भारतीय सेना में सेवा दे चुके गोरखा सैनिक चाहते हैं उन्हें पेंशन और स्वास्थ्य सुविधा भारत में मिले. इन जवानों को पेंशन लेने नेपाल जाना पड़ता है.
1962 भारत-चीन जंग में शामिल गोरखा सैनिक आज भी अपनी पेंशन के लिए परेशान हैं. द हिन्दू में छपी ख़बर के अनुसार 82 वर्षीय लोहितपुर, अरुणाचल प्रदेश में रह रहे गंगा बहादुर थापा आज भी अपने पेंशन के लिए ज़द्दोजहद कर रहे हैं.
गंगा बहादुर भारतीय सेना की तरफ से 1962 की जंग लड़े थे और आज वह शारीरिक रूप से लकवाग्रस्त हैं. गंगा और अन्य पूर्व गोरखा सैनिकों को अपनी पेंशन के लिए अपने मूल स्थान पोखरा, नेपाल जाना होगा. जो लोहितपुर गांव से लगभग 1600 किलोमीटर दूर है.
लोहितपुर गांव में रह रहे गोरखा सिपाही उन्हीं 1.26 लाख रिटायर हो चुके गोरखा सैनिकों में से एक हैं, जो नेपाल के होने के बावजूद भारतीय सेना के लिए हर जंग में शरीक हुए हैं. इन सभी लोगों को न ही पेंशन मिलती है और न ही किसी तरह की स्वास्थ्य सुविधा.
लोहितपुर में रह रहे रिटायर्ड गोरखा सैनिक भीम बहादुर पुन कहते हैं कि क़ानून के अनुसार पेंशन की सुविधा हमें सिर्फ़ हमारे मूल स्थान पर ही मिल सकती है. पुन यह भी कहते हैं कि उनके लिए हर साल पोखरा जाना संभव नहीं है.
दशकों से रिटायर हो चुके सैनिक चाहते हैं कि उनकी पेंशन चीन सीमा के पास तेजू में मुहैया करवाई जाए, वहां बैंक की सुविधा भी मौजूद है.
4 नवंबर, 2016 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पोखरा के गोरखों से कहा था, ‘रिटायर्ड गोरखा सैनिक हमारे और नेपाल के रिश्तों के स्तंभ हैं. भारत को गर्व है अपने गोरखा सैनिकों पर और उन जवानों पर जो अपनी सेना दे चुके हैं.’
राष्ट्रपति मुखर्जी ने यह भी कहा था, ‘भारत सरकार की तरफ से मैं आप लोगों को आश्वासन दिलाना चाहता हूं कि रिटायर हो चुके सैनिकों की मदद के लिए भारत कभी पीछे नहीं हटेगा. आज भी भारतीय सेना में 32000 गोरखा सैनिक अपनी सेवा दे रहे हैं.’
जोगिन तमाइ नामक पूर्व सैनिक अब सामाजिक कार्यकर्ता बन चुके हैं. वे कहते हैं, ‘क़ानून इस तरह से बनाए गए हैं कि गोरखा सैनिक के रिश्तेदार भी पेंशन का पैसा नही पा सकते हैं.’ तमाइ फ़िलहाल इन सबकी राहत के लिए काम कर रहे हैं.