प्रसारण विधेयक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ख़तरा है: कांग्रेस

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने केंद्र सरकार के प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक के बारे में कहा कि यह वीडियो डालने, पॉडकास्ट बनाने या समसामयिक मामलों के बारे में लिखने वाले किसी भी व्यक्ति को 'डिजिटल समाचार प्रसारक' मानता है और इन्हें अनावश्यक रूप से नियमों के दायरे में लाता है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्र मीडिया के लिए ‘प्रत्यक्ष खतरा’ है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि ‘सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स से लेकर स्वतंत्र समाचार इकाइयों तक, मीडिया संबंधी सामग्री तैयारी करने (कंटेंट क्रिएटर्स) वालों पर सरकार का बढ़ता नियंत्रण प्रेस की स्वतंत्रता को ख़तरे में डालता है और स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाता है.’

खेरा ने कहा, ‘यह विधेयक वीडियो डालने, पॉडकास्ट बनाने या समसामयिक मामलों के बारे में लिखने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘डिजिटल समाचार प्रसारक’ मानता है. यह स्वतंत्र रूप से समाचारों का कवरेज करने वाले व्यक्तियों और छोटी टीमों को अनावश्यक रूप से नियमों के दायरे में लाता है.’

खेरा ने एक्स पर लिखा, ‘इससे समय पर समाचार मिलने में देरी होगी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.’

उन्होंने कहा, ‘यह विधेयक छोटे कंटेंट क्रिएटर्स पर नियमों का भारी बोझ डालता है और उनके साथ बड़े मीडिया घरानों की तरह व्यवहार करता है. कई स्वतंत्र पत्रकारों के पास अनुपालन के लिए संसाधनों की कमी है, जिसके चलते उनका काम करना बंद हो सकता है.’

उन्होंने कहा कि ‘अपने प्लेटफॉर्म से पैसे कमाने वाले कंटेंट क्रिएटर्स को पारंपरिक प्रसारकों की तरह ही कड़े नियमों का सामना करना पड़ेगा. यह इस क्षेत्र में आने के इच्छुक नए लोगों को हतोत्साहित करता है और सामग्री निर्माण करने वाले स्वतंत्र निर्माताओं की आर्थिक क्षमता को नुकसान पहुंचाता है. यह कुछ वैसा ही है जैसे सरकार ने भारत में क्रिप्टो बाजार को खत्म कर दिया है.’

खेड़ा ने यह भी आरोप लगाया कि विधेयक की मसौदा प्रक्रिया में नागरिक समाज, पत्रकारों और प्रमुख हितधारकों को शामिल नहीं किया गया, जिससे इसकी पारदर्शिता और समावेशिता को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं.

उन्होंने कहा कि नकारात्मक प्रभाव डालने वाले सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स की निगरानी और नियमों की अनुपालना न करने पर आपराधिक कार्रवाई का प्रावधान असहमतिपूर्ण आवाजों और स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए खतरा है.

उन्होंने आगे कहा कि यह विधेयक ऑनलाइन जगत में अत्यधिक निगरानी का मार्ग प्रशस्त करेगा.

बता दें कि प्रसारण विधेयक के नए मसौदे में प्रावधान है कि सोशल मीडिया यूजर्स ‘डिजिटल समाचार प्रसारक’ कहलाएंगे. प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2024 में ‘डिजिटल समाचार प्रसारकों’ की नई श्रेणी शामिल की गई है, जिसके तहत नियमित रूप से सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करने वालों, पॉडकास्ट बनाने वालों या समसामयिक मामलों पर ऑनलाइन लिखने वालों को ‘डिजिटल समाचार प्रसारक’ माना जाएगा.

विधेयक का नया मसौदा नवंबर 2023 को जारी पहले संस्करण को आगे बढ़ाता है, जिसमें सरकार ने प्रसारकों के लिए सभी नियमों को एक ही कानून के तहत संयोजित करने की योजना बनाई थी. मौजूदा संस्करण में सभी समाचार निर्माताओं को एक ही श्रेणी में शामिल करके इन चिंताओं को संबोधित किया गया है.

नए संस्करण के तहत ‘समाचार और समसामयिक मामलों के कार्यक्रमों’ में ऑडियो, विजुअल या ऑडियो-विजुअल सामग्री, चिह्न, संकेत, लेखन, तस्वीरों के साथ-साथ टेक्स्ट भी शामिल होगा, जिन्हें ‘सीधे या प्रसारण नेटवर्क का उपयोग करके प्रसारित किया जाता है.’

अब, टेक्स्ट भी कार्यक्रम और प्रसारण की परिभाषाओं का हिस्सा है.

बता दें कि विधेयक का पिछला संस्करण विवादास्पद रहा था, क्योंकि नेटवर्क ऑफ वीमेन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्ल्यूएमआई) ने चेतावनी दी थी कि यह केंद्र सरकार को भारत के समाचार और मनोरंजन उद्योगों को विनियमित करने के लिए अनुपातहीन शक्ति प्रदान करेगा और यह भी कहा कि यह देश में ‘स्वतंत्र मीडिया, स्वतंत्र अभिव्यक्ति और रचनात्मक स्वतंत्रता को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है.’

प्रसारण विधेयक में ऑनलाइन विज्ञापन से संबंधित परिवर्तन और बिचौलियों (ये दोनों ही दिशा-निर्देश सरकार द्वारा नए विधेयक के तहत दी गई शक्तियों के साथ निर्धारित किए जा सकते हैं) तथा ओटीटी प्रसारण सेवाओं के लिए नए दायित्व भी शामिल हैं. इसमें अब न केवल नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम वीडियो जैसे प्लेटफ़ॉर्म शामिल हैं, बल्कि सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर भी शामिल हैं. अंतिम समूह में पत्रकार भी शामिल हो सकते हैं.