नई दिल्ली: हाल ही में हुए आम चुनावों के महत्वपूर्ण परिणामों में से एक संघर्ष-ग्रस्त मणिपुर का है, जिसने संसद के निचले सदन में दो नए चेहरे भेजे हैं.
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दोनों मौजूदा सांसदों को पूर्वोत्तर राज्य के मतदाताओं ने पहाड़ी और घाटी, दोनों जिलों में पूरी तरह से खारिज कर दिया क्योंकि पार्टी केंद्र और राज्य दोनों में एक साल से अधिक समय से चल रही जातीय हिंसा के दौरान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही.
पहली बार सांसद बने ए. बिमोल अकोईजाम ने एक महीने पहले संसद के विशेष सत्र में अपने पहले भाषण के कारण राष्ट्रीय सुर्खियों में जगह बनाई थी.
अकोईजाम को लोकसभा अध्यक्ष ने आधी रात के करीब का समय शायद इसलिए दिया होगा क्योंकि उस समय तक मणिपुर के लोग सो चुके होंगे, लेकिन उन्होंने दमदारी से अपनी बात रखी और लोकसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र और राज्य के लोगों की गहरी निराशा और असंतोष को व्यक्त करने में सफल रहे, जिसे नरेंद्र मोदी सरकार लगातार नजरअंदाज करती आई थी, बावजूद इसके कि राज्य में लोगों के घर जला दिए गए, उनके करीबी और प्रियजन मार दिए गए, उनके व्यवसाय खत्म हो गए और राज्य जातीय आधार पर बंट गया.
अकोईजाम ने सदन को याद दिलाया कि मणिपुर के 66,000 से अधिक लोग एक साल से अधिक समय से राहत शिविरों में रह रहे हैं, जबकि प्रधानमंत्री ने राज्य का दौरा करने से इनकार कर दिया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 30 जुलाई को मणिपुर (बाहरी) से पहली बार के एक अन्य सांसद अल्फ्रेड कान-नगाम आर्थर के लिए अपनी बात रखने का मौका था. उनका भाषण केंद्रीय बजट पर प्रतिक्रिया थी.
आर्थर, जिन्होंने अपने शपथ ग्रहण के दौरान सरकार से ‘मणिपुर को बचाने’ के माध्यम से ‘देश को बचाने’ का आग्रह किया था, ने बहस में भाग लेते हुए उसी विचार को आगे बढ़ाया. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मणिपुर को कोई मदद नहीं दी. उन्होंने कहा कि हिंसा के साथ-साथ राज्य के लोग पिछले 35 वर्षों में आई ‘सबसे भयानक बाढ़’ से पीड़ित हैं.
आर्थर ने कहा, ‘मेरा राज्य पिछले 15 महीनों से सभी गलत कारणों से खबरों में रहा है. मैंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सदन के समक्ष रखे गए बजट को पढ़ा है. मुझे लगता है कि वह यह समझने में विफल रहीं कि इस समय मणिपुर सबसे कम प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य है और यहां सबसे ज्यादा महंगाई है. आप एक ऐसे राज्य से कैसे उम्मीद कर सकते हैं जहां आय सबसे कम है और वह कीमतें सबसे अधिक चुका रहे हैं?’
सदन को याद दिलाते हुए कि पिछले 15 महीनों से 60,000 से अधिक लोग भयानक परिस्थितियों में राहत शिविरों में रह रहे हैं, उन्होंने सीतारमण से पूछा, ‘क्या आप उन महिलाओं और बच्चों की चीखें नहीं सुन सकतीं जो अपने घर वापस नहीं जा सकते?’
अपने भाषण में कांग्रेस सांसद ने यह भी उल्लेख किया, ‘मैं मणिपुर के नगा समुदाय से हूं. हमारा रुख इस (जातीय) संघर्ष (मेईतेई और कुकी के बीच) को लेकर तटस्थ रहा है. हमने यह सोचकर किसी का पक्ष नहीं लिया कि तटस्थ रहकर हम एक दिन शांति स्थापित कर लेंगे.’
