इस श्रृंखला का पहला और दूसरा भाग यहां पढ़ सकते हैं.
नई दिल्ली: मणिपुर में पिछले साल मेईतेई-कुकी जातीय संघर्ष भड़कने के बाद से राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया, दोनों ही जगह इन संघर्षों के कारणों पर अनेक रिपोर्ट्स की गई हैं. इनमें से ज्यादातर ने मेईतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के मणिपुर उच्च न्यायालय के विवादास्पद फैसले की तरफ उंगली उठाई गई है.
सर्वोच्च न्यायालय ने ‘न्याय का बेहतर प्रशासन’- जो कि विधिक जगत में सख्त फटकार माना जाता है- का हवाला देते हुए फैसला लिखने वाले जज जस्टिस एमवी मुरलीधरन का तबादला कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय से फैसले के उस हिस्से को हटाने का भी निर्देश दिया.
गौरतलब है कि कुकी और मेईतेई दोनों ही समुदायों ने एक दूसरे पर इस संघर्ष को भड़काने का आरोप लगाया है, जिसमें अब तक कम से कम 226 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं. लेकिन यह स्पष्ट है कि सिर्फ उच्च न्यायालय के आदेश को ही मई, 2023 में उठी हिंसा की लपटों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, जो अभी तक पूरी तरह से बुझी नहीं है.
इस पागलपन के पीछे एक पैटर्न है, भले ही मीडिया अभी तक इसे पूरी तरह से समझ पाने में नाकाम रहा हो या बेहद ध्रुवीकृत होने के कारण मणिपुर का नागरिक समाज इसे रेखांकित करने से कतरा रहा हो.
लेकिन मणिपुर के मुख्यमंत्री की 48 मिनट की ऑडियो क्लिप के बाद भ्रम के सारे बादल छंट जाएंगे.
इस ऑडियो रिकॉर्डिंग में- जिसे मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास पर हुई और कथित तौर पर उनके द्वारा संबोधित की गई एक मीटिंग के दौरान बनाया गया- बीरेन सिंह की बताई जा रही आवाज को ‘यह संघर्ष कैसे और क्यों शुरू हुआ’, इसका श्रेय लेते सुना जा सकता है.
मेईतेई भाषा का यह ऑडियो, जिसे हिंदी में अनुवाद किया गया है, कहता है:
‘तो, अब…यह मामला शुरू कैसे हुआ? मैंने यह सब देखा… जब मैंने यह सब देखा, तो मैंने काम करना शुरू किया –अस्पष्ट–. हमने आरक्षित वन भूमि, सुरक्षित वन भूमि वाली जगह पर सरकारी जमीन मांगना शुरू किया. जो घटनाएं हुईं हैं… उन्हें तुमने नक्शे पर नहीं देखा है… क्या तुम्हें रोने का मन नहीं करता? मैं इन सबका पिछले 10-15 सालों से अध्ययन कर रहा हूं. ऐसी कोई घटना होनी ही थी…लेकिन नगा गांवों की संख्या नहीं बढ़ी है.
नगा मूल निवासियों की रिहाइश वाले इलाकों की, यहां तक कि इंफाल के भीतर के इलाकों की भी जांच कीजिए. इंफाल, नगाराम, तंगखुल अवेन्यू के इलाकों में गांवों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है जबकि वे (कुकी) वेंगों…. वेंगों (गांव या बस्ती) के जरिये बढ़ते जाते हैं.
‘सचिवालय में भी, उनके कोटा के कारण हमारे अपने लोग नहीं हैं. उन्होंने आईपीएस, आईएएस की सीटों पर भी कब्जा किया हुआ है. भारतीय प्रशासनिक सेवा में भी वे लोग ही हैं. हमारे नगा भाइयों की भी इस तरफ दिलचस्पी नहीं है. वे अपनी आजादी को लेकर चिंतित हैं. वे सौ में महज 5-10 हैं, फिर भी उनका (कुकी लोगों का) पूरा कब्जा है.’
‘सचिवालय में 12 सचिव स्तर के अधिकारी हैं और 12 में 11 वे (कुकी) हैं.’
