नई दिल्ली: मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाकर्मियों की समस्याओं पर प्रकाश डालने वाली जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट आखिरकार अदालत के फैसले के बाद सोमवार (19 अगस्त) को जारी कर दी गई है.
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि मलयालम फिल्म उद्योग (मॉलीवुड) में महिला अभिनेत्रियों को काम के बदले अक्सर ‘समझौता’ करने का दबाव जाता है. इस पुरुष वर्चस्ववादी उद्योग में महिला कलाकारों का यौन शोषण और उत्पीड़न करने के बाद उन्हें मुंह न खोलने की धमकी भी दी जाती है.
मालूम हो कि जस्टिस हेमा समिति ने असल में 295 पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, लेकिन सभी आपबीती बताने वाले कलाकारों के नाम और संवेदनशील जानकारियां हटाने के बाद 235 पन्ने की रिपोर्ट जारी की गई है. समिति ने इसमें कई महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं. ये रिपोर्ट दिसंबर 2019 में सरकार को सौंपी गई थी, जिसे करीब पांच सालों बाद जारी किया गया है.
इससे पहले 13 अगस्त को इस मामले में सुनवाई के दौरान केरल हाईकोर्ट ने रिपोर्ट को जारी करने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद ये रिपोर्ट पीड़ितों और अभियुक्तों के नाम के बिना जारी की गई है. इस रिपोर्ट में ‘कास्टिंग काउच’ की घटना की भी पुष्टि भी की गई है.
रिपोर्ट में यौन शोषण, अवैध प्रतिबंध, भेदभाव, नशीली दवाओं और शराब का दुरुपयोग, वेतन में असमानता और कुछ मामलों में अमानवीय कामकाजी परिस्थिति की भयानक कहानियां बताई गई हैं.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि काम के बदले यौन संबंध (सेक्सुअल फेवर) से मना करने वाली अभिनेत्रियों को प्रोजेक्ट से बाहर निकाल दिया जाता है. अगर अभिनेत्री बात नहीं मानती, तो उनसे एक ही शॉट को बार-बार देने के लिए मजबूर किया जाता है. मलयालम फिल्म उद्योग पर कुछ बड़े निर्माता-निर्देशकों और कालाकारों का राज है, जो अपने मनमुताबिक किसी का करिअर बनाने या बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं.
जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट इस ओर भी ध्यान आकर्षित करती है कि कैसे मलयाम फिल्म उद्योग के पुरुष नशे में धुत होकर महिला कलाकारों के कमरों के दरवाजे खटखटाने जैसी हरकतों में भी शामिल हैं. यहां जो महिला कलाकार समझौता करने के लिए तैयार हो जाती हैं, उन्हें कोड नाम दे दिए जाते हैं और जो समझौता करने के लिए तैयार नहीं होतीं, उन्हें काम नहीं दिया जाता है.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि महिला कलाकारों को बेहद कष्टकर परिस्थितियों में काम करना पड़ता है. प्रत्येक फिल्म के लिए बनने वाली आंतरिक शिकायत समिति निष्प्रभावी है. उद्योग की चमक केवल सतही है, वास्तव में यहां नर्क जैसा माहौल है. एक ‘आपराधिक गिरोह’ मलयालम सिनेमा उद्योग को नियंत्रित कर रहा है, जहां महिलाओं को दबाया जा रहा है.
रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया है कि मुट्ठी भर निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और प्रोडक्शन कंट्रोलर मिलकर एक ‘शक्तिशाली नेक्सस’ (गठजोड़) चला रहे हैं, जो पूरे सिनेमा उद्योग को नियंत्रित कर रहे हैं.
इस रिपोर्ट में मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की समस्या हल करने के लिए एक क़ानून बनाने और उसके तहत एक ट्रिब्यूनल के गठन की सिफारिश की गई है. रिपोर्ट ये भी रेखांकित करती है कि अन्य क्षेत्र जहां कार्यस्थल पर महिलाएं उत्पीड़न का शिकार होती हैं, वहीं, इस उद्योग में इसके उलट महिलाकर्मियों को किसी भूमिका के लिए चुने जाने से पहले ही दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है.
समिति ने कहा है कि ट्रिब्यूनल को एक सिविल कोर्ट के रूप में कार्य करना चाहिए और इसका नेतृत्व किसी सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश, खासकर एक महिला, जिन्हें कम से कम पांच ट्रायल का अनुभव हो, उन्हें करना चाहिए.
वहीं, नए कानून में समिति ने महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास और परिवहन विकल्प, शौचालय और चेंजिंग रूम तक पहुंच, फिल्म सेट पर नशीली दवाओं और शराब पर प्रतिबंध और विशेष रूप से जूनियर कलाकारों के लिए कार्य अनुबंधों का सख्ती से पालन करने का प्रावधान होना चाहिए.
हेमा समिति की रिपोर्ट को लेकर मलयालम सिनेमा उद्योग में महिला पेशेवरों के एक संगठन वूमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (डब्लूसीसी) ने खुशी जाहिर की और साथ ही उम्मीद जताई है कि इन सरकार सिफारिशों का अध्ययन करने और उन पर कार्रवाई करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी.
गौरतलब है कि वर्ष 2017 में एक अभिनेत्री के अपहरण और यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद राज्य सरकार ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की समस्याओं, सुरक्षा, वेतन और काम करने की स्थितियों तथा अन्य मुद्दों पर प्रकाश डालने के लिए इस समिति का गठन किया था.