नई दिल्ली: पिछले साल मई महीने से हिंसाग्रस्त मणिपुर के इंफाल पूर्वी जिले में राहत शिविर में रह रहे आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (आईडीपी) और सुरक्षा बलों के बीच गुरुवार को तब झड़पें देखी गईं. मामले से परिचित लोगों ने बताया कि ऐसे हालात तब बने जब सुरक्षाकर्मियों ने राहत शिविर के निवासियों द्वारा अपने पुनर्वास की मांग को लेकर आयोजित विरोध रैली को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अकमपट राहत शिविर में रह रहे लोगों ने इंफाल के बाबूपारा में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के बंगले तक विरोध रैली निकालने का प्रयास किया, लेकिन शिविर के गेट से बाहर निकलते ही सुरक्षा बलों ने उन्हें रोक दिया, जिससे झड़प हो गई.
रिपोर्ट के अनुसार, लाउडस्पीकर के माध्यम से प्रदर्शनकारियों को आगे न बढ़ने के लिए बार-बार चेतावनी दिए जाने के बाद राज्य पुलिस सहित सुरक्षा बलों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए रैली पर आंसू गैस के गोले दागे. स्थानीय लोगों के साथ प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षाकर्मियों पर पत्थरबाजी करके जवाबी कार्रवाई की.
एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वे लगभग एक किलोमीटर तक अपनी रैली जारी रखने में सफल रहे, लेकिन सीआरपीएफ कर्मियों सहित अतिरिक्त सुरक्षा बलों के पहुंचने के बाद उन्हें इंफाल पश्चिम के सिंगजामेई में रोक दिया गया.
अधिकारी ने बताया कि आंसू गैस के कारण दम घुटने की शिकायत के बाद करीब 10 प्रदर्शनकारियों को अस्पताल ले जाया गया. प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई.
हाथों में तख्तियां और बैनर लिए राहत शिविर में रह रहे लोग अपने पुनर्वास और मणिपुर में जातीय हिंसा के समाधान की मांग कर रहे थे, ताकि वे तेंगनौपाल जिले के मोरेह और अन्य क्षेत्रों में स्थित अपने घरों को लौट सकें.
राहत शिविर में रह रहे मोरेह निवासी थंगजाम बुद्ध मेईतेई ने कहा, ‘पिछले 15 महीनों से हम विस्थापित पीड़ा में हैं. हम मणिपुर सरकार से यह मांग करने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं कि वह हमारे घर लौटने के लिए जरूरी व्यवस्था करे.’
घटनास्थल से तितर-बितर होने के बाद प्रदर्शनकारियों ने भारत-म्यांमार राजमार्ग-2 (इंफाल-मोरेह) सड़क पर धरना दिया और इसे लगभग 2 घंटे तक जाम रखा.
पिछले वर्ष 3 मई से मणिपुर में मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी जातीय संघर्ष में अब तक कम से कम 226 लोगों की जान जा चुकी है और लगभग 60,000 लोग बेघर हो गए हैं, जिनमें से अनेक अभी भी राहत शिविरों में रह रहे हैं.
कांग्रेस विधायक रंजीत सिंह द्वारा राज्य विधानसभा में झड़पों का मुद्दा उठाए जाने के बाद सदन के नेता और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा कि राज्य सरकार शांति वार्ता की दिशा में काम कर रही है और असम के सिलचर में कई बैठकें कर चुकी है.
सिंह ने बैठकों के बारे में विस्तार से बताए बिना कहा, ‘हम विधायकों और अन्य सदस्यों की सहायता से शांति वार्ता की दिशा में बहुत प्रयास कर रहे हैं. सिलचर में बैठकें हुई हैं और हम जल्द ही इसकी घोषणा करेंगे.’
राज्य में जारी हिंसा को ‘अप्रत्याशित और अवांछित घटनाक्रम’ बताते हुए सिंह ने आरोप लगाया कि कुछ मुद्दों का राजनीतिकरण किया जा रहा है, जिससे स्थिति जटिल हो रही है.
सिंह ने कहा, ‘कुछ तत्व ऐसे हैं जो उन कुछ मुद्दों का राजनीतिकरण कर रहे हैं जिन्हें अभी तत्काल नहीं संभाला जा सकता. मैं सभी से ऐसी गतिविधियों में शामिल न होने की अपील करता हूं. गंभीर कानून व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए गिरफ्तारी सहित कड़े उपाय करने से नकारात्मक नतीजे हो सकते हैं.’
मुख्यमंत्री ने विधानसभा को यह भी बताया कि राज्य में जातीय हिंसा के कारण 226 लोग मारे गए हैं और 11,133 घर जला दिए गए हैं, जबकि 59,000 से अधिक विस्थापित लोगों को राहत शिविरों में शरण दी गई है.
मेईतेई और हमार समुदाय जिरीबाम में शांति बहाल करने पर सहमत हुए
मेईतेई और हमार समुदाय के प्रतिनिधियों ने हिंसा से प्रभावित जिरीबाम जिले में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए ठोस प्रयास करने पर सहमति जताई है. समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक असम के कछार में सीआरपीएफ सुविधा केंद्र में गुरुवार को हुई बैठक में यह सहमति बनी.
जिरीबाम जिला प्रशासन, असम राइफल्स और सीआरपीएफ कर्मियों द्वारा संचालित इस बैठक में जिरीबाम जिले के थाडू, पैते और मिजो समुदायों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए.
बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में पुष्टि की गई कि दोनों पक्षों ने सामान्य स्थिति बहाल करने और आगजनी और गोलीबारी की घटनाओं को रोकने के लिए पूर्ण प्रयास करने की प्रतिबद्धता जताई है. दोनों पक्षों ने क्षेत्र में कार्यरत सुरक्षा बलों के साथ पूर्ण सहयोग करने और नियंत्रित और समन्वित आवाजाही को सुविधाजनक बनाने का वचन दिया है.
अगली बैठक 15 अगस्त को निर्धारित है.
जिरीबाम, जो पहले संघर्ष से काफ़ी हद तक अछूता था, जून में एक किसान का क्षत-विक्षत शव मिलने के बाद हिंसा से झुलसने लगा. इसके कारण आगजनी हुई और हज़ारों लोगों को राहत शिविरों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. साथ ही, जुलाई के मध्य में गश्त के दौरान आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में एक सीआरपीएफ जवान की मौत हो गई थी.