हालांकि द वायर यह स्वतंत्र तौर पर रिकॉर्डिंग में आ रही आवाज के वास्तव में बीरेन सिंह के होने की पुष्टि नहीं कर पाया है, लेकिन हमने उस मीटिंग में शामिल कुछ लोगों से स्वतंत्र तौर पर इस मीटिंग की तारीख, इसके विषय और इसमें की गई बातों पुष्टि की है. उनमें से कोई भी अपनी सुरक्षा पर खतरे के डर से अपनी पहचान को उजागर नहीं करना चाहता है. इस मीटिंग में उपस्थित होने का दावा करनेवाले कुछ लोगों का विश्वास के साथ कहना है कि रिकॉर्डिंग में सुनाई दे रही आवाज वास्तव में बीरेन सिंह की ही है और उन्होंने सचमुच में उनकी मौजूदगी में ये बातें कही थीं.
इनमें से कुछ लोगों ने द वायर से इस बात की पुष्टि की कि पूरी ऑडियो क्लिप सेवानिवृत्त जस्टिस अजय लांबा की अध्यक्षता वाली जांच समिति के समक्ष जमा करा दी गई है. लांबा गौहाटी उच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं.
इस ऑडियो में आवाज, जो वहां मौजूद कुछ लोगों द्वारा मुख्यमंत्री की बताई जा रही है, को अपने कैबिनेट मंत्री एल. सुसिंद्रो याइमा का नाम लेते हुए भी सुना जा सकता है.
रिकॉर्डिंग की सामग्री के – मणिपुर और शेष भारत के लोगों के लिए – अहम जनहित से जुड़े होने के कारण द वायर इसके मुख्य अंशों को सार्वजनिक कर रहा है.
अलग प्रशासन की मांग
दो समुदायों के बीच हिंसा भड़कने के बाद से कुकी नेतृत्व मुख्यमंत्री पर निशाना साध रहा है और मुख्यमंत्री पर पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने का आरोप लगा रहा है. मुख्यमंत्री पर लगे आरोप वह प्राथमिक कारण नजर आता है, जिसके आधार पर कुकी लोग केंद्र से राज्य का एक हिस्सा काटकर उन्हें एक ‘अलग प्रशासन’ दिए जाने की मांग कर रहे हैं.
दूसरे शब्दों में, यह विश्वास कि मुख्यमंत्री पक्षपातपूर्ण तरीके से काम कर रहे हैं, ने इस संवेदनशील सीमावर्ती राज्य के जातीय आधार पर विभाजन के कुकी लोगों की मांग के लिए चिंगारी का काम किया है.
लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पूरी तरह से मुख्यमंत्री का पक्ष ले रही है.
हिंसा पर मोदी की चुप्पी और इस त्रासदी की असाधारणता के बावजूद राज्य का दौरा करने से प्रधानमंत्री के इनकार को राज्य में बीरेन सिंह पर उंगलियां उठाने वालों के लिए इस संदेश के तौर पर देखा गया कि पार्टी और नई दिल्ली की सरकार पूरी तरह से बीरेन सिंह के साथ खड़ी है. जबकि 3 मई, 2023 को राज्य में भड़की हिंसा की आग में मणिपुर जल रहा था, उस समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल अगस्त महीने में संसद में कहा था कि बीरेन इस जातीय संघर्ष से निपटने में पूरी तरह से केंद्र सरकार के साथ सहयोग कर रहे हैं.
लेकिन आयोग में जमा कराई गई ऑडियो क्लिप से ऐसा जान पड़ता है कि मोदी सरकार एक ऐसे समय में मुख्यमंत्री का बचाव कर रही थी, जिस समय वे पक्षपातपूर्ण और सांप्रदायिक तौर पर विभाजनकारी पक्ष ले रहे थे. जबकि एक उच्च पद पर आसीन निर्वाचित जनप्रतिनिधि होने और संविधान की शपथ लेने के नाते उनकी भूमिका इसे उलट होनी चाहिए थी.
उक्त ऑडियो क्लिप से इन आरोपों को बल मिलने की संभावना है कि कानून व्यवस्था के हिसाब से एक बेहद नाजुक घड़ी में मुख्यमंत्री के पक्षपात रवैये ने जातीय संघर्ष को जीवित रखा है.
गौरतलब है कि इस जातीय संघर्ष के शुरू होने के बाद से अब तक 60,000 से ज्यादा लोग- जिनमें मेईतेई और कुकी दोनों ही समुदाय के लोग हैं- विस्थापन का दंश झेल रहे हैं और राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं.
