साउथ एशियन यूनिवर्सिटी विवाद: श्रीलंकाई प्रोफेसर ने अपने देश के राजदूत के रुख़ की निंदा की

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के एक छात्र के शोध प्रस्ताव में अमेरिकी भाषाविद् नोम चॉम्स्की द्वारा नरेंद्र मोदी की आलोचना का ज़िक्र था. इस पर छात्र को नोटिस मिला और उनके श्रीलंकाई मूल के सुपरवाइज़र, प्रोफेसर ससांक परेरा के ख़िलाफ़ जांच शुरू की गई, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था.

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी. (फोटो साभार: विदेश मंत्रालय वेबसाइट)

नई दिल्ली: साउथ एशियन यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट स्कॉलर को नोटिस दिए जाने और उसके श्रीलंकाई सुपरवाइजर के खिलाफ हुई अनुशासनात्मक कार्रवाई के विवाद ने नया मोड़ ले लिया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में श्रीलंका की उच्चायुक्त द्वारा अधूरी जानकारी का दावा करते हुए उनकी पूर्व में व्यक्त की गईं चिंताओं को वापस लेने के बाद, विश्वविद्यालय से इस्तीफा देने वाले जाने-माने श्रीलंकाई समाजशास्त्री ससांक परेरा ने उनके कृत्य को ‘न केवल अकल्पनीय बल्कि अपमानजनक’ बताया है.

प्रोफेसर ससांक परेरा.

दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (एसएयू) एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान है, जिसका प्रबंधन और वित्तपोषण आठ सार्क सदस्य देशों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है. दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय अधिनियम- 2008 के प्रावधानों के अनुसार, इसकी मेजबानी भारत द्वारा की जाती है और इसका प्रशासन विदेश मंत्रालय द्वारा संभाला जाता है.

पिछले साल नवंबर में एक डॉक्टरेट स्कॉलर ने कश्मीर के नृवंशविज्ञान (Ethnography) और राजनीति पर एक शोध प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसे सामाजिक विज्ञान के डीन को भेजे जाने से पहले सुपरवाइजर प्रोफेसर ससांक परेरा ने मंजूरी दी थी.

करीब छह महीने बाद विश्वविद्यालय ने पहले अप्रैल में परेरा को और फिर मई में डॉक्टरेट छात्र को स्पष्टीकरण मांगते हुए नोटिस भेजा.

नोटिस में स्कॉलर से उनके द्वारा अपलोड किए गए एक निजी यूट्यूब वीडियो का हवाला देते हुए स्पष्टीकरण मांगा गया. वीडियो में प्रसिद्ध भाषाविद् नोम चॉम्स्की ने कथित तौर पर दावा किया था कि मोदी ‘एक कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी परंपरा से आते हैं’ और ‘भारतीय धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को खत्म करने’ तथा ‘हिंदूवादी व्यवस्था को लागू करने’ की कोशिश कर रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, श्रीलंकाई उच्चायुक्त क्षेनुका सेनेविरत्ने ने 23 अप्रैल को एसएयू के अध्यक्ष केके अग्रवाल से मुलाकात की और कथित तौर पर परेरा के खिलाफ जांच को लेकर अपनी ‘चिंताएं’ व्यक्त कीं.

अखबार की खबर के मुताबिक, उसी मुलाकात के अगले चरण में उन्होंने 12 मई को एक पत्र भी लिखा, जिसमें उन्होंने स्थिति को ठीक नहीं बताया. हालांकि, 9 अगस्त को प्रकाशित इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के जवाब में श्रीलंकाई उच्चायुक्त ने कहा कि रिपोर्ट ने गलत जानकारी दी है कि चॉम्स्की द्वारा एनडीए सरकार की आलोचना को शोध प्रस्ताव में शामिल किए जाने के बाद उन्होंने प्रोफेसर परेरा के संबंध में एसएयू द्वारा उस समय की गई कार्रवाई पर चिंता व्यक्त की थी.

श्रीलंकाई उच्चायुक्त ने गुरुवार को कहा कि उस समय उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि यह कार्रवाई एक पीएचडी स्कॉलर द्वारा लिए साक्षात्कार में भाषाविद् नोम चॉम्स्की द्वारा एनडीए सरकार की आलोचना से जुड़ी है. उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा विश्वविद्यालय को अभ्यावेदन दिए जाने के समय उक्त साक्षात्कार की जानकारी उच्चायोग को नहीं दी गई थी.

उन्होंने दावा किया कि ‘स्कॉलर के प्रस्ताव में उक्त साक्षात्कार को शामिल करने का संदर्भ सबसे पहले उच्चायोग को इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से पता चला.’

सेनेविरत्ने ने यह भी जोड़ा कि अख़बार की रिपोर्ट दुर्भाग्य से मौजूदा मजबूत द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मकता असर डाल सकती है.

