असम: डिटेंशन सेंटर की दुर्दशा पर सुप्रीम कोर्ट चिंतित, कहा- पर्याप्त जलापूर्ति, शौचालय नहीं

असम के मटिया में डिटेंशन सेंटर में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा रिपोर्ट पेश की गई थी, जिसकी 'दयनीय स्थिति' पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बहुत दुखद स्थिति है. यहां पानी की आपूर्ति नहीं है, शौचालय नहीं हैं, चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: असम में घोषित विदेशियों के लिए बनाए गए डिटेंशन सेंटर की ‘दयनीय स्थिति’ पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि इसमें पर्याप्त पानी की आपूर्ति, उचित शौचालय और साफ-सफाई की व्यवस्था नहीं है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने असम के मटिया में डिटेंशन सेंटर में उपलब्ध सुविधाओं की स्थिति के बारे में असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अवलोकन किया है.

जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, ‘हमें लगता है कि सुविधाएं इस मायने में बहुत खराब हैं कि वहां पर्याप्त पानी की आपूर्ति नहीं है, उचित साफ-सफाई नहीं है और उचित शौचालय नहीं हैं.’

असम में डिटेंशन सेंटर में विदेशी घोषित किए गए लोगों के निर्वासन और वहां उपलब्ध सुविधाओं से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में भोजन और चिकित्सा सहायता की उपलब्धता के बारे में कुछ नहीं कहा गया है.

द असम ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि डिटेंशन सेंटर में 3,000 लोग रहते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने रिपोर्ट की समीक्षा की और इसमें बार-बार कहा गया है कि जानकारी दी गई है. उन्हें साइट पर जाकर लोगों से बात करने की ज़रूरत है, जैसा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) भारत ने किया था.’

इसके बाद अदालत ने असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को निर्देश दिया कि वे आपूर्ति किए गए भोजन की मात्रा और गुणवत्ता तथा चिकित्सा और मनोरंजन सुविधाओं की मौजूदगी का पता लगाने के लिए एक बार और दौरा करें.

शीर्ष अदालत ने तीन सप्ताह के भीतर एक नई रिपोर्ट पेश करने को कहा और मामले की सुनवाई सितंबर में तय की. 16 मई को मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि केंद्र को मटिया के हिरासत केंद्र में 17 घोषित विदेशियों को निर्वासित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए.

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘यह बहुत दुखद स्थिति है. यहां पानी की आपूर्ति नहीं है, शौचालय नहीं हैं, चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं. आप किस तरह की सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं?’ पीठ ने केंद्र के वकील से हिरासत केंद्रों में दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी निर्देश लेने को कहा.

असम के डिटेंशन सेंटर विवादों में रहे

ज्ञात हो कि असम के डिटेंशन सेंटर हमेशा ही विवादों में रहे हैं. असम में नागरिकता संकट को लेकर शुरू हुए विवाद के कारण साल 2010 से ही राज्य में डिटेंशन सेंटर काम कर रहे हैं और अक्सर मानवाधिकार हनन के आरोपों के चलते सुर्ख़ियों में रहते हैं.

दिसंबर 2023 में द वायर ने इन डिटेंशन शिविरों में रह रहे लोगों द्वारा झेली जाने वाली यातनाओं पर एक बड़ी रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें डिटेंशन केंद्रों में रह रहे लोगों के मानवाधिकार उल्लंघन की बात की गई थी.

भारत की नागरिकता न साबित कर पाने के चलते वहां रखे गए लोगों द्वारा झेली जाने वाली कठिनाइयों के बारे में द वायर ने राष्ट्रीय मानवाधिकारों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया था, जिसमे उनकी टीम ने सुमी गोस्वामी (बदला हुआ नाम) से बात की थी.

सुमी को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा हुई एक तकनीकी गलती के कारण मटिया डिटेंशन सेंटर में भेजा गया था. सभी आवश्यक दस्तावेज होने के बावजूद उन्हें तीन दिनों तक हिरासत शिविर में रखा गया, बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था.

हिरासत केंद्र में रहने की परिस्थितियों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा था, ‘एक सेल के भीतर 14 से 15 लोग थे, जिसमें केवल एक बाथरूम था. पहले दिन जब मैं वहां गई तो मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि बाथरूम के दरवाजे आधे हैं, इस तरह के कि आपका चेहरा बाहर से देखा जा सके. एक व्यक्ति से पूछने पर मुझे पता चला कि इन्हें कैदियों को आत्महत्या करने से रोकने के लिए (इस तरह) बनाया गया था. आधे दरवाजों के कारण बाथरूम से आने वाली दुर्गंध के कारण वहां खाना तो दूर, रहना भी असहनीय था’ सोमी ने आगे बताया ‘मैं वहां दो रातों तक सो नहीं पाई थी. मुझे ऐसे लोगों के साथ रखा गया था जो बड़े जुर्म में गिरफ्तार किए गए थे, किसी ने अपने भाई का क़त्ल किया था, तो कोई ड्रग्स सप्लायर था.’ सुमी ने सवाल उठाया था कि, जिनकी नागरिकता पर संदेह है, उन्हें ऐसे अपराधियों के साथ क्यों रखा जाता है?

महिला ने यह भी बताया था कि डिटेंशन सेंटर में महिलाओं को अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसमे यौन शोषण और जबरन गर्भपात की शिकायतें शामिल हैं.

मालूम हो कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के दिशानिर्देशों के अनुसार, सरकारी जेलों का उपयोग डिटेंशन  के लिए नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन असम के डिटेंशन केंद्र सरकारी जेलों के ही उपभाग हैं और इसलिए नागरिकता साबित न कर पाने वाले लोगों को और ‘विदेशी’ नागरिकों को अक्सर दोषी कैदियों के साथ एक ही सेल में रखा जाता है.

2023 की शुरुआत में गोआलपारा जिले में भारत के सबसे बड़े डिटेंशन केंद्र- मटिया ट्रांजिट कैंप का निर्माण पूरा होने और संचालन शुरू होने से असम के लोगों में आक्रोश फैल गया था.