जब कुकी रिहाइशी बस्तियों पर हमला किया गया
संघर्ष के शुरुआती कुछ दिनों में राज्य के घाटी वाले इलाकों साहित राजधानी इंफाल में कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के घरों में पर मेईतेई लोगों की भीड़ द्वारा हमला किया गया. इन हमलों में कुछ अधिकारियों की उनके सरकारी निवास पर ही हत्या कर दी गई. यहां तक कि कुकी समुदाय के लोगों को लेकर जाने वाली एंबुलेंसों को भी नहीं छोड़ा गया और उन पर हमला किया गया और उनमें सवार लोगों को मार दिया गया.
उन ज्यादातर कुकी वेंगों (गांवों/बस्तियों), जिनके बारे मुख्यमंत्री कथित तौर पर ऑडियो क्लिप में बोलते हुए सुने जा सकते हैं, पर भीड़ द्वारा हमले किए गए और इनमें कुकी समुदाय के काफी लोगों की जानें गईं. घाटी वाले इलाकों में इस समुदाय के लोगों के चर्च और इनके स्वामित्व वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया. इस जातीय संघर्ष को लेकर कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिसंबर, 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को संघर्ष के दौरान नष्ट किए गए 3500 के करीब चर्चों का पुनर्निर्माण करने का निर्देश दिया था. इनमें से ज्यादातर चर्च कुकी समुदाय के थे.
अगर ऑडियो क्लिप में सुनाई दे रही आवाज में बीरेन सिंह के होने की पुष्टि हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में ऑडियो में दर्ज बयान बेहद अहम साबित होंगे, क्योंकि संघर्ष के शुरुआती दिनों में घाटी में कुकी लोगों को निशाना बनाने वाली भीड़ कुकी लोगों के इंफाल में अपने वेंगों को फैलाने को लेकर उसी नजरिये को साझा करती हुई दिखाई देती, जिसे हम रिकॉर्डिंग में सुन सकते हैं. खासकर इसलिए भी क्योंकि कुकी लोगों पर हमला करने के आरोपी दो अतिवादी हथियारबंद संगठन– अरमबाई टेंगोल और मेईतेई लीपुन को मुख्यमंत्री के करीबी के तौर पर देखा जाता है.
तथ्य यह है कि भाजपा के राज्यसभा सांसद और मणिपुर के उपाधिप्राप्त राजा एल. सनाजोअबा अरमबाई टेंगोल के संस्थापक हैं और दूसरे संगठन मेईतेई लीपुन के संस्थापक प्रमोद सिंह हैं जो कि आरएसएस की छात्र इकाई- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व सदस्य हैं और ज्ञात तौर पर बीरेन सिंह के करीबी हैं. संघर्ष के दरमियान मुख्यमंत्री को अरमबाई टेंगोल के समर्थन में भी देखा गया है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन संगठनों, खासतौर पर अरमबाई टेंगोल के सदस्यों को पुलिस की गाड़ियों में हथियारों के साथ घूमते; और पुलिस कर्मियों और निवार्चित नेताओं को आदेश देते हुए, विपक्षी विधायकों और पुलिसकर्मियों पर शारीरिक हमले में शामिल भी देखा गया. इनके हमले की जद मे मेईतेई समुदाय के वे लोग भी आए जिन्होंने इनकी कारगुजारियों पर सवाल उठाए. उनके घरों पर भी हमले किए गए.
चूड़ाचांदपुर जैसे कुकी इलाकों में सभी मेईतेई निवासियों को कुकी आतंकवादियों की धमकी के मद्देनजर अपनी सुरक्षा के लिए इंफाल घाटी भागने पर मजबूर होना पड़ा. जो इस बात का सबूत है कि दोनों ही समुदायों के लोगों ने इस संघर्ष और इसे रोक पाने में सरकार की नाकामी की भारी कीमत चुकाई है.
मुख्यमंत्री और नारको आतंकवाद के आरोप, कुकी जजों का जातीय पूर्वाग्रह
ऑडियो रिकॉर्डिंग में मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाया, परोक्ष तरीके से कुकी न्यायाधीशों पर जातीय पूर्वाग्रह का आरोप लगाया और काफी फख्र से यह कहा कि उन्होंने इसको लेकर एक दशक पहले ही खतरे की घंटी बजाई थी.
अगर आप ड्रग्स जब्त करते हैं, जज हाओकिप, गांगटे, वे सब वहां हैं. यह भीतर घुसने का प्रोग्राम है, जिसके बारे में मैंने दस साल पहले….आपने मेरा ट्वीट देखा होगा…2013 में…
ऑडियो रिकॉर्डिंग में यह आक्षेप लगाया गया है कि कुकी समुदाय राज्य में मादक पदार्थों के गैरकानूनी व्यापार में शामिल है. इस जातीय संघर्ष के दौर एक पद जो बार-बार सुनाई दिया वह था, ‘सीमापार नारको आतंकवाद’. इसे और किसी ने नहीं मुख्यमंत्री ने हवा देने का काम किया.
