नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार (29 जुलाई) को विवाहित महिलाओं के उपमान बदलने के संबंध में मौजूदा अधिसूचना को सपष्ट करते हुए कहा अगर किसी शादीशुदा महिला को अपना उपनाम (सरनेम) बदलवाना है तो उन्हें पति से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेना जरूरी है.
द फ्री प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया कि ये नियम ‘कानूनी झमेलों’ से बचने के लिए जरूरी है.
केंद्रीय राज्यमंत्री तोखन साहू ने तृणमूल कांग्रेस के सांसद साकेत गोखले के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सरनेम बदलने में किसी व्यक्ति के पहचान को बदलना भी शामिल है, इसलिए किसी भी कानूनी मुद्दे से बचने के लिए इसकी कड़ी जांच जरूरी है. मौजूदा प्रक्रिया मुकदमेबाजी को रोकने और राजपत्र अधिसूचनाओं की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए न्यूनतम जरूरी आवश्यकताओं का पालन करती है.
मालूम हो कि सरकार की ओर से ये बयान ऐसे समय में सामने आया है, जब अगले महीने अगस्त में ही इस मामले से संबंधित एक याचिका को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है. इससे पहले अदालत ने इस मामले में 28 मई तक केंद्र सरकार से जवाब मांगा था.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, इस साल मार्च के महीने में सरनेम से जुड़ी एक विवादास्पद सरकारी अधिसूचना को दिल्ली की रहने वाली 40 वर्षीय दिव्या मोदी टोंग्या ने अदालत में चुनौती दी थी. उनका कहना था कि वो अपने पति का सरनेम बदलकर अपने विवाह से पहले वाले उपनाम का इस्तेमाल करना चाहती हैं, लेकिन केंद्र सरकार की इस नोटिफिकेशन की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
ज्ञात हो कि गजट नोटिफिकेशन के एक क्लॉज के अनुसार, नाम बदलने से जुड़ी 2014 के अपडेट दिशानिर्देशों में कहा गया है कि किसी भी विवाहित महिला को आधिकारिक तौर पर नाम बदलने के लिए अपने पति से एनओसी लेनी होगी.
केंद्रीय मंत्री साहू का कहना है कि एनओसी की ये आवश्यकता यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि भारत के राजपत्र में नाम परिवर्तन की औपचारिक घोषणा से पहले पति/पत्नी से जुड़े किसी भी विवाद या अदालती आदेश पर विचार किया जाए. इस कदम का उद्देश्य उन संभावित कानूनी चुनौतियों से बचाव करना है जो नाम परिवर्तन से चल रहे कानूनी या व्यक्तिगत मामलों पर प्रभाव पड़ने पर उत्पन्न हो सकती हैं.
गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस सांसद साकेत गोखले ने मंत्री साहू के जवाब को महिलाओं के साथ भेदभाव और द्वेष भावना रखने वाला बताया है.
This is a whole new level of shameless sexism & misogyny by the Modi Govt
I asked the Govt in Parliament as to why a rule was introduced making it compulsory for women to get ‘NOC or permission from husband’ if they wish to revert to their maiden name.
Govt’s justification?… pic.twitter.com/5zXWJ3ZBtq
— Saket Gokhale MP (@SaketGokhale) July 30, 2024
उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा कि सरकार के पास इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है कि किसी महिला को अपना नाम बदलने के लिए पति की ‘अनुमति’ की आवश्यकता क्यों है.