नई दिल्ली: हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और इसके प्रमुख नेताओं द्वारा झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ होने, आदिवासियों की जनसंख्या कम होने, लव जिहाद और लैंड जिहाद होने जैसे बयान दिए गए हैं. भाजपा नेताओं के इन दावों पर सवाल उठाते हुए झारखंड जनाधिकार महासभा ने ‘लोकतंत्र बचाओं अभियान’ के तहत एक बयान जारी किया है. यह अभियान झारखंड के कई जन संगठनों व सामाजित कार्यकर्ताओं का लोकतंत्र व संविधान को बचाने का साझा प्रयास है.
बयान में भाजपा नेताओं के दावों को तथ्यों से परे बताते हुए कहा गया है, ‘यह बोला जा रहा है कि झारखंड बनने के बाद संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या 16% कम हुई है और मुसलमानों की 13% बढ़ी है. सांसद निशिकांत दुबे ने तो संसद में बयान दिया कि वर्ष 2000 में संथाल परगना में आदिवासी 36% थे और अब 26% हैं और इसके जिम्मेवार बांग्लादेशी घुसपैठिए (मुसलमान) हैं. यह सभी दावे तथ्य से परे हैं. दुख की बात है कि अधिकांश मीडिया भी बिना तथ्यों को जांचे ये दावे फैला रही है.’
क्या झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या कम हो रही है?
प्रेस विज्ञप्ति में संलग्न आंकड़ों के हवाले से कहा गया है, ‘1951 की जनगणना के अनुसार, झारखंड में 36% आदिवासी थे. वहीं, 1991 में राज्य में 27.67% आदिवासी थे और 12.18% मुसलमान. आखिरी जनगणना (2011) के अनुसार, राज्य में 26.21% आदिवासी थे और 14.53% मुसलमान. वहीं, संथाल परगना में आदिवासियों का अनुपात 2001 में 29.91% से 2011 में 28.11% हुआ. इसलिए भाजपा का 16% व 10% का दावा झूठ है.’
वर्ष 1951 से 1991 के बीच आदिवासियों के अनुपात में आई व्यापक गिरावट को निम्न तीन बिंदुओं में समझाया गया है:
1) इस दौरान आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में गैर-आदिवासी झारखंड में आए, खासकर शहरों एवं खनन व कंपनियों वाले क्षेत्रों में. उदहारण के लिए, रांची में आदिवासियों का अनुपात 1961 में 53.2% से घटकर 1991 में 43.6% हो गया था. वहीं, झारखंड क्षेत्र में अन्य राज्यों से 1961 में 10.73 लाख प्रवासी, 1971 में 14.29 लाख प्रवासी और 1981 में 16.28 लाख प्रवासी आए थे, जिनमें अधिकांश उत्तरी बिहार व आस-पास के अन्य राज्यों के थे. हालांकि, इनमें से अधिकांश काम के बाद वापस चले गए, लेकिन अनेक बस भी गए. नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता न मिलने के कारण और पांचवी अनुसूची के प्रावधान व आदिवासी-विशेष कानून सही से न लागू होने के कारण अन्य राज्यों के गैर-आदिवासी बसते गए.
2) आदिवासी दशकों से विस्थापन व रोज़गार के अभाव में लाखों की संख्या में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं, जिसका सीधा असर उनकी जनसंख्या वृद्धि दर पर पड़ता है. केंद्र सरकार की 2017 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट अनुसार, 2001 से 2011 के बीच राज्य के 15-59 वर्ष उम्र के लगभग 50 लाख लोगों ने पलायन किया था.
3) दशकों से आदिवासियों की जनसंख्या वृद्धि दर अन्य गैर-आदिवासी समूहों से कम है. 1951-91 के बीच आदिवासियों की जनसंख्या की वार्षिक घातीय वृद्धि दर (annual exponential growth rate) 1.42 थी, जबकि पूरे झारखंड की 2.03 थी. अपर्याप्त पोषण, अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्था, आर्थिक तंगी के कारण आदिवासियों की मृत्यु दर अन्य समुदायों से अधिक है.
क्या झारखंड में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठिए घुस रहे हैं?
झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों संबंधी दावे पर बयान में कहा गया है, ‘भाजपा नेता अपने मन मुताबिक देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या कभी 12 लाख बोलते हैं, तो कभी 20 लाख. घुसपैठियों से उनका निशाना मुसलमानों पर रहता है, लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार लगातार संसद में बयान देते आ रही है कि उनके पास बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या से संबंधित कोई आंकड़े नहीं हैं. अगर संथाल परगना में केवल मुसलमानों की आबादी पर गौर करें, तो 2001 से 2011 के बीच कुल आबादी के अनुपात में हुई 2.15% की वृद्धि दर्शाती है कि बांग्लादेश से आकर बसने वाले मुसलमानों की संख्या दावों की तुलना में बहुत ही कम होगी (अगर हुई तो).’
बयान में कहा गया है, ‘भाजपा आदिवासियों के जनसंख्या अनुपात में कमी के मूल कारणों पर बात न करके गलत आंकड़े पेश करके केवल धार्मिक सांप्रदायिकता फैलाना और ध्रुवीकरण करना चाहती है.’