उन्होंने मीडिया में कहा कि बांग्लादेश और मणिपुर से काम करने वाले हथियारबंद कुकी समूह जो कथित तौर पर मणिपुर सरकार के ‘मादक पदार्थों के खिलाफ जंग’ का विरोध करते हैं और जो भारत के खिलाफ युद्धरत हैं, उन्होंने ही इस जातीय संघर्ष को भड़काया है. संसद में अमित शाह के बयान में भी इस पद का इस्तेमाल किया गया.
लेकिन, कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मादक पदार्थों के सरगना लुखाउसी जू की गिरफ्तारी के संबंध में मणिपुर उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में राज्य पुलिस के नारकोटिक्स विभाग की पूर्व अधिकारी थोउनाओजम बृंदा ने बताया था कि मुख्यमंत्री ने खासतौर पर उन्हें रिहा करने के लिए कहा था. उस समय बीरेन सिंह राज्य के गृहमंत्री भी थे. उस समय उन्होंने उनके (बृंदा के) खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की भी धमकी दी थी. लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया गया है. बृंदा ने इस टकराव के बाद जल्दी ही अपना इस्तीफा दे दिया.
दिलचस्प बात यह है कि ‘ड्रग्स के खिलाफ जंग’ का ऐलान करने वाले राज्य की पुलिस ने को ड्रग्स के साथ पकड़ा था, फिर उसे 4 दिनों के बाद ही जमानत दे दी गई. लुखाउसी जू जल्दी ही स्थानीय अस्पताल से भाग निकला और म्यांमार चला गया. (इस मामले के बारे में ज्यादा जानकारी द वायर द्वारा 16 जुलाई 2020 को इस की गई इस रिपोर्ट में पढ़ी जा सकती है.)
राज्य के मंत्री एल. सुसिंद्रो याइमा से सवाल
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, मीटिंग के मुख्य वक्ता को सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग के मंत्री सुसिंद्रो याइमा का नाम लेते हुए सुना जा सकता है, जिन्हें बीरेन सिंह का बेहद करीबी माना जाता है.
द वायर ने याइमा के आधिकारिक ई-मेल पर यह सवाल पूछा कि क्या उन्होंने पिछले साल कभी भी मुख्यमंत्री को घाटी के इलाकों में कुकी लोगों के बसने और एसटी कोटा के जरिये राज्य प्रशासन की नौकरियों पर कब्जा करने को लेकर अपना आक्रोश प्रकट करते हुए सुना?
मंत्री की तरफ अगर कोई जवाब मिलता है, तो उसे इस खबर में शामिल किया जाएगा.
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जैसा कि मणिपुर टेप्स को लेकर द वायर के विस्तृत कवरेज में बार-बार बताया गया है, पूरी ऑडियो रिकॉर्डिंग मणिपुर हिंसा की जांच कर रहे आयोग को सौंप दी गई है. साथ ही साथ मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास पर यह रिकॉर्डिंग करने वालों द्वारा इस रिकॉर्डिंग की प्रामाणिकता का सत्यापन करनेवाला एक हलफनामा भी आयोग को जमा कराया गया है.
अब यह देखा जाना है कि आयोग अपने समक्ष पेश की गई सामग्री पर किस तरह आगे बढ़ता है.
रिपोर्ट में जिस टेप का जिक्र आया है, उसके आधार पर द वायर ने मुख्यमंत्री से निम्नलिखित सवालों का जवाब मांगा गया है:
1. क्या आपको इंफाल के सचिवालय में ज्यादातर अधिकारियों के कुकी समुदाय से होने से ऐतराज है?
2. क्या आपको मणिपुर की अदालतों में कुछ जजों के कुकी समुदाय से होने के तथ्य से ऐतराज है?
3. क्या आप कुकी समुदाय के अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किए जाने के खिलाफ हैं?
4. क्या आप आरक्षित वनभूमि को खाली कराने के अपनी सरकार के फैसले के परिणाम के तौर पर हुए हुए जातीय संघर्ष का श्रेय लेते हैं?
5. क्या आपको लगता है कि नगाओं को मणिपुर के घाटी के इलाकों में घर खरीदी में रुचि नहीं है, क्योंकि वे भारत से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं?
मुख्यमंत्री का जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)