छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों की बढ़ती मौजूदगी, बस्तर में हर नौ नागरिक पर एक सुरक्षाकर्मी: रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ के बस्तर में मानवाधिकारों की चिंताजनक स्थिति पर एक हालिया रिपोर्ट कहती है कि सुरक्षा बलों के शिविरों को सरकार माओवादी आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए ज़रूरी बताती है, वहीं ग्रामीणों का कहना है कि शिविरों से उन्हें अधिक असुरक्षा महसूस होती है.

(फोटो साभार: Citizen's Report)

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बस्तर में मानवाधिकारों की चिंताजनक स्थिति को लेकर सोमवार (12 अगस्त) को नई दिल्ली के प्रेस क्लब में नागरिक समूह ने एक रिपोर्ट जारी की है.

सुरक्षा और असुरक्षा, बस्तर संभाग, छत्तीसगढ़, 2023 – 2024’ वाली इस रिपोर्ट में बस्तर में सुरक्षा बलों के शिविरों की संख्या बढ़ने पर प्रकाश डाला गया है, और कहा गया है कि ऐसे शिविरों के चलते यह इलाका भारत के सबसे सैन्यीकृत क्षेत्रों में से एक बन गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 से सरकार ने यहां लगभग 250 सुरक्षा बलों के शिविर स्थापित किए हैं. वहीं, इस वर्ष की शुरुआत में 50 अतिरिक्त शिविरों की घोषणा की गई है, जिससे यहां हर नौ नागरिकों पर एक सुरक्षा कर्मी तैनात हो गया है.

ये शिविर अक्सर आदिवासियों की निजी या सामुदायिक भूमि पर बिना उनकी सहमति के स्थापित किए जाते हैं, जिससे इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.

बस्तर में ये विरोध प्रदर्शन बीते कई सालों से चल रहे हैं, लेकिन इन्हें किसान आंदोलन, आरक्षण या नागरिकता संशोधन कानून जैसी मीडिया कवरेज नहीं मिली है. लोगों के बीच राष्ट्रीय स्तर पर इसे लेकर बहुत कम जागरूकता है. इन प्रदर्शनों को राज्य और केंद्र सरकार दोनों द्वारा ही नज़रअंदाज़ किया गया है.

नारायणपुर ज़िले के एक धरनास्थल पर बैनर. (फोटो साभार: Citizen’s Report)

शिविरों से स्थानीय लोगों की आजीविका तक छिन जाती है

सुरक्षा बलों के इन तमाम शिविरों को लेकर जहां सरकार का दावा है कि ये ‘क्षेत्रीय वर्चस्व’ सुनिश्चित करने और माओवादी आंदोलन के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए जरूरी हैं, वहीं ग्रामीणों का कहना है कि इन शिविरों से उन्हें अधिक असुरक्षा महसूस होती है और उनकी आजीविका तक छिन जाती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘सरकार के अनुसार अर्धसैनिक बलों के शिविर सड़कें बिछाने, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और मतदान केंद्र बनाने के लिए आवश्यक हैं. वे यह भी दावा करते हैं कि शिविरों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन ‘माओवादियों द्वारा उकसाया गया’ है क्योंकि वे सुरक्षा बलों की घुसपैठ से घबराए हुए हैं.’

वहीं, ग्रामीणों के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि स्थानीय लोगों का मानना है कि इन शिविरों का मुख्य उद्देश्य खनन कंपनियों की सुरक्षा है. इन समुदायों का कहना है कि सुरक्षा बलों के शिविर और खनन उनके लिए अस्तित्व का खतरा पैदा कर रहे हैं.

मालूम हो कि साल 2023 में चिंतित नागरिकों का एक समूह इस क्षेत्र का दौरा करने, दावों और प्रतिदावों की जांच करने के लिए एक साथ आया था. ये रिपोर्ट उस यात्रा के दौरान की गई जांच और उसके बाद एकत्र की गई हालिया घटनाओं की जानकारी का परिणाम है.

सुरक्षा बलों के शिविर और सड़क निर्माण आंतरिक रूप से जुड़े 

गौरतलब है कि बस्तर क्षेत्र अपने लौह अयस्क और अन्य खनिज भंडारों के लिए जाना जाता है. यहां सुरक्षा बलों के शिविर और सड़क निर्माण आंतरिक रूप से जुड़े हुए हैं. लोगों का कहना है कि वो सड़क निर्माण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ये उनका संवैधानिक अधिकार है कि उनसे इस मामले में सलाह ली जाए.

रिपोर्ट की मानें तो सड़कों की लेआउट और चौड़ाई बताती है कि वे खनन को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से बनाई गई हैं, क्योंकि जहां सड़क निर्माण तेज़ी से बढ़ रहा है, वहां ग्रामीणों के लिए सार्वजनिक परिवहन और अन्य सेवाएं अभी भी अनुपस्थित हैं.

हालांकि, बस्तर में ये भी देखने को मिला है कि जैसे-जैसे इन शिविरों में बढ़ोत्तरी हुई है, मूलवासी बचाओ मंच जैसे संगठनों के प्रतिनिधियों की गिरफ्तारियां बढ़ी हैं.

रिपोर्ट का कहना है कि लोगों को माओवादी आरोपों के तहत फंसाना उनकी वैध संवैधानिक मांगों को दबाने का आसान तरीका है.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2011 से 2022 के बीच बस्तर क्षेत्र में 6,804 गिरफ्तारियांं हुई हैं.

बीजापुर और दोपनापाल को जोड़ने वाली सड़क पर सुरक्षा बलों के शिविर. (फोटो साभार: Citizen’s Report)

फर्ज़ी मुठभेड़ की घटनाओं में भी वृद्धि

इतना ही नहीं, सुरक्षा बलों के शिविर और ज़िला रिजर्व गार्ड जैसे बलों की मौजूदगी से फर्जी मुठभेड़ की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट दावा करती है कि साल 2023-2024 में कथित नक्सलियों और नागरिकों की न्यायेतर हत्याओं की घटनाएं बढ़ी हैं. 1 जनवरी से 15 जुलाई 2024 के बीच 141 हत्याएं हुई हैं. इन मारे गए लोगों में से कई आम नागरिक थे.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि ज्यादातर सुरक्षा बलों के शिविर बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए आधी रात में बना दिए जाते हैं, जिसकी स्थानीय लोगों को खबर तक नहीं होती. इसके लिए ग्रामीणों की खेती वाली पुश्तैनी जमीन को भी हड़प लिया जाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार स्थानीय लोगों की वैध मांगों पर चुप है. यहां पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 (पेसा) और एफआरए नियमों का सरेआम उल्लघंन किया जा रहा है.

युवा इन सुरक्षा बलों के शिविरों का विरोध बीते लंबे समय से मूलवासी बचाओ मंच और बस्तर जन संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले करते आए हैं. इन आंदोलनकारियों  की मांग है कि उनकी जमीन पर अवैध अतिक्रमण बंद किया जाए और क्षेत्र में संविधान की पांचवी अनुसूची का पालन हो. इसके साथ ही उन्हें प्रभावित करने वाले किसी भी फैसले को करने से पहले उनसे परामर्श किया जाए.

(पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)