने अपना इस्तीफा भारत के राष्ट्रपति को सौंप दिया है. लेकिन सरकार की ओर से अभी तक नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा नहीं की गई है.
अखबार के सूत्रों की मानें तो मनोज सोनी अब अपना अधिक समय गुजरात में स्वामीनारायण संप्रदाय की एक शाखा अनुपम मिशन को देना चाहते हैं. वे साल 2020 में दीक्षा प्राप्त करने के बाद अनुपम मिशन में एक भिक्षु या निष्काम कर्मयोगी बन गए थे.
मालूम हो कि मनोज सोनी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है. साल 2005 में नरेंद्र मोदी ने उन्हें महज़ 40 साल की उम्र में वडोदरा के प्रसिद्ध एमएस विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया था. तब वो देश के सबसे कम उम्र के कुलपति बने थे.
जून 2017 में यूपीएससी में अपनी नियुक्ति से पहले मनोज सोनी अपने गृह राज्य गुजरात में दो विश्वविद्यालयों में तीन बार कुलपति के रूप में काम कर चुके थे. सोनी ने 2015 तक दो बार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में काम किया था.
राहुल गांधी ने सोनी की नियुक्ति पर सवाल उठाया था
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने मनोज सोनी को यूपीएससी का अध्यक्ष बनाए जाने को लेकर सवाल खड़े किए थे. उन्होंने इस नियुक्ति को भारतीय संविधान पर चोट बताया था. उन्होंने सोनी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का करीबी बताते हुए कहा था कि सोनी के अध्यक्ष बनने का मतलब है कि यूपीएससी, संघ लोक सेवा आयोग की जगह संघ प्रचारक आयोग बन जाएगा.
सूत्रों ने अखबार को ये भी बताया है कि मनोज सोनी के इस्तीफा का ट्रेनी आईएएस अफसर पूजा खेडकर विवाद से कोई लेना-देना नहीं है.
गौरतलब है कि प्रशिक्षु (ट्रेनी) आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर बीते कई दिनों से विवादों में हैं. उन पर दस्तावेजों में कथित रूप से फर्जीवाड़ा करने और यूपीएससी के साथ धोखाधड़ी करने का मामला दर्ज किया है. उन्हें उनकी उम्मीदवारी रद्द करने के लिए कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया है.
पूजा खेडकर का मामला सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर कई अन्य उम्मीदवारों के मामले भी सामने आने लगे, जिन्होंने कथित तौर पर अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस), और बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों (जिनकी विकलांगता 40 फीसदी से अधिक हो) के तहत आरक्षण लाभ प्राप्त करने के लिए जाली दस्तावेज बनाए. ये मामले यूपीएससी की परीक्षा और चयन प्रक्रियाओं की शुचिता पर सवाल उठाते हैं.
ज्ञात हो कि संघ लोक सेवा आयोग भारत के संविधान के अनुच्छेद 315-323 भाग 12 के तहत एक संवैधानिक निकाय है. आयोग केंद्र सरकार की ओर से कई परीक्षाएं आयोजित करता है. यह हर साल सिविल सेवा परीक्षाएं भी आयोजित करता है और आईएएस, भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और केंद्रीय सेवाओं – ग्रुप ए और ग्रुप बी में नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों की सिफारिश करता है.
इस आयोग का एक अध्यक्ष होता है और इसमें अधिकतम 10 सदस्य हो सकते हैं. फिलहाल, शुक्रवार (19 जुलाई) को अध्यक्ष के अलावा इसमें सात और सदस्य थे, जिनमें गुजरात लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष दिनेश दासा, गुजरात कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी बीबी स्वैन, पूर्व आईपीएस अधिकारी शील वर्धन सिंह, पूर्व राजनयिक संजय वर्मा और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन के नाम शामिल हैं.