सुप्रीम कोर्ट ने नीट-यूजी परीक्षा में अनियमितताओं के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी की आलोचना की

सुप्रीम कोर्ट ने नीट-यूजी परीक्षा में अनियमिताओं को लेकर एनटीए की आलोचना करते हुए उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र बदलने, दोबारा नए रजिस्ट्रेशन करने और ग्रेस अंक दिए जाने के फैसले पर सवाल उठाए हैं.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 अगस्त) को राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (स्नातक) (नीट-यूजी) 2024 परीक्षा के संबंध में अपने असंगत निर्णयों के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की आलोचना की, जिसमें छात्रों के हितों को नुकसान पहुंचाने वाली ‘अनियमितताओं’ का हवाला दिया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष अदालत के विस्तृत निर्णय में 23 जुलाई के अपने आदेश की व्याख्या की गई, जिसमें पेपर लीक और गड़बड़ी के बावजूद परीक्षा रद्द करने से इनकार कर दिया गया था.

देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को कहा, ‘हमने कहा है कि एनटीए को अब इस मामले में की गई अनियमितताओं से बचना चाहिए. एनटीए में ये अनियमितताएं छात्रों के हित में नहीं हैं.’

अदालत ने एनटीए की खामियों को उजागर किया, जिसमें उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र बदलने की अनुमति देना और ‘पिछले दरवाजे से’ नए पंजीकरण करना शामिल था. इसने उन छात्रों, जिन्हें गलत प्रश्न पत्र मिले थे को ग्रेस अंक मिलने और उन अंकों को बाद में वापस लेने और छात्रों की फिर से परीक्षा लेने के फैसले पर भी सवाल उठाया.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने एनटीए की एक और चूक को उजागर किया, जहां उन्होंने शुरू में उन छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए, जिन्होंने अस्पष्ट शब्दों वाले प्रश्न के लिए वैकल्पिक विकल्प चुना था. हालांकि, बाद में आईआईटी-दिल्ली के एक विशेषज्ञ पैनल ने निर्धारित किया कि प्रश्न का केवल एक ही सही उत्तर था. नतीजतन, अदालत ने एनटीए को परिणामों को तदनुसार संशोधित करने का निर्देश दिया। एनटीए के दो उत्तरों को सही मानने के शुरुआती फैसले के कारण 44 छात्रों ने पूरे 720 अंक हासिल किए थे.

रिपोर्ट में बताया गया है कि मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने एनटीए को ऐसी विसंगतियों से बचने को कहा, जो छात्रों के हित में नहीं हैं.

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने परीक्षा प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए 22 जून को केंद्र सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को आगे के दिशानिर्देश जारी किए हैं. समिति को सुरक्षा उपायों का आकलन और उन्हें बढ़ाने, पंजीकरण के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) विकसित करने, परीक्षा केंद्रों में बदलाव और ओएमआर शीट हैंडलिंग और कदाचार को रोकने के उपाय तलाशने का काम सौंपा गया है.

विशेष रूप से, समिति निम्नलिखित कार्य करेगी: – परीक्षा केंद्र आवंटन प्रक्रियाओं का मूल्यांकन

– सभी केंद्रों पर व्यापक सीसीटीवी निगरानी पर विचार
– पेपर प्रिंटिंग, परिवहन और भंडारण प्रोटोकॉल को बेहतर बनाना
– सुरक्षित परिवहन विकल्पों की खोज करना (परिवहन के लिए खुले ई-रिक्शा के बजाय रीयल-टाइम लॉक वाले बंद वाहनों का उपयोग करना)
– गोपनीयता कानूनों का पालन करते हुए, नकल रोकने के लिए मजबूत पहचान जांच और नए तकनीकी तरीके को लागू करना.

अदालत ने समिति को 30 सितंबर तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. इसके बाद शिक्षा मंत्रालय एक महीने के भीतर इसकी कार्यान्वयन योजना तैयार करेगा और दो सप्ताह बाद अदालत को इसकी प्रगति की जानकारी देगा.

यह निर्णय पेपर लीक और कदाचार के कारण नीटि-यूजी परीक्षा को रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं के जवाब में आया. अदालत ने पाया कि पेपर लीक स्थानीय थे और इससे परीक्षा की समग्र शुचिता प्रभावित नहीं हुई, लेकिन परीक्षा प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को स्वीकार किया.

उल्लेखनीय है कि 5 मई 2024 को देश भर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए ली गई नीट-यूजी परीक्षा शुरुआत से ही विवादों के घेरे में रही है. इस पर पेपर लीक से लेकर अन्य अनियमितताओं तथा कदाचार के आरोप लगते रहे हैं. परीक्षा के परिणाम आने के बाद टॉपरों की संख्या में हुई भारी वृद्धि ने भी इस परीक्षा पर सवाल खड़े किए. कुछ छात्रों को दिए गए ग्रेस अंक ने भी परिणामों की निष्पक्षता पर सवाल उठाए.