नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (4 सितंबर) को वरिष्ठ अधिकारियों की शंकाओं के बावजूद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा विभागीय कार्यवाही का सामना कर रहे एक वन अधिकारी को राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक के रूप में नियुक्त करने पर सख्त टिप्पणी की.
द हिंदू ने जस्टिस बीआर गवई के हवाले से बताया कि अदालत ने कड़े शब्दों में कहा है कि मुख्यमंत्री इस तरह का निर्णय नहीं ले सकते… ‘हम उस सामंती युग में नहीं हैं जब राजा जैसा बोले वैसा करें.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, अदालत ने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि वह मुख्यमंत्री हैं, क्या वह कुछ भी कर सकते हैं?’
मालूम हो कि अदालत पिछले महीने भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) अधिकारी राहुल को हरिद्वार के पास राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक के रूप में नियुक्त करने के लिए धामी सरकार की मंजूरी से जुड़े मामले पर सुनवाई कर रही थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने राहुल को राजाजी रिज़र्व के नए निदेशक के रूप में शामिल करने के लिए प्रस्तावित वन अधिकारियों के तबादलों की सूची में संशोधन किया था, लेकिन राज्य के प्रमुख सचिव (वन) और इसके मुख्य सचिव द्वारा फ़ाइल नोट्स में 22 जुलाई को इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग की गई थी.
इसके पीछे राहुल के खिलाफ चल रही अनुशासनात्मक कार्यवाही, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के अंदर पाखरो बाघ सफारी के लिए अवैध कटाई और निर्माण कार्य के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई और सीबीआई जांच को वजह बताया गया था.
ज्ञात हो कि वन अधिकारी राहुल, जिनकी निगरानी में कथित तौर पर अवैध गतिविधियां हुईं, को 2022 में कॉर्बेट निदेशक के पद से हटा दिया गया था.
अखबार ने कहा कि नौकरशाहों द्वारा फाइल नोट्स को खारिज करने के बाद उनियाल ने राहुल को मुख्य वन संरक्षक (निगरानी, मूल्यांकन, आईटी और आधुनिकीकरण) के तत्कालीन पद पर रखने और 24 जुलाई को राजाजी निदेशक के रूप में अन्य अधिकारी को नियुक्त करने का प्रस्ताव आगे बढ़ाया.
लेकिन सीएम धामी ने 8 अगस्त को राजाजी निदेशक के रूप में राहुल की नियुक्ति को मंजूरी देने का फैसला किया.
बुधवार (4 अगस्त) को मामले की सुनवाई कर रही तीन जजों की बेंच में जस्टिस गवई के साथ जस्टिस पीके मिश्रा और केवी विश्वनाथन ने कहा कि मुख्यमंत्री धामी ने अपने फैसले को सिर्फ एक पंक्ति में समझाया था.
पीठ ने कहा, ‘जब वह असहमत हैं, तो उन्हें कारण बताना होगा. वह हर चीज को नजरअंदाज कर रहे हैं… यह कोई फैसला नहीं है, लेकिन उन्हें यह तर्क देना होगा कि वह नौकरशाह, मंत्री से असहमत क्यों हैं.’
खबरों के अनुसार, मामला केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. ये समिति वन और वन्यजीव से संबंधित मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की निगरानी करती है और इन आदेशों का अनुपालन न करने के मामलों की समीक्षा करती है.
सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील आत्माराम नाडकर्णी ने कहा कि पुलिस, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) किसी ने भी अवैध पेड़ कटाई मामले में राहुल को दोषी नहीं ठहराया था.
हालांकि जस्टिस गवई ने कहा कि अगर उनके (राहुल) खिलाफ कुछ भी नहीं है, तो विभागीय कार्यवाही क्यों चल रही है?
जस्टिस गवई ने कहा, ‘विभागीय कार्यवाही तब तक शुरू नहीं की जाती जब तक कि किसी अधिकारी के खिलाफ प्रथमदृष्टया कोई मामला न हो… और मुख्यमंत्री इस मामले में सभी की सलाह के खिलाफ गए हैं.’
इस पर उनियाल ने कहा है कि यह निर्णय उनकी और सीएम धामी की सहमति के बाद ‘सर्वसम्मति से’ लिया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अदालत ने मुख्यमंत्री धामी को हलफनामा दायर करने के लिए कहने पर विचार किया, लेकिन मंगलवार को राहुल की नियुक्ति रद्द होने के बाद कार्यवाही बंद कर दी गई.