एनसीईआरटी ने बारहवीं की किताब से गठबंधन की राजनीति से जुड़ा कार्टून हटाया

एनसीईआरटी ने कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से देश में गठबंधन सरकार चला चुके प्रधानमंत्रियों को दिखाने वाले एक कार्टून को यह कहते हुए हटाया है कि यह भारत को नकारात्मक तरीके से दिखाता है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से एक राजनीतिक कार्टून हटा दिया है, जिसमें कहा गया है कि ‘यह भारत को नकारात्मक रोशनी में दिखाता  है.’

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, यह एनसीईआरटी द्वारा एक दस्तावेज़ पेश करते हुए इसके द्वारा पाठ्यपुस्तकों को ‘युक्तिसंगत’ बनाने के प्रयास में किए गए कई बदलावों के बारे में बताया गया है. कार्टून हटाना उनमें से एक है.

हटाए गए कार्टून में 1990 के बाद के राजनीतिक नेताओं को दिखाया गया था और स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति के अध्याय 8 – भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम में उनकी संबंधित सरकारों के अस्तित्व पर सवाल उठाए गए थे.

कार्टूनिस्ट रविशंकर द्वारा बनाए गए और मूल रूप से ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका में प्रकाशित कार्टून में वीपी सिंह (1990), चंद्रशेखर (1990), पीवी नरसिम्हा राव (1991), एचडी देवेगौड़ा (1996), आईके गुजराल (1997) और अटल बिहारी वाजपेयी (1998) और उनकी गठबंधन सरकारों और लोकतंत्र के अस्तित्व पर सवालों की एक श्रृंखला थी.

कार्टून ने भारत में गठबंधन की राजनीति के लंबे दौर को दिखाया गया था, जो 1989 में सिंह के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय मोर्चे, 1996-97 में संयुक्त मोर्चे, 1998 में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन, 1999 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), 2004 और 2009 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पर लागू होता है.

हालांकि, यह प्रवृत्ति 2014 में बदल गई जब भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत मिला और उसने एनडीए सरकार का नेतृत्व किया. हालांकि, एक दशक बाद भारत में 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद फिर से केंद्र में गठबंधन सरकार है.

एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित दस्तावेज, जिसमें इन परिवर्तनों को दर्शाया गया है, अप्रैल माह का है, जो 2024 के चुनाव से पहले का है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन सरकार का गठन होने वाला था, जिसमें भाजपा के पास स्वयं बहुमत नहीं है.

कार्टून की जगह दो छात्रों के बात करते हुए चित्र (इलस्ट्रेशन) से बदल दिया गया है. नए चित्रण में एक छात्र सवाल करता है, ‘क्या इसका मतलब यह है कि हमारे पास हमेशा गठबंधन रहेगा? या क्या राष्ट्रीय दल फिर से अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं?’, जिस पर दूसरा जवाब देता है, ‘मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि यह एक पार्टी या गठबंधन सरकार है. मैं इस बात से अधिक चिंतित हूं कि वे क्या करते हैं. क्या गठबंधन सरकार में अधिक समझौते शामिल हैं? क्या हम गठबंधन में साहसिक और कल्पनाशील नीतियां नहीं बना सकते हैं?’

न्यूज़ वेबसाइट द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में सीबीएसई से संबद्ध एक स्कूल में राजनीति विज्ञान के शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘इस कार्टून के माध्यम से हमने छात्रों को कमजोर गठबंधन सरकारों के तहत प्रधानमंत्रियों के छोटे कार्यकाल और देश में राजनीतिक अस्थिरता के बारे में बताया. यह वह दौर भी था जब कांग्रेस को अपने दम पर बहुमत नहीं मिल सका और क्षेत्रीय दलों का उदय भी हुआ.’

एनसीईआरटी के अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर द प्रिंट को बताया कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई गठबंधन सरकार के गठन से पहले पाठ्यपुस्तकों में बदलाव किए गए थे.

संपर्क करने पर एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने बदलाव पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

हालांकि, दिल्ली स्थित एक स्कूल में राजनीति विज्ञान के एक अन्य शिक्षक ने कहा कि कार्टून को शायद इस सवाल के कारण हटाया गया होगा कि यह वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में अप्रासंगिक है.

पाठ्यपुस्तकों में ये बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के तहत नए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे के आधार पर पूरे एनसीईआरटी पाठ्यक्रम को संशोधित करने की चल रही कवायद का हिस्सा नहीं हैं. एनसीईआरटी ने इस साल एनईपी 2020 के तहत केवल कक्षा 3 और 6 के लिए नई पाठ्यपुस्तकें जारी की हैं, जबकि यह अभी भी अन्य कक्षाओं के लिए पाठ्यपुस्तकों पर काम कर रहा है.

मालूम हो कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा इस वर्ष जारी कक्षा तीन और कक्षा छह की कई पाठ्यपुस्तकों से संविधान की प्रस्तावना को हटा दिया गया है. इससे पहले एनसीईआरटी ने छठी कक्षा की सामाजिक विज्ञान की किताब से जाति और वर्ण व्यवस्था का उल्लेख भी हटाया है.

नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में जारी की गई पहली सामाजिक विज्ञान की पुस्तक ‘एक्सप्लोरिंग सोसाइटी इंडिया एंड बियॉन्ड’ में जाति व्यवस्था का उल्लेख किए बिना वेदों के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है, और इसका भी उल्लेख नहीं किया गया है कि महिलाओं और शूद्रों को इन ग्रंथों का अध्ययन करने की अनुमति नहीं थी.