केरल के बाद तेलुगु सिने उद्योग में भी उठी यौन उत्पीड़न पर 2022 की रिपोर्ट जारी करने की मांग

तेलुगु फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए अप्रैल 2019 में तेलंगाना सरकार द्वारा गठित एक उप-समिति ने जून 2022 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. केसीआर सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था. अब हेमा समिति की रिपोर्ट सामने आने के बाद इसे सार्वजनिक करने की मांग हो रही है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: केरल में मलयालम सिने जगत में नामी हस्तियों और फिल्मकारों पर लगे यौन अपराधों के आरोपों के बीच सामने आया है कि तेलुगु फिल्म उद्योग में भी महिलाओं, विशेषकर जूनियर कलाकारों, के लिए कार्यस्थलों तक पहुंच के मामले में ऐसी शर्तें लागू होती हैं जो यौन संबंधों की मांग और उत्पीड़न के समान होती हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा माना जा रहा है कि यह तेलुगु फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए अप्रैल 2019 में तेलंगाना सरकार द्वारा गठित एक उप-समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के निष्कर्षों में से एक था.

मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया, जिसे जून 2022 में प्रस्तुत किया गया था. मलयालम फिल्म उद्योग में आए तूफान के बाद उस रिपोर्ट की फिर से चर्चा होने लगी है.

द हिंदू के मुताबिक, तेलुगु फिल्मों की अग्रणी महिला अभिनेत्रियां, निर्माता और निर्देशक तेलंगाना सरकार पर तेलुगु फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न को लेकर दो साल पुरानी इस रिपोर्ट को जारी करने के लिए दबाव डाल रही हैं, ताकि सुरक्षित कामकाजी माहौल बनाने की दिशा में कदम उठाया जा सके.

ऐसा बताया जा रहा है कि मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन और तेलुगु फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स भी इस मुद्दे के समाधान पर चर्चा कर रहे हैं.

तेलुगु फिल्म उद्योग में महिलाओं के लिए एक सहायता समूह, द वॉयस ऑफ विमेन (वीओडब्ल्यू), ने 30 अगस्त को एक बयान जारी कर मलयालम सिनेमा में यौन शोषण पर हेमा समिति के खुलासों की तुलना तेलुगु फिल्म उद्योग से की. अभिनेत्री समांथा रुथ प्रभु तथा अन्य द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किए जाने के बाद इस बयान ने लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. 

वीओडब्लू ने बयान में कहा, ‘हम हेमा समिति की रिपोर्ट का स्वागत करते हैं और केरल में विमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (डब्ल्यूसीसी)  के लगातार प्रयासों की सराहना करते हैं, जिसके चलते यह सब संभव हो पाया है.  डब्ल्यूसीसी से प्रेरणा लेते हुए द वॉयस ऑफ वुमेन 2019 में बनाया गया था. हम तेलंगाना सरकार से यौन उत्पीड़न पर पेश उप-समिति की रिपोर्ट को प्रकाशित करने का आग्रह करते हैं, जो महिलाओं के लिए  तेलुगु फिल्म उद्योग में एक सुरक्षित कामकाजी माहौल स्थापित करने के लिए नीतियां बनाने में सरकार की मदद कर सकता है,’

सरकार ने रिपोर्ट को ‘अस्पष्ट’ बताया

इंडियन एक्सप्रेस ने पूर्व सिनेमैटोग्राफी, पशुपालन और मत्स्य पालन मंत्री तलसानी श्रीनिवास यादव के हवाले से बताया है कि रिपोर्ट ‘बहुत अस्पष्ट’ थी और इसमें काम करने लायक कुछ भी नहीं था.

यादव ने कहा, ‘उप-समिति ने बहुत काम किया और कई लोगों से साक्षात्कार किया, लेकिन रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी विशिष्ट नहीं दिया गया जिसके लिए कार्रवाई की आवश्यकता हो.’

हालांकि, उप-समिति की शीर्ष सदस्यों में से एक, प्रमुख महिला अधिकार कार्यकर्ता और भूमिका विमेंस कलेक्टिव की परियोजना निदेशक कोंडावीती सत्यवती ने कहा कि रिपोर्ट में तेलुगु फिल्म उद्योग में यौन शोषण का उल्लेख है.

उन्होंने कहा, ‘तेलुगु फिल्म उद्योग में काम देने के बदले यौन शोषण (Sexual quid pro quo) बहुत आम है. हमने फिल्म उद्योग से संबंधित 24 तरह के पेशों से जुड़े लोगों से बात की, जिनमें जूनियर आर्टिस्ट से लेकर सहायक कर्मचारी तक शामिल थे, और हमारे निष्कर्ष रिपोर्ट में हैं. हम विवरणों का खुलासा नहीं कर सकते. यह सरकार का काम है. वर्तमान सरकार को रिपोर्ट जारी करनी चाहिए.’

बता दें कि 7 अप्रैल 2018 को अभिनेत्री श्री रेड्डी ने हैदराबाद के फिल्म नगर में तेलुगु फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स के बाहर अर्ध-नग्न प्रदर्शन करके हलचल मचा दी थी. उनके प्रदर्शन ने महिला और ट्रांसजेंडर संगठनों की संयुक्त कार्रवाई समिति को ‘तेलुगु फिल्म उद्योग में महिलाओं के शोषण की जांच का आदेश देने के लिए’ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए प्रेरित किया था.

अप्रैल 2019 में, केसीआर की तत्कालीन सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया, जिसमें फिल्म निर्देशक, निर्माता, पुलिस आयुक्त, महिला एवं बाल कल्याण विभाग के अधिकारी और तेलंगाना राज्य फिल्म विकास निगम, फिल्म उद्योग संघों तथा टेलीविजन उद्योग के प्रतिनिधियों सहित अन्य हितधारक शामिल थे.

