असम: सीएम ने मेघालय की यूनिवर्सिटी के वीसी पर फिर साधा निशाना, पुलिस केस की धमकी दी

असम के मुख्यमंत्री कार्यालय ने करीमगंज ज़िला कलेक्टर द्वारा भेजे गए एक पत्र को साझा किया है, जिसमें दावा किया गया है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति महबूबुल हक़ को 1992 में एक ओबीसी प्रमाण पत्र जारी किया गया था, जिसे 1996 में रद्द कर दिया गया था.

हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो साभार: X/@himantabiswa)

नई दिल्ली: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा पिछले कुछ समय से मेघालय के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (यूएसटीएम) पर लगातार हमला कर रहे हैं. उन्होंने बुधवार को कहा कि उनकी सरकार 1992 में गलत तरीके से ओबीसी प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति महबूबुल हक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करेगी.

ज्ञात हो कि यूएसटीएम पूर्वोत्तर क्षेत्र का एकमात्र निजी विश्वविद्यालय है जो नेशनल इंस्ट्यूटनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) के तहत शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों में शामिल है, जिसका संचालन असम के बंगाली-मुस्लिम महबूबुल हक के स्वामित्व वाली एक संस्था द्वारा किया जाता है, जो संस्थान के कुलपति भी हैं.

बीते कुछ हफ़्तों से विश्वविद्यालय और हक, दोनों को शर्मा के कई हमलों का सामना करना पड़ा है- जिनमें यह आरोप भी शामिल है कि परिसर के निर्माण के लिए वनों और पहाड़ियों की कटाई के कारण गुवाहाटी में अचानक आई बाढ़ के लिए वह जिम्मेदार हैं. इसी कड़ी में शर्मा ने यह भी कहा था कि विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार की वास्तुकला, जिसमें तीन गुंबद हैं, ‘जिहाद’ का प्रतीक है.

पिछले सप्ताह शर्मा ने कहा था कि उनकी सरकार इस संभावना पर चर्चा कर रही है कि विश्वविद्यालय से स्नातक करने वाले छात्र असम सरकार द्वारा विज्ञापित पदों के लिए प्रतिस्पर्धा करने के योग्य नहीं हों.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए शर्मा ने कहा, ‘डीसी (जिला कलेक्टर) करीमगंज से एक रिपोर्ट आई है कि उन्होंने (हक) गलत तरीके से ओबीसी प्रमाण पत्र प्राप्त किया था और उनके प्रमाण पत्र को डीसी करीमगंज ने ही रद्द कर दिया था. क्या गलत ओबीसी प्रमाणपत्र वाला व्यक्ति शिक्षाविद् हो सकता है?’

मुख्यमंत्री कार्यालय ने मंगलवार को डीसी करीमगंज द्वारा भेजे गए एक पत्र को साझा किया, जिसमें दावा किया गया है कि हक को 1992 में एक ओबीसी प्रमाण पत्र जारी किया गया था, जिसे 1996 में रद्द कर दिया गया था. इसमें दावा किया गया है कि हक न तो मैमल हैं और न ही किरण ओबीसी समुदाय से हैं और उनका ओबीसी प्रमाण पत्र लगभग तीन दशक पहले वापस ले लिया गया था.

शर्मा ने कहा, ‘अगला कदम आपराधिक मामले का होना चाहिए. एफआईआर दर्ज नहीं की गई. अब हम एफआईआर दर्ज करने जा रहे हैं.’