संसद में मीडिया प्रतिबंध के ख़िलाफ़ पत्रकारों का प्रदर्शन, ममता बोलीं- सरकार का निरंकुश कृत्य

मीडियाकर्मी संसद भवन के प्रवेश और निकास द्वार के पास सांसदों की टिप्पणियों को कैमरे पर तो रिकॉर्ड कर रहे हैं, लेकिन अब उन्हें उनके लिए बनाए गए एक घेरे तक ही सीमित कर दिया गया है. उन्हें उस 'मकर द्वार' से हटा दिया गया है, जहां वे सांसदों के साथ बातचीत किया करते थे.

पत्रकारों को संसद के केंद्रीय कक्ष के बाहर स्थित इस कांच के कमरे तक ही सीमित रखा गया. (फोटो साभार: एक्स/@PCITweets के वीडियो का स्क्रीनग्रैब)

नई दिल्ली: संसद में सोमवार (19 जुलाई) को पत्रकारों ने विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि उन्हें मकर द्वार से हटा दिया गया था, जहां वे सांसदों के साथ बातचीत करते हैं. इस कदम को विपक्ष ने केंद्रीय बजट 2024-25 पर चर्चा के दौरान लोकसभा में भी उठाया, जिसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस मामले को देखेंगे.

एनडीटीवी के मुताबिक, मीडियाकर्मी संसद भवन के प्रवेश और निकास द्वार के पास सांसदों की टिप्पणियों को कैमरे पर रिकॉर्ड कर रहे हैं, लेकिन अब उन्हें उनके लिए बनाए गए एक घेरे तक ही सीमित कर दिया गया है.

मीडिया पर लगाए गए इस प्रतिबंध को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘निरंकुश कृत्य’ करार दिया है.

उन्होंने कहा, ‘यह एक निरंकुशता भरा कार्य है… विपक्ष को इस तानाशाही कृत्य के खिलाफ एकजुट होना चाहिए.’

इससे पहले दिन में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने का अनुरोध किया. जिस पर बिड़ला ने गांधी को संसदीय कार्यप्रणाली के नियमों की याद दिलाई और कहा कि ऐसे मुद्दों पर उनसे व्यक्तिगत रूप से चर्चा की जानी चाहिए और सदन में नहीं उठाया जाना चाहिए.

गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं जैसे टीएमसी नेता डेरेक ओ’ब्रायन, कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम और शिवसेना-यूबीटी सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने मीडियाकर्मियों से मीडिया परिसर में मुलाकात भी की.

ओ’ब्रायन ने कहा, ‘यह सेंसरशिप है. यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है। हम इस लड़ाई में आपके साथ हैं.’

बाद में लोकसभा अध्यक्ष ने पत्रकारों के एक समूह से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी सभी शिकायतों का समाधान किया जाएगा तथा उन्हें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए बेहतर सुविधाएं प्रदान की जाएंगी.

संसद परिसर में पत्रकारों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने का यह कदम एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) द्वारा इस महीने की शुरुआत में लोकसभा और राज्यसभा के सभापति से संसद की कार्यवाही को कवर करने का प्रयास करने वाले पत्रकारों पर प्रतिबंध हटाने का आह्वान करने के कुछ सप्ताह बाद उठाया गया है.

गिल्ड ने कहा था कि संसद को कवर करने के लिए मान्यता प्राप्त लगभग 1,000 मीडियाकर्मियों में से ‘केवल एक अंश’ को ऐसा करने की अनुमति दी गई है और यह अनुमति ‘बिना पारदर्शी प्रक्रिया या कार्यप्रणाली’ के है.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने एक्स पर एक बयान में एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें संसद को कवर करने वाले पत्रकार एक शीशे के कमरे में नजर आ रहे हैं और अपनी आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर रहे हैं.

बयान में कहा गया है, ‘पत्रकारों ने संसद परिसर में अपनी आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, ‘यहां तक कि उन्हें ‘मकर द्वार’ के सामने खड़ा होने से भी रोक दिया गया. इस द्वार पर वे सभी पक्षों के सांसदों से बातचीत करते थे.’

प्रतिबंध हटाने की मांग

इसके बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने केंद्रीय बजट 2024-25 पर चर्चा के दौरान अपने भाषण में यह मामला उठाया. गांधी ने अपने भाषण में भाजपा पर हमला करने के लिए महाभारत की कथा के एक प्रसंग का संदर्भ दिया, जिसमें अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकर मारा गया था. उन्होंने कहा कि मीडिया के इर्द-गिर्द भी चक्रव्यूह बनाया गया है.

लोकसभा अध्यक्ष बिड़ला को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘सर, आपने एक और चक्रव्यूह खड़ा कर दिया है. आपने मीडिया कों पिंजरे में बंद कर दिया है. कृपया उन्हें बाहर आने दीजिए.’

गांधी ने आग कहा कि ‘बेचारे मीडिया वाले हैं’, लेकिन बिड़ला ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा कि वह ‘बेचारे’ शब्द का इस्तेमाल न करें.

बिड़ला ने कहा, ‘वे बेचारे नहीं हैं. मीडिया के लिए बेचारे शब्द का इस्तेमाल न करें.’

इसके बाद बिरला ने गांधी से कहा कि वह उनके समक्ष इस मामले को सदन में नहीं, बल्कि उनके कक्ष में उठा सकते हैं.

बाद में गांधी, कांग्रेस, टीएमसी और शिवसेना (यूबीटी) के अन्य सांसद पत्रकारों से मिलने गए.

टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने इस घटना को ‘नागरिक अधिकारों पर हमला’ बताया.

उन्होंने कहा, ‘यह फैसला पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए. प्रेस को जनता के सदन से कैसे हटाया जा सकता है? पत्रकारों को संसद से हटाना नागरिकों के अधिकारों पर हमला है.’

पत्रकारों से मुलाकात करने वालीं शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी फैसले को ‘सरकार द्वारा लिया गया एक और मनमाना फैसला‘ बताया.