उच्च स्तरीय समिति ने एक उप-समिति गठित की, जिसने महिला जूनियर कलाकारों, सहायक कलाकारों, साइड आर्टिस्ट और नृत्य कलाकारों सहित कई लोगों के साथ कम से कम 20 बैठकें कीं, जिन्हें समिति के अनुसार यौन शोषण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील माना गया था.

तलसानी श्रीनिवास यादव और सूचना एवं जनसंपर्क आयुक्त अरविंद कुमार ने उप-समिति के कामकाज की निगरानी की. समिति द्वारा जिन लोगों से बात की गई उनमें से अधिकांश ने वेतन भुगतान को लेकर उत्पीड़न,

साक्षात्कार में शामिल अधिकांश लोगों ने वेतन भुगतान को लेकर उत्पीड़न, लिखित रोजगार अनुबंधों के अभाव, असमान वेतन और काम करने की खराब परिस्थितियों की बात कही. कई महिलाओं ने बताया कि उनके लिए अलग से विश्राम क्षेत्र या शौचालय नहीं थे.

कोविड-19 लॉकडाउन और प्रतिबंधों के कारण उप-समिति का काम बाधित हुआ, लेकिन यह 2022 तक जारी रहा.

सत्यवती के अनुसार, तेलुगु फिल्म उद्योग एक असंगठित क्षेत्र है. उन्होंने कहा, ‘वहां कोई जवाबदेही नहीं है. शिकायतें सुनने वाला कोई नहीं है, खास तौर पर यौन उत्पीड़न के मामले में. काम देने के बदले यौन संबंध बनाने की मांग की जाती है. जूनियर महिला कलाकारों का सबसे ज्यादा शोषण होता है.’

उप-समिति का काम अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट करना और सरकार को कार्यस्थलों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने के लिए नीतियां बनाने में मदद करने के लिए सिफारिशें करना था. जून 2022 में समिति ने सरकार को ‘तेलुगु फिल्म और टेलीविजन उद्योगों में यौन उत्पीड़न और लैंगिक भेदभाव’ पर रिपोर्ट सौंपी.

हालांकि, केसीआर सरकार ने निष्कर्षों को सार्वजनिक न करने का फैसला किया और रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. ऐसा माना जाता है कि उप-समिति द्वारा साक्षात्कार में शामिल कई महिलाओं ने यह बताने से इनकार कर दिया कि उनसे किसने यौन संबंध बनाने की मांग की थी या उन्हें किस प्रकार का उत्पीड़न सहना पड़ा.

हालांकि, कई तेलुगु फिल्म अभिनेत्रियों ने इस बारे में बात की है. सितंबर 2020 में अपनी फिल्म निशब्दम के प्रचार कार्यक्रम में अनुष्का शेट्टी ने कहा था कि तेलुगु फिल्म उद्योग में कास्टिंग काउच एक वास्तविकता है और उन्होंने शोषण से ‘खुद को बचाया’.

इसी तरह, अभिनेत्री आमानी और ऐश्वर्या राजेश ने कार्यस्थल से इतर किसी अन्य स्थान पर ‘व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए’ बुलाए जाने के बारे में बात की है.

महिला कलाकार, निर्माता और निर्देशक रिपोर्ट जारी करने की मांग कर रहे हैं

द हिंदू के मुताबिक, वीओडब्ल्यू की संस्थापक सदस्य अभिनेत्री झांसी कहती हैं, ‘महिलाओं को काम देने के बदले यौन संबंध की मांग करने के लिए मुख्य शब्द ‘कमिटमेंट (commitment)’ हुआ करता था. #MeToo आंदोलन के बाद से, यौन संबंध बनाने की मांग करने वालों ने अपने तरीके बदल लिए हैं, लेकिन समस्या अभी भी बनी हुई है.

झांसी कहती हैं, ‘मलयालम सिनेमा में आंदोलन ने जोर इसलिए पकड़ लिया क्योंकि घटना एक प्रमुख अभिनेत्री के साथ घटी थी, और अन्य प्रमुख अभिनेत्रियों (रेवती, पार्वती थिरुवोथु, रीमा कलिंगल और अन्य) ने इसके पीछे अपनी पूरी ताकत लगा दी. इसकी तुलना में तेलुगु सिनेमा में अभिनय करने वाली अधिकांश प्रमुख महिलाएं हाशिए पर जाने के डर से बोलने से कतराती हैं.’

वहीं, निर्देशक नंदिनी रेड्डी का कहना है कि अगर तेलंगाना सरकार रिपोर्ट प्रकाशित करती है और महिला समूहों तथा कानूनी निकायों के साथ मिलकर दिशानिर्देश तैयार करे, तो इससे आगे के लिए रास्ता खोलेगा.

उन्होंने कहा, ‘अगर कोई अभिनेत्री या टेक्नीशियन कानूनी रास्ता अपनाने के लिए आगे आती है, तो उसे शर्मिंदा नहीं होना चाहिए. हमने महामारी के कारण काफी समय गंवा दिया, लेकिन उम्मीद है कि अब दिशानिर्देशों का एक ढांचा तैयार किया जा सकता है.’

वह आगे कहती हैं कि कई बार पुरुष भी अपने साथ गलत होने की बात कहते हैं, इसलिए ऐसी स्थितियों से बचने के लिए हम सुझाव देते रहे हैं कि ऑडिशन पारदर्शी तरीके से, सार्वजनिक स्थान पर और कुछ महिलाओं की उपस्थिति में आयोजित किए जाएं.  कार्य प्रणाली महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए अनुकूल होनी चाहिए.’