आजमगढ़: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में एक महीने के भीतर संदिग्ध डिप्थीरिया (गलाघोंटू) से आठ बच्चों की मौत ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है. आठ बच्चों की मौत और एक दर्जन बच्चों के संक्रमित होने के बाद भी जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग में इसको लेकर कोई बेचैनी नहीं दिख रही है. प्रशासन इन मौतों के लिए टीकाकरण के प्रति उदासीनता को जिम्मेदार बता रहा है जबकि संक्रमण का दायरा बढ़ते हुए अब तक तीन गांवों तक पहुंच चुका है.
आजमगढ़ जिले के मिर्जापुर ब्लॉक के सीधा सुल्तानपुर में पांच, दौलतपुर गांव में एक और रानी सराय ब्लॉक के फरिहा में दो बच्चों की मौत की खबर सामने आई है. इन सभी बच्चों में गले में सूजन, बुखार, खाने-पीने व सांस लेने में परेशानी के लक्षण दिखे. दो बच्चे निजी चिकित्सकों व अस्पतालों में इलाज कराते हुए मेडिकल कॉलेज तक पहुंचे. एक बच्चे की इलाज के दौरान मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई जबकि दूसरे बच्चे को मेडिकल कॉलेज से वाराणसी रेफर कर दिया गया. वाराणसी तक पहुंचते- पहुंचते बच्चे की मौत हो गई. अन्य छह बच्चों की मौत घर पर और निजी चिकित्सकों के क्लीनिक में हुई.
सीधा सुल्तानपुर गांव में जिन पांच बच्चों की मौत हुई है, वे नट समाज के हैं. नट समाज घुमंतू समाज रहा है. दोनों गांवों में बसे नट समाज के लोग अखाड़े में कुश्ती का प्रशिक्षण देकर, पशुओं की खरीद-फरोख्त, आल्हा गायकी से गुजर बसर करते रहे हैं. गुजर बसर के लिए नट समाज के लोग, विशेषकर महिलाएं भीख भी मांगती रही हैं. बदलते समय में उनका यह पुश्तैनी पेशा जीवन निर्वाह के लिए काम नहीं आ रहा है और ये लोग दो जून की रोटी के लिए मजदूरी, शादी ब्याह के कार्यक्रमों में भोजन बनाने का काम कर रहे हैं.
जीवाणु जनित संक्रमण है डिप्थीरिया
डिप्थीरिया जीवाणु बैक्टीरिया जनित संक्रामक रोग है जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने से एक- दूसरे में फैल सकता है. संक्रमण होने के दो से पांच दिन बाद इसके लक्षण प्रकट होते है. गले में खराश, बुखार, गर्दन की ग्रंथियों में सूजन के साथ-साथ सांस लेने में दिक्कत व कुछ भी निगलने में दिक्कत होने लगती है. सही समय से उपचार नहीं मिलने पर मौत भी हो जाती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, पूरी दुनिया में टीकाकरण के कारण डिप्थीरिया से होने वाली मौतों में व्यापक कमी आई है. 1980 में जब डिप्थीरिया के टीके की शुरुआत हुई उस समय एक लाख केस रिपोर्ट हो रहे थे जो 2015 तक आते-आते 2500 ही रह गए. भारत में 2005 से 2014 के बीच डिप्थीरिया के 41,672 केस और 897 मृत्यु रिपोर्ट हुईं. इस दौरान औसतन हर वर्ष 4,167 केस सामने आए और इस दौरान मृत्यु दर 2.21 फीसदी थी. पिछले तीन वर्षों में भारत में फिर से डिप्थीरिया के केस बढ़ने लगे हैं. वर्ष 2021 में 1,768 केस रिपोर्ट हुए थे जो 2022 में बढ़कर 3,286 और 2023 में 3,850 तक पहुंच गए.
दो अगस्त को नट बस्ती में हुई पहली मौत
आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित सीधा सुल्तानपुर गांव की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 3,241 है. अधिकतर आबादी ओबीसी, दलित और मुसलमानों की है. यहां 77 घर नट समुदाय के हैं जो एक पतली सी पट्टी में बसे हुए हैं. नट बस्ती में जाने के लिए ठीक ढंग का रास्ता भी नहीं है. पोखरे की तरफ से गांव के भीतर जाने और बाहर निकलने का रास्ता बंद है तो एक रास्ते पर नाली बनाकर उसे पत्थरों से ढंककर सड़क बना दी गई है.
नट बस्ती में सबसे पहली मौत 2 अगस्त को कैश के पांच वर्षीय बेटे आतिफ की हुई. कैश के पिता शमा मोहम्मद ने बताया कि पोते आतिफ को जब गले में सूजन व बुखार के लक्षण आए तो हम लोग उसे लेकर रानी सराय स्थित निजी चिकित्सक के यहां ले गए. वहां चिकित्सक ने कुछ दवाएं दी. वहां से लौटकर घर आने के कुछ देर बाद ही आतिफ की मौत हो गई.
चार दिन बाद छह अगस्त को इसी तरह के लक्षण रोजन और गुड्डी की डेढ़ वर्षीय पुत्री कास्मिन में प्रकट हुए. गुड्डी अपनी बेटी कास्मिन को लेकर मायके सीधा सुल्तानपुर आई हुई थीं. गुड्डी की शादी मोहम्मदपुर ब्लॉक के अरारा गांव में हुई है. कास्मिन को बुखार, गले में सूजन की दिक्कत हुई तो परिजन 6 अगस्त को उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सुनहल ले जा रहे थे कि रास्ते में ही उसकी मौत हो गई.
कास्मिन की मौत के एक सप्ताह भीतर तीन और बच्चों की मौत हो गई.
मिन्हाज और अख्तरून के छह वर्षीय बेटे रेहान उर्फ अली राजा की 12 अगस्त को देर रात मौत हो गई. रेहान को सर्दी-जुकाम के साथ बुखार आया. उसे 6 अगस्त को लाहीडीह के एक निजी चिकित्सक के पास ले जाया गया. चिकित्सक ने मलेरिया की दवाएं दीं. दवा से आराम नहीं हुआ और रेहान के गले में सूजन हो गई. निजी चिकित्सक ने बच्चे को इलाज के लिए आजमगढ़ ले जाने की सलाह दी. वहां रेहान को एक निजी अस्पताल में भर्ती कर इलाज शुरू हुआ. यहां भी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.
रेहान की मां के अनुसार, पांच दिन तक वह अस्पताल में भर्ती रहा. बाद में डॉक्टर ने कोई जांच कराई और उसकी रिपोर्ट आने पर कहा कि अब हमारे वश का नहीं है, सदर अस्पