महाराष्ट्र: ख़ुद को टिस का प्रशासन प्रमुख घोषित करने के बाद रजिस्ट्रार की निर्णय बदलने की मांग

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के रजिस्ट्रार अनिल सुतार ने 20 अगस्त को एक पत्र जारी करते हुए स्वयं को हेड ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन घोषित किया था. अब उन्होंने कुलपति को नया ख़त भेजकर कहा है कि उस आदेश को वापस लिया जाए और एक अन्य कार्यवाहक रजिस्ट्रार नियुक्त किया जाए.

(फोटो साभार: टिस वेबसाइट)

नई दिल्ली: सामाजिक विज्ञान की प्रतिष्ठित संस्था टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) नित-नए मनमाने बदलावों से गुजर रहा है. 20 अगस्त, 2024 को टिस के रजिस्ट्रार अनिल सुतार ने ख़ुद को प्रशासन प्रमुख (हेड ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन) घोषित कर दिया था. इसके लिए उन्होंने एक आदेश जारी किया था, जिस पर उनका ही हस्ताक्षर था.

द हिंदू ने इस घटना को प्रमुखता से छापा, जिसके बाद सुतार ने टिस के कुलपति मनोज कुमार तिवारी को एक आंतरिक पत्र भेजकर आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया.

सुतार ने पत्र में लिखा है, ‘मैं आपके कार्यालय से नरेंद्र मिश्रा को टिस के कार्यवाहक रजिस्ट्रार के रूप में नियुक्त करने के लिए एक नया आदेश जारी करने का अनुरोध करता हूं. मैं आपसे यह भी प्रार्थना करता हूं कि मुझे प्रशासन प्रमुख के रूप में नियुक्त न किया जाए. मैं केवल रिसर्च और एकेडमिक्स पर ध्यान केंद्रित करूंगा और स्कूल ऑफ रिसर्च मेथोडोलॉजी के प्रोफेसर और डीन के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करूंगा.’

सुतार आगे लिखते हैं, ‘महोदय, कृपया सुनिश्चित करें कि 20 अगस्त 2024 का मेरा पिछला आदेश वापस लिया जाए और आपके कार्यालय द्वारा संशोधित नया आदेश जारी किया जाए.’

संस्थान की फैकल्टी को शांत रखने के उद्देश्य से सुतार ने बाद में इस पत्र को सभी फैकल्टी मेंबर्स को भेज दिया. ऐसा करते हुए उन्होंने लिखा है,  ‘मैं किसी भी भ्रम और गलतफहमी से बचने के लिए इसे आपके साथ साझा कर रहा हूं.’

इससे पहले सुतार ने 19 अगस्त को एक अन्य विवादास्पद अधिकारी आदेश जारी किया था, जिसके तहत छात्र संगठन प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम (पीएसएफ) पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इतना ही नहीं छात्रों और शिक्षकों को चेतावनी दी गई थी कि यदि वे इस फोरम का समर्थन करते या उससे जुड़े पाए गए तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.

लगा दिया गया था. इतना ही नहीं छात्रों और शिक्षकों को चेतावनी दी गई थी कि यदि वे इस फोरम का समर्थन करते या उससे जुड़े पाए गए तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.

क्या है पीएसएफ का मामला?

द वायर ने अपनी पिछली रिपोर्ट में बताया था कि यह टिस में किसी संगठन पर प्रतिबंध लागने की पहली घटना है. बता दें कि पीएसएफ एक वामपंथी छात्र संगठन है, जो कई वर्षों से परिसर में सक्रिय है और जिसका मुख्य काम छात्रों के मुद्दे को उठाना रहा है. यह कई मौकों पर सरकार के नज़रिये को आगे बढ़ाने लिए संस्थान की आलोचना भी करता रहा है.

पीएसएस पर प्रतिबंध लगाने के आदेश में लिखा था, ‘यह समूह ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है जो संस्थान के कामकाज में बाधा डालती हैं, संस्थान को बदनाम करती हैं, हमारे समुदाय के सदस्यों को नीचा दिखाती हैं और छात्रों और शिक्षकों के बीच विभाजन पैदा करती हैं.’ संस्थान के प्रशासन ने पीएसएफ पर छात्रों को उनके ‘लक्ष्यों’ से गुमराह करने का भी आरोप लगाया है.

ध्यान रहे कि इस प्रतिबंध से पहले पीएसएफ ने ग्रेजुएशन के लिए आए नए विद्यार्थियों के हॉस्टल का मुद्दा उठाया था. संस्थान को लिखे ईमेल में पीएसएफ ने कहा था कि छात्रों के लिए छात्रावास आवश्यक बुनियादी सुविधा है, जो उन्हें मिलनी ही चाहिए. लेकिन टिस ने इसे लग्जरी मान लिया.

हालांकि, यह पहली बार नहीं था, जब टिस में पीएसएफ को निशाना बनाया गया हो. इसी साल अप्रैल में दलित समुदाय के पीएचडी स्कॉलर रामदास प्रीति शिवानंदन को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के खिलाफ दिल्ली में आयोजित विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए निलंबित कर दिया गया था.

पीएसएफ के छात्र नेता शिवानंदन पर ‘राष्ट्र–विरोधी गतिविधि’ में भाग लेने का आरोप लगाया गया था और संस्थान ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को उनके खिलाफ ‘जांच’ करने के लिए बुलाया था. शिवनंदन ने टिस के आरोपों को अदालत में चुनौती दी है.

लगातार विवादों में टिस 

पिछले महीने टिस के दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित एक दर्जन पीएचडी स्कॉलर्स को परिसर में ‘अधिक समय तक रहने’ की वजह से निष्कासन का नोटिस दिया गया था, जबकि उनमें से अधिकांश केवल दो या तीन साल ही रह रहे थे.

उससे कुछ दिन पहले टिस के 115 शिक्षण और गैर–शिक्षण फैकल्टी मेंबर्स को बर्खास्तगी पत्र भेजे गए थे. काफ़ी हंगामे के बाद संस्थान को उसे वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था.