लगातार हो रही मौतों के बावजूद केंद्रीय बजट में मैनुअल स्कैवेंजिंग का ज़िक्र नहीं

सफाई कर्मचारी आंदोलन के आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह महीनों में 43 मैनुअल स्कैवेंजरों की मौत हुई है. संगठन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने उनके लिए बजट में आवंटित धनराशि को 'बहुत कम' बताते हुए कहा कि सफाईकर्मियों की भलाई सरकार की प्राथमिकता में नहीं है. 

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/@manualscavenging1)

नई दिल्ली: सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह महीनों में देश में 40 से अधिक मैनुअल स्कैवेंजरों की मौत हुई है, लेकिन केंद्रीय बजट में उनकी दुर्दशा का कोई उल्लेख नहीं किया गया है.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन के लिए लड़ने वाले नागरिक समाज संगठन- सफाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेए) ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2024-25 के लिए पूर्ण बजट पेश किए जाने के मद्देनज़र 1 फरवरी से 23 जुलाई के बीच मैनुअल स्कैवेंजरों की मौत पर डेटा एकत्र किया था.

आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि के दौरान 43 मैनुअल स्कैवेंजरों की मृत्यु हुई, जो कि वोट-ऑन-एकाउंट और इस साल सीतारमण द्वारा पेश किए गए केंद्रीय बजट के बीच थी.

कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जेबी माथेर हिशाम ने केरल में 47 वर्षीय एक सफाई कर्मचारी की हाल ही में हुई मौत पर चिंता जताई और देश भर में मैनुअल स्कैवेंजिंग की लगातार समस्या का उल्लेख किया.

उन्होंने बतया, ‘जब वह (सफाईकर्मी)  त्रिवेंद्रम शहर में कूड़े से भरी नहर से कचरा साफ करने की कोशिश कर रहे थे, तो उनका पैर फिसल गया. भारी बारिश में 46 घंटे तक चले खोज और बचाव अभियान के दौरान कचरे के बीच में उनका निर्जीव शरीर पाया गया.’ उन्होंने कहा कि सफाई कर्मचारियों की दुखद मौत इस बात की ‘स्पष्ट याद दिलाती है’ कि हम इस मामले में कितने विफल हैं.

हिशाम ने कहा, ‘बिना किसी सुरक्षा उपकरण या उचित प्रशिक्षण के सफाई कर्मचारी हमेशा जीवन के लिए ख़तरनाक परिस्थितियों का सामना करते हैं और बहुत ही दुखद परिस्थितियों से गुज़रते हैं, जहां उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. हाथ से मैला ढोने पर प्रतिबंध होने के बावजूद यह खतरनाक प्रथा अभी भी जारी है, जिससे सफाई कर्मचारी लगातार जहरीली गैस और खतरनाक कचरे के बीच रहते हैं.’

विपक्षी दलों के 12 सदस्यों ने मृतक सफाई कर्मचारी के परिवार को मुआवज़ा देने और एक प्रभावी शहरी कचरा प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन की कांग्रेस सांसद की मांग को समर्थन दिया.

अखबार के अनुसार, सरकार ने नेशनल एक्शन फॉर मैकेनाइज्ड सैनिटेशन इकोसिस्टम (नमस्ते) शुरू किया, जिसने हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास के उद्देश्य से पहले की योजना की जगह ली. शुरुआत में 2023-24 के बजट में इस योजना के लिए 97 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन बाद में संशोधित बजट में यह राशि घटाकर 30 करोड़ रुपये कर दी गई. हालांकि, इस साल आवंटन बढ़ाकर 117 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

एसकेए के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि मैनुअल स्कैवेंजरों का कल्याण सरकार की प्राथमिकता नहीं है. आवंटित धनराशि को ‘बहुत कम’ बताते हुए विल्सन ने कहा, ‘वित्त मंत्री ने अपने भाषण में एक बार भी मैनुअल स्कैवेंजरों का नाम नहीं लिया, जैसे कि उनकी जान कोई मायने नहीं रखती.’

उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और बिहार जैसे राज्यों में मैनुअल स्कैवेंजिंग बड़े पैमाने पर प्रचलित है. लेकिन सरकार इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है.’

उन्होंने कहा कि एसकेए नियमित रूप से सामाजिक न्याय मंत्रालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को ज्ञापन सौंपता है, जिसमें ड्यूटी पर मरने वाले सफाई कर्मचारियों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग की जाती है और उनके पुनर्वास के लिए एक व्यापक कार्य योजना की आवश्यकता पर जोर दिया जाता है. हालांकि, विल्सन के अनुसार, मंत्रालय ने कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि हाथ से मैला ढोने वाले अधिकतर दलित हैं, उन्होंने सीवर और सेप्टिक टैंक में मरने वालों को हाथ से मैला ढोने वाले के रूप में पहचानने में विफल रहने के लिए सरकार की आलोचना की और ऐसी मौतों को ट्रैक करने के लिए कोई व्यवस्था न होने का उल्लेख किया. उन्होंने कहा, ‘जब भी ऐसी कोई घटना होती है, तो सरकार की पहली प्रतिक्रिया इसे आकस्मिक मृत्यु के रूप में छिपाने की होती है.’

विल्सन ने स्थानीय अधिकारियों को पहचान करने में विफल रहने के लिए भी सरकार की निंदा की, जो इन श्रमिकों को आवश्यक सुरक्षा उपकरण या प्रशिक्षण प्रदान नहीं करते हैं.

गौरतलब है कि दिसंबर 2021 में केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी थी कि देश में 58,098 हाथ से मैला ढोने वाले हैं और उनमें से 42,594 अनुसूचित जाति के हैं.

सरकार ने कहा था कि देश में इन पहचानशुदा 43,797 लोगों में से 42,594 अनुसूचित जातियों से हैं, जबकि 421 अनुसूचित जनजाति से हैं. कुल 431 लोग अन्य पिछड़े वर्ग से हैं, जबकि 351 अन्य श्रेणी से हैं.

पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार ने बताया था कि देश में केवल 66 प्रतिशत जिले मैला ढोने की प्रथा से मुक्त हैं. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी डेटा के मुताबिक देश के कुल 766 जिलों में से सिर्फ 508 जिलों ने ही खुद को मैला ढोने से मुक्त घोषित किया था.

मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.