नई दिल्ली: मानसिक बीमारियों को अक्सर शहरों से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन गुरुवार (8 अगस्त) को जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि ग्रामीण भारत के लोगों में भी में चिंता (एंग्जायटी) के मामले बढ़ गए हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, शोध में लगभग 45 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने एंग्जायटी का सामना किया है.
इस अध्ययन का एक प्रमुख निष्कर्ष मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित है, जिससे पता चलता है कि एंग्जायटी अब केवल ‘शहरी’ लोगों की समस्या नहीं रह गई है.
मालूम हो कि यह सर्वेक्षण ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया और उसकी पहल डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है.
इस अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण भारत के 45 प्रतिशत लोगों को ज्यादातर वक्त एंग्जायटी की समस्या रहती है, जो उनके मनोस्थिति को प्रभावित करती है. डेटा से पता चलता है कि एंग्जायटी युवा लोगों की तुलना में बुजुर्ग लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा प्रभाव डालती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 18-25 वर्ष की आयु के 40 प्रतिशत लोगों ने एंग्जायटी महसूस करने की बात स्वीकार की है, जबकि 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में यह अनुपात बढ़कर 53 प्रतिशत हो गया है.
रिपोर्ट में स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से परिवार के सदस्यों के अलावा किसी दूसरे से देखभाल (Neighbourhoods of Care) को लेकर ग्रामीण भारत की अवधारणा के बारे में भी बात की गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बुजुर्ग सदस्यों वाले 73 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को निरंतर देखभाल की आवश्यकता है, लेकिन वे कोई कीमत देकर किसी और से ऐसी सेवा लेने के लिए तैयार नहीं हैं. इस ओर उनका अधिक रूझान नहीं दिखाई देता. सर्वे के दौरान केवल तीन प्रतिशत लोग ही ऐसे मिले, जिन्होंने कभी इस तरह की सेवा का लाभ उठाया है.
वहीं, ज्यादातर लोगों ने परिवार के सदस्यों द्वारा ही देखभाल को पसंद किया, जिसमें मुख्य रूप से महिलाएं हैं, जो पूरे घर की जिम्मेदारी देखती हैं. इसके लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता को लेकर भी रिपोर्ट में ध्यान आकर्षित किया गया है.