प्रसारण विधेयक: मोदी सरकार जुलाई वाले मसौदे से पीछे हटी, नवंबर 2023 वाला मसौदा वापस लाई

भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बीते जुलाई माह में प्रसारण विधेयक का एक नया मसौदा लेकर आई थी, जिसे चुनिंदा लोगों को भेजा गया था. उक्त मसौदे में सोशल मीडिया पर नकेल कसने के प्रावधान थे, लेकिन अब सरकार ने वापस नवंबर 2023 वाले मसौदे पर सुझाव मांगे हैं.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) ने प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक की स्थिति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर सरकार की मंशा को लेकर अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है.

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सोशल मीडिया पर कहा है कि वह ‘प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक के मसौदे पर काम कर रहा है. मसौदा विधेयक को हितधारकों और आम जनता की टिप्पणियों के लिए व्याख्यात्मक नोट के साथ 10.11.2023 को सार्वजनिक किया गया था.’

मंत्रालय ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में पिछले साल सार्वजनिक किए गए मसौदे का संस्करण भी संलग्न किया गया है. पोस्ट में विभिन्न संगठनों समेत लोगों से कई सिफारिशें/टिप्पणियां/सुझाव प्राप्त होने की बात कही गई है. साथ ही, कहा गया है कि 15 अक्टूबर 2024 तक टिप्पणियां/सुझाव आमंत्रित करने के लिए अतिरिक्त समय दिया जा रहा है और विस्तृत परामर्श के बाद एक नया मसौदा प्रकाशित किया जाएगा.

बीते 4 जून को सत्ता में वापसी – बिना पूर्ण बहुमत के – के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने सबसे पहला जो काम किया, वह था दिसंबर के मसौदे में परिवर्तन के वॉटरमार्क संस्करणों की लगभग 14 प्रतियां चुनिंदा ‘हितधारकों’ को जारी करना. कोई सार्वजनिक परामर्श नहीं हुआ, इसके बजाय यह अपेक्षा की गई कि वॉटरमार्क यह सुनिश्चित करेगी कि विशिष्ट और कठोर प्रावधान, जिनमें सभी प्रकार के सोशल मीडिया पोस्ट और टिप्पणीकारों को तथाकथित विनियमन व्यवस्था के अंतर्गत लाने तथा बड़े समाचार प्रसारकों के समान व्यवहार करने का आह्वान किया गया है, जनता तक नहीं पहुंच पाएंगे.

लेकिन इसके बाद आलोचना और चिंताओं की झड़ी लग गई, मीडियाकर्मियों, यूट्यूबर्स और उद्योग जगत ने भी विधेयक के प्रति अपनी असहजता व्यक्त की. मनीकंट्रोल लिखता है कि यह प्रयास न्यूज़ इंफ्लुएंसर्स को डिजिटल समाचार प्रसारक और अन्य रचनाकारों (क्रिएटर्स) को ओटीटी प्रसारण सेवा के रूप में नामित करने का था. मसौदा विधेयक में कहा गया कि इस प्रस्तावित कानून की अधिसूचना से एक महीने की अवधि के भीतर, ओटीटी प्रसारण सेवा संचालकों और डिजिटल समाचार प्रसारकों को अपने कार्यों के बारे में केंद्र सरकार को सूचना देनी होगी.’

मनीकंट्रोल ने यह भी लिखा कि अब वापस लिए जा चुके मसौदा विधेयक में ‘रचनाकारों के लिए कई अन्य आवश्यक अनुपालनों का भी प्रस्ताव किया गया था, यह एक ऐसा कदम था जिसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने और सेंसरशिप को लेकर चिंताएं पैदा कीं.’

सोमवार (12 अगस्त) को जब यह खबर आई कि सरकार ने दूसरे मसौदे की भौतिक प्रतियां भी वापस मांगीं हैं, तो विधेयक के आलोचकों ने इसे मोदी सरकार द्वारा विधेयक को ठंडे बस्ते में डालने के रूप में देखा.

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा मसौदा विधेयक बिना किसी टिप्प्णी के वापस मांगे जाने के संबंध में कई खबरों के सामने आने के बाद मंत्रालय ने सोशल मीडिया पर उपरोक्त बयान दिया है.

अब नए सवाल उभरकर सामने आए हैं, जिनका जवाब मिलना बाकी है. डिजिटल प्राइवेसी अधिकार समूह इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने कहा है, ‘मंत्रालय के निजी विचार-विमर्श और कार्य ने हमें एक बार फिर अंधेरे में छोड़ दिया है. इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि इस कदम के पीछे असली कारण क्या हैं. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय अगर किन्हीं प्रावधानों पर विचार कर रहा है, तो वह कौन से प्रावधान हैं और क्या नया संस्करण सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया जाएगा.’

मंत्रालय मसौदे के जिस पुराने संस्करण का जिक्र कर रहा है, उसमें पूरी तरह से नियंत्रित मीडिया वातावरण और डिजिटल मीडिया को सरकार और कार्यकारी नियंत्रण में धकेलने की कोशिश की सभी कठोर विशेषताएं थीं. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दायर याचिकाओं से कम से कम आंशिक रूप से इतना तो पता चल गया था कि पहला मसौदा प्रसारित होने के बाद मंत्रालय को नकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिली थीं.

यह देखना अभी बाकी है कि क्या भाजपा, जिसके पास अब 63 सांसद कम हैं और लोकसभा में उसका अपना बहुमत नहीं है, अपने पुराने एजेंडे को आगे बढ़ाने में अधिक संयमित और कम सक्षम होगी, जिसके तहत वह सभी मीडिया और अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है, जैसा कि आईटी नियमों के तहत स्पष्ट है.आईटी नियमों पर कम से कम दो हाईकोर्ट रोक लगा चुके हैं.

आप पुराने मसौदे के बारे में यहां विस्तार से पढ़ सकते हैं, जिसके बारे में सरकार ने कहा है कि वह इस पर 15 अक्टूबर तक टिप्पणियां चाहती है.