नई दिल्ली: कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कथित मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) भूमि घोटाला मामले में कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया पर मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है. यह मंजूरी तीन निजी शिकायतकर्ताओं की याचिकाओं पर दी गई है, जिनमें से दो ने पहले ही अदालत में निजी शिकायत दर्ज करा दी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सिद्धारमैया को मैसूर में अपनी पत्नी को 14 आवासीय स्थल आवंटित करने और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए राज्य विकास निगम से 89.73 करोड़ रुपये की चोरी से जुड़े कथित भूमि सौदे के लिए राज्य में विपक्ष की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.
शनिवार के घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस प्रवक्ता रमेश बाबू ने कहा कि राज्यपाल की मंजूरी येदियुरप्पा मामले में दिए हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ है, पक्षपातपूर्ण है और एक साजिश का हिस्सा है. कांग्रेस राज्यपाल के कदम को रद्द करने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू करेगी.
कर्नाटक सरकार द्वारा सोमवार को इस मंजूरी को उच्च न्यायालय में चुनौती दिए जाने की संभावना है.
कथित भ्रष्टाचार के मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ निजी शिकायत दर्ज करने के लिए राज्यपाल की मंजूरी की जरूरत होती है. अदालत में दायर निजी शिकायतों और राज्यपाल द्वारा दी गई मंजूरी के आधार पर अदालत तय करेगी कि मामले में एफआईआर दर्ज की जा सकती है या नहीं.
इससे पहले राज्यपाल ने एक निजी शिकायतकर्ता टीजे. अब्राहम को शनिवार को राजभवन में उपस्थित होने को कहा था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अन्य शिकायतकर्ता – प्रदीप और स्नेहमयी कृष्णा हैं.
राजभवन के एक अधिकारी ने बताया, ‘राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी है. यह तीन नागरिकों- टीजे अब्राहम, प्रदीप और स्नेहमयी कृष्णा द्वारा दायर तीन याचिकाओं पर आधारित है.’
इससे पहले 26 जुलाई को राज्यपाल गहलोत ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिसमें उनसे सात दिनों के भीतर जवाब देने के लिए कहा गया था कि उन्हें अभियोजन का सामना क्यों नहीं करना चाहिए.
जवाब में कर्नाटक कैबिनेट ने सिफारिश की थी कि राज्यपाल मुख्यमंत्री को जारी किए गए नोटिस को वापस ले लें, जिसमें उन पर अपनी संवैधानिक भूमिका का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया था.
कथित घोटाला क्या है?
एमयूडीए घोटाला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण की 50:50 प्रोत्साहन योजना में कथित अनियमितताओं से जुड़ा है.
एमयूडीए घोटाले में शहर के दूरदराज के इलाके में कम वांछनीय भूमि के लिए एक प्रमुख क्षेत्र में मूल्यवान भूमि का लेन-देन शामिल है. विपक्षी दलों का दावा है कि यह घोटाला 3,000 करोड़ रुपये का है और इसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती लाभार्थी हैं.
सिद्धारमैया ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि एमयूडीए ने मैसूर के केसरूर में उनकी पत्नी के स्वामित्व वाली चार एकड़ भूमि पर उचित अधिग्रहण के बिना अवैध रूप से एक लेआउट बनाया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, घोटाले की रिपोर्ट सामने आने के बाद विपक्ष के नेता (एलओपी) भाजपा केआर अशोक ने आरोप लगाया कि सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को भी नियमों का उल्लंघन करते हुए एक वैकल्पिक साइट मिली थी. उन्होंने पूछा, ‘आप इसका बचाव कैसे करेंगे?’ उन्होंने कथित अनियमितताओं की सीमा 4,000 करोड़ रुपये बताई.
वहीं, आरटीआई कार्यकर्ता गंगाराजू ने आरोप लगाया कि एमयूडीए द्वारा पार्वती की भूमि पर देवनूर लेआउट विकसित करने के बाद उन्हें विजयनगर में एक वैकल्पिक स्थल आवंटित किया गया, जहां भूमि की कीमतें अधिक थीं.
गंगाराजू का तर्क है कि ऐसा तब किया गया जब विकसित देवनूर लेआउट में ऐसी जगहें उपलब्ध थीं जो पार्वती को दी जा सकती थीं.
आरोप-प्रत्यारोप
इसी बीच, मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं ने राज्यपाल पर भाजपा नेतृत्व के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया. उन्होंने भाजपा पर कर्नाटक में कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने के लिए राजभवन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सिद्धारमैया ने राज्यपाल की मुकदमे की मंजूरी को ‘संविधान विरोधी’ करार देते हुए कहा कि इस पर अदालत में सवाल उठाए जाएंगे.
सिद्धारमैया ने कहा कि राज्यपाल का निर्णय न केवल संविधान के विरुद्ध है, बल्कि कानून के भी विरुद्ध है. सिद्धारमैया ने संवाददाताओं से कहा, ‘पूरा मंत्रिमंडल, पार्टी हाईकमान, सभी विधायक, विधान पार्षद, लोकसभा और राज्यसभा सांसद मेरे साथ हैं.’
उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी राज्यपाल के निर्णय की निंदा की तथा इसे अधिकार का अतिक्रमण बताया तथा जोर देकर कहा कि कानून तथा लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं सरकार की रक्षा करेंगी.
शिवकुमार ने कहा, ‘हम इस देश के लोगों को बताएंगे कि यहां क्या चल रहा है. हम इस पर मंत्रिमंडल में चर्चा करेंगे तथा संविधान के तहत हमारे पास उपलब्ध सभी कानूनी कदम उठाएंगे.’ उन्होंने कहा, ‘हमें न्याय मिलेगा, हम इस सरकार की रक्षा करेंगे.’
सिद्धारमैया और कर्नाटक कांग्रेस के अन्य नेताओं ने कहा है कि राज्यपाल का निर्णय राजनीति से प्रेरित है. उन्होंने राज्यपाल के कदम के पीछे के समय और तर्क पर सवाल उठाया है, खासकर कथित घोटाले की जांच के लिए जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत गठित एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा चल रही जांच को देखते हुए.