नगा समूह ने मणिपुर में ईसाइयों के साथ किए जा रहे बर्ताव को लेकर अरमबाई तेंगगोल को चेताया

नगा समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) ने कहा कि कट्टरपंथी मेईतेई संगठन अरामबाई तेंगगोल द्वारा ईसाइयों को परेशान करने और शारीरिक हमले के साथ परेशान करने वाली प्रवृत्ति देखी है, जो शांति और सहिष्णुता के लिए ख़तरा है.

मणिपुर की राजधानी इंफाल. (फोटो साभार: विकिपीडिया/PP Yoonus)

नई दिल्ली: नगा समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) ने मणिपुर में ईसाइयों के साथ किए जा रहे व्यवहार को लेकर कट्टरपंथी मेईतेई संगठन अरामबाई तेंग्गोल को चेतावनी दी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने बयान में एनएससीएन-आईएम ने कहा कि पिछले साल मई में मेईतेई-कुकी-ज़ो जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से उन्होंने तटस्थता बनाए रखी है, लेकिन वह दिन-प्रतिदिन के घटनाक्रमों पर सावधानीपूर्वक नज़र रखे है.

इसने कहा, ‘विडंबना यह है कि चीजें ठीक नहीं चल रही हैं क्योंकि हमने स्थानीय उग्रवादी समूह अरामबाई तेंग्गोल द्वारा ईसाइयों को परेशान करने और शारीरिक हमले के साथ परेशान करने वाली प्रवृत्ति देखी है.’

एनएससीएन-आईएम ने कहा कि अरामबाई तेंग्गोल द्वारा अपनाया गया हिंसक उग्रवाद शांति और सहिष्णुता के लिए खतरा है. उसने कहा, ‘इसलिए, यह स्वाभाविक है कि एनएससीएन मणिपुर में ईसाइयों के हितों और सुरक्षा की रक्षा के लिए कदम उठाए, इस तथ्य को देखते हुए कि अरामबाई तेंग्गोल ईसाइयों के प्रति भावना और कामों दोनों से गहरी दुश्मनी रखता है.

एनएससीएन-आईएम ने यह भी कहा कि वह अरामबाई तेंग्गोल की ओर से मन बदलते हुए देखना चाहेगा. एनएससीएन (आई-एम) ने कहा, ‘एनएससीएन मणिपुर में सभी धार्मिक समूहों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए खड़ा है.’

मालूम हो कि मणिपुर में जातीय हिंसा के दौरान चर्चों को निशाना बनाया गया था और कई चर्चों को आग लगा दिया गया था.

ज्ञात हो कि पिछले साल 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.