बता दें कि 27 जुलाई को इंडियन एक्सप्रेस ने सबसे पहले बताया था कि एसएयू ने एक शोध छात्र और उसके पीएचडी सुपरवाइजर श्रीलंका के समाजशास्त्री ससांक परेरा, को नोटिस जारी कर उनके आचरण को लेकर स्पष्टीकरण मांगा था. पीएचडी छात्र के डॉक्टरेट शोध प्रस्ताव में अमेरिकी भाषाविद् नोम चॉम्स्की द्वारा एनडीए सरकार की आलोचना का हवाला दिया गया था.

श्रीलंकाई उच्चायुक्त के अपने बयान से मुकरने और इस बात का दावा करने के बाद कि उन्हें जानकारी नहीं दी गई थी, परेरा ने एक बयान जारी किया कि उनके पत्र के कारण ‘मेरे लिए चुप रहना मुश्किल हो गया है, क्योंकि अब यह श्रीलंकाई राज्य की अखंडता पर मेरे भरोसे का मामला है, खासकर जब विदेशों में अपने नागरिकों की सुरक्षा की बात आती हो.’

उन्होंने अपने बयान में लिखा, ‘मेरी दिलचस्पी सिर्फ उच्चायुक्त की भूमिका के बारे में है, जिन्होंने मुझे धोखा दिया. बीस साल से ज़्यादा समय तक राष्ट्र के लिए और लगभग तेरह साल तक दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय के लिए मेरी सेवाओं की सार्वजनिक रूप से अवहेलना की. उनका श्रीलंकाई सरकार के प्रतिनिधि, जिसकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी विदेशों में देश के नागरिकों के कल्याण की देखभाल करना है, के रूप में यह करना न केवल समझ से परे है बल्कि अपमानजनक भी है.’

उन्होंने कहा कि उच्चायुक्त का यह दावा कि मैंने छात्र के प्रस्ताव और इसमें नोम चॉम्स्की द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना के संदर्भ में विवरण नहीं दिया था, सरासर झूठ है.

उन्होंने कहा, ‘जब मैं 18 अप्रैल 2024 को दोपहर 3 बजे उच्चायुक्त से उनके कार्यालय में मिला तो मेरी बातचीत 13 अप्रैल 2024 के एक पत्र पर आधारित थी, जिसमें मैंने उन्हें उस समय तक की स्थिति के बारे में बताया था. बैठक में मैंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि विश्वविद्यालय के लिए विवाद का कारण प्रोफेसर चॉम्स्की के एक बयान में प्रधानमंत्री की आलोचना थी, जिसका उपयोग मेरे छात्र ने अपने प्रस्ताव में किया था.’

श्रीलंका के समाजशास्त्री, जिन्होंने एसएयू में विभाग की स्थापना की, ने कहा कि मैंने बताया था कि यह बयान न तो मेरा था और न ही छात्र का, बल्कि सामाजिक विज्ञान में मानक शैक्षणिक अभ्यास के हिस्से के रूप में इसका इस्तेमाल किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘मैंने यह भी सुझाव दिया कि वह उस समय मेरे पास मौजूद दस्तावेजों (जिनकी हार्ड कॉपी मैं बैठक में ले गया था) को देखें ताकि पूरा मामला स्पष्ट हो जाए. उन्होंने बिना संकोच कहा कि उन्हें इन्हें देखने की आवश्यकता नहीं है. बैठक में या बाद में मुझसे कुछ और प्रस्तुत करने का अनुरोध नहीं किया गया.’

परेरा ने कहा कि यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में श्रीलंका के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में उनका मानना ​​है कि विश्वविद्यालय से जुड़ा एक दुर्भाग्यपूर्ण और बेवजह का शैक्षणिक मामला भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है.’

परेरा ने कहा, ‘क्या हमारे दोनों देशों के बीच संबंध इतने नाजुक हैं? क्या इन देशों के नेता और उनके अधिकारी इतने भोले हैं कि वे एक कूटनीतिक घटना और एक विश्वविद्यालय मामले के बीच अंतर नहीं कर पा रहे हैं?’

परेरा ने कहा कि ‘इस मामले में श्रीलंकाई उच्चायुक्त की भूमिका विदेश में रहने के दौरान श्रीलंकाई सरकार द्वारा मुझे संरक्षित किए जाने के मेरे अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है.’

द वायर ने श्रीलंकाई उच्चायोग से प्रतिक्रिया मांगी है और प्रतिक्रिया मिलते ही रिपोर्ट में जोड़ी जाएगी.

दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय ने पहले परेरा के इस्तीफे के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में कहा था कि ‘किसी पीएचडी प्रस्ताव के कारण प्रोफेसर को इस्तीफा नहीं देना पड़ा है.’