अयोध्या: ‘कुआनो (हिमालय की तराई में बसे उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के बसऊपुर गांव के पास एक छोटे से सोते के रूप में निकली नदी) के कवि’ कहलाने वाले स्मृतिशेष सर्वेश्वरदयाल सक्सेना अपनी ‘भेड़िया’ शीर्षक मशहूर कविता में कह गए हैं: भेड़िया गुर्राता है/तुम मशाल जलाओ… भेड़िये के करीब जाओ/भेड़िया भागेगा.
निस्संदेह, इस कविता में भेड़िये का मतलब महज वह जंगली चौपाया नहीं है, जो रात के अंधेरे में दबे पांव मानव बस्तियों में आता, घात लगाकर ‘शिकार’ करता और कोहराम मचाकर लौट जाता है. लेकिन इस बात का क्या किया जाए कि कुछ ऐसे ही चौपायों ने पिछले दो महीनों ने बहराइच जिले की महसी तहसील के घाघरा के कछार में स्थित कोई ढाई दर्जन गांवों में इस कदर गदर काट रखा है कि ग्रामीणों में उससे फैली असुरक्षा उनकी गरीबी जनित असुरक्षाओं से बड़ी हो गई है.
वे बताते हैं कि गरीबी के त्रास तो वे अरसे से सहते आ रहे हैं और उसके अभ्यस्त हैं, लेकिन ये चौपाये जिस तरह उनके नौनिहालों को एक के बाद एक अपना शिकार बना रहे हैं, उसका त्रास सहा नहीं जाता.
फिर भी इन भेड़ियों के खिलाफ कहीं कोई ‘मशाल’ नहीं जल पा रही और बड़े-बड़े दावे करने वाला जिले का वन विभाग भी उन्हें इस असुरक्षा से निजात दिलाने के लिए यथेष्ट कदम नहीं उठा रहा. अलबत्ता, पिछले दिनों उसने एक नर भेड़िये को पकड़ा तो उम्मीद थी कि अब ऐसे हमले घटेंगे, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वे पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गए हैं.
ज्ञातव्य है नीति आयोग द्वारा गत वर्ष जुलाई में जारी की गई गरीबी की बहुआयामी सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार बहराइच जिले की 55 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी में गुजर-बसर करने को अभिशप्त है और इस लिहाज से यह उत्तर प्रदेश का सबसे गरीब जिला है.
नरभक्षी हो चले भेड़ियों ने जिस तरह इसके उक्त गांवों में दो महीनों में आठ जानें ले ले ली हैं, उससे व्यथित उनके निवासी कहते हैं कि उनका दर्द केवल वही महसूस कर सकता है, जिसे अपनों को खोने के दर्द का एहसास हो.
विडंबना यह कि भेड़ियों द्वारा पांच बच्चों और एक वृद्धा का मारा जाना जिले का वन विभाग भी स्वीकारता है, फिर भी उन्हें भेड़ियों से बचाने के कारगर उपाय कर ग्रामीणों को आश्वस्त नहीं कर पा रहा. (एक अन्य बच्चे की लाश बरामद न होने के कारण वन विभाग उसे लापता मानता है और एक अन्य की मौत से इत्तेफाक नहीं रखता.)
हालांकि जिला वन अधिकारी अजीत कुमार सिंह का दावा है कि क्षेत्र में कुल छह भेड़िए हमले कर रहे थे, जिनमें से तीन को पकड़ लिया गया है और तीन अन्य को पकड़ने की लगातार कोशिशें की जा रही है. इसके लिए उनके हमले के अंदेशे वाले गांवों के प्रवेश बिंदुओं पर पिंजरे और कई स्थानों पर सेंसर कैमरे लगाए गए हैं. साथ ही इस काम में कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग, गोंडा और श्रावस्ती वन प्रभाग की भी मदद ली जा रही है.
उनका दावा अपनी जगह, लेकिन गत रविवार की रात हुई ताजा वारदात में भेड़िये ने महसी विधानसभा क्षेत्र के कुम्हारन पुरवा टपरा गांव में हमला कर अपने घर के बरामदे में सो रही 65 साल की वृद्धा रीता देवी को मार डाला. इससे पहले हरदी थाना क्षेत्र के पूरे गड़रिया गांव के भटौली मजरे की आठ साल की खुशबू नाम की बच्ची को एक भेड़िया रात में तब दबोच ले गया था, जब वह अपनी मां के साथ घर के आंगन में सोई थी. उसकी चीख सुनकर परिजनों ने रात में ही उसकी तलाश आरंभ की, लेकिन उन्हें उसे बचाने में सफलता हासिल नहीं हुई. अगली सुबह लगभग आधा किलोमीटर दूर एक गन्ने के खेत में उसका भेड़िये द्वारा अधखाया क्षत-विक्षत शव मिला. इससे चार दिन पहले इसी थाना क्षेत्र के हिंदूपुरवा गांव में भेड़िया चार साल की एक अन्य बच्ची संध्या को उठा ले गया था. बाद में उसका क्षत-विक्षत शव भी एक खेत में पड़ा मिला.
पत्रकार अभिनय त्रिपाठी बताते हैं कि भेड़ियों ने इधर हफ्ते डेढ़ हफ्ते में लगातार हमले कर सोलह बच्चों व बुजुर्गों को घायल कर डाला है. इनमें कुछ के नाम है : जंगलपुरवा निवासी बुधना (52), दुधमुंही गीता, मानसी 10, गंगापुरवा निवासी क्रांति (7), अजीत (12), बैरागीपुरवा निवासी पल्लवी (6), अहिरनपुरवा निवासी दिव्यांशी (5), सिकंदरपुरवा निवासी अनुराधा (9), नसीरपुर निवासी सबा (3), सिकंदरपुर निवासी सैलूना (30) करिश्मा (12), नानावती (60) पूनम (3),नकाही निवासी पल्लवी (3) और पूरे प्रसाद सिंह निवासी भोगी (60).
वे बताते हैं कि इससे इन गांवों के लोग बुरी तरह उद्वेलित व आक्रोशित हैं और वन विभाग पर भेड़ियों को पकड़ने के लिए थोथे दावों के अलावा कुछ भी न करने के आरोप लगा रहे हैं. वे कहते हैं कि हमारे बच्चे एक-एक करके भेड़ियों का निवाला बनते जा रहे हैं, लेकिन वन विभाग बेदर्द बना हुआ है, जबकि कई गांवों में असुरक्षित ग्रामीण अपनी ओर से पहल करके रात भर जागकर चौकसी रख रहे हैं. उन्होंने कई टीमें बनाई रखी हैं, जो इस गांव से उस गांव मोटरसाइकिलों से गश्त भी करती हैं.
दूसरी ओर जिला प्रशासन व वन विभाग ग्रामीणों के इस आरोप से इनकार करते हैं कि वे ग्रामीणों व उनके बच्चों को भेड़ियों के हमलों से बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे.
उनका कहना है कि ग्रामीणों को इन हमलों से निपटने के लिए जागरूक करने के उपाय तो किए ही जा रहे हैं, हमले के अंदेशे वाले गांवों में रात भर निर्बाध बिजली की आपूर्ति भी सुनिश्चित की जा रही है, ताकि उनमें रोशनी बनी रहे और भेड़ियों को हमले के लिए अंधेरा न मिल सके. इसके अलावा लोगों को सलाह दी जा रही है कि वे रात में अपने घरों के दरवाजे बंद रखें और बच्चों को अकेला न छोड़ें. साथ ही खुले में शौच के लिए बाहर जाने से बचें.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)