नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार (26 जुलाई) को तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों को लेकर एक अहम निर्देश देते हुए राज्य सरकार के मुख्य सचिव को प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों के नामों से समुदाय और जाति के नाम हटाने के लिए उचित कार्रवाई शुरू करने को कहा है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस सी कुमारप्पन की खंडपीठ ने ये आदेश देते हुए कहा कि उसके संज्ञान में लाया गया है कि कलवरायण पहाड़ियों में ‘सरकारी आदिवासी आवासीय विद्यालय’ के नाम से सरकारी स्कूल संचालित हो रहे हैं. इस तरह सरकारी स्कूल के नाम के साथ ‘आदिवासी’ शब्द का इस्तेमाल सही नहीं है.
पीठ ने आगे कहा कि स्कूल के नाम के साथ समुदाय के नाम को जोड़ने से वहां पढ़ने वाले बच्चों पर इसका असर जरूर पड़ेगा. उनके मन में ये भावना आएगी कि वो एक ‘आदिवासी स्कूल’ में पढ़ रहे हैं, न कि एक ऐसे संस्थान में जहां आस-पास के दूसरे बच्चे भी पढ़ते हैं.
अदालत ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में अदालतों और सरकार द्वारा बच्चों को अपमानित करने की मंजूरी नहीं दी जा सकती.
पीठ ने आगे अपने आदेश में कहा कि जहां भी ऐसे नामों का इस्तेमाल किसी विशेष समुदाय/जाति को इंगित करने के लिए किया जाता है, उन्हें हटा दिया जाना चाहिए और संस्थानों का नाम ‘सरकारी स्कूल’ रखा जाना चाहिए. उस इलाके में रहने वाले बच्चों को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए वहां प्रवेश दिया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा कि यह दुखद है कि 21वीं सदी में भी सरकार उसके द्वारा संचालित स्कूलों में ऐसे शब्दों के इस्तेमाल की अनुमति दे रही है, जो जनता के पैसे से संचालित हो रहे हैं.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि सामाजिक न्याय में अग्रणी राज्य होने के नाते तमिलनाडु, सरकारी स्कूलों या किसी भी सरकारी संस्थान के नाम में ‘उपसर्ग’ या ‘प्रत्यय’ जैसे अनुचित शब्दों को जोड़ने की अनुमति नहीं दे सकता है. इस संबंध में तमिलनाडु सरकार के मुख्य सचिव को उचित कार्रवाई शुरू करनी होगी.
मालूम हो कि अदालत कल्लाकुरिची जहरीली शराब त्रासदी के बाद स्वत: शुरू की गई कार्यवाही पर आगे अंतरिम आदेश पारित कर रही थी. इस शराब त्रासदी में लगभग 65 लोगों की जान चली गई थी.
इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को इस त्रासदी के लिए फटकार लगाई थी और इस मामले में लोगों की मौत के बाद उठाए गए कदमों का विवरण देने वाली रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था. तब अदालत ने ये भी कहा था कि कल्लकुरिची में घटना से कुछ सप्ताह पहले स्थानीय अख़बारों और एक यूट्यूबर ने इलाके में अवैध रूप से नकली शराब उपलब्ध कराए जाने की रिपोर्ट छापी थी.