आर्थर ने भारत के लिए अपने परिवार के उत्कृष्ट योगदान को याद किया. उन्होंने मणिपुर के तंगखुल नगा अपने चाचा मेजर रालेंगनाओ (बॉब) खाथिंग को याद किया, जिन्होंने 1950 में बिना खून की एक बूंद बहाए तवांग को भारत के लिए सुरक्षित कर लिया था. खाथिंग, जिन्हें बाद में पद्म श्री से सम्मानित किया गया, केंद्र सरकार द्वारा राजदूत (म्यांमार में) बनाए जाने वाले पहले आदिवासी व्यक्ति बने. उन्होंने कहा, ‘मेरे परिवार ने यह दिन न देखने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. हम सब भारतीय हैं.’
आर्थर ने कहा, ‘मुझे मेरे लोगों ने पूरे भरोसे के साथ संसद में भेजा है, न कि इस गरिमामयी सदन में रखे गए काल्पनिक आंकड़ों पर ध्यान देने के लिए.’
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़े विपक्षी सांसद ने यह भी कहा, ‘मुझे यह विश्वास दिलाया गया है कि यह राष्ट्र व्यक्तियों से बड़ा है… मैं विभिन्न जातियों, विभिन्न धर्मों, विभिन्न समुदायों के मित्रों के साथ पला-बढ़ा हूं, उनके साथ खेला हूं, उनके साथ घूमा हूं, उनके साथ अध्ययन किया है. और फिर भी, मुझे अपने जीवन में कभी यह कहने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई कि मैं एक ईसाई हूं. मैं कभी भी यह नहीं कहना चाहता कि मैं एक ईसाई, एक हिंदू या एक मुसलमान हूं, मुझे ऐसा करने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए थी. आज मुझे इस देश के नियमों और कानूनों के भीतर एक स्वतंत्र भारतीय होने की अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने का यह डर और ज़रूरत क्यों है?’
उन्होंने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह पर तीखा हमला बोला, जिन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहाड़ी और घाटी दोनों जगहों पर बढ़ती मांग के बावजूद बदलने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा, ‘हर दिन उनके (सीएम) मुंह से जो शब्द निकलते हैं, वे मारपीट, हत्या और हिंसा के होते हैं. यह क्या है? क्या यह मेरा देश है?’
उन्होंने 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार के मंत्रियों द्वारा मणिपुर के पहाड़ी और घाटी, दोनों क्षेत्रों में दिखाई गई तत्परता पर कटाक्ष किया. उन्होंने कहा, ‘2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद से एक भी दिन या सप्ताह ऐसा नहीं बीता जब किसी केंद्रीय मंत्री ने मणिपुर का दौरा न किया हो. 3 मई, 2023 के बाद अब वे कहां हैं?’
बाद में विपक्ष के उपनेता और पूर्वोत्तर से सांसद गौरव गोगोई ने एक्स पर कहा, ‘मणिपुर से हमारे दूसरे सांसद ने संसद के अंदर मणिपुर पर एक आवश्यक और शक्तिशाली हस्तक्षेप किया. कांग्रेस सदन के अंदर मणिपुर और पूर्वोत्तर के मुद्दों को उठाना जारी रखेगी. यह भाषण देखना जरूरी है.’
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, 3 मई 2023 को कुकी और मेईतेई जातीय समुदायों के बीच शुरू हुई हिंसा में 224 लोगों की जान चली गई है. इस सीमावर्ती राज्य में कम से कम 60,000 लोग तब से विस्थापित हो चुके हैं; उनमें से एक बड़ा हिस्सा अभी भी राहत शिविरों में रह रहा है. तब से कई लोग भागकर अपने पड़ोसी राज्यों – मिजोरम, असम और मेघालय चले गए हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि मणिपुर में लोगों का भविष्य अधर में लटका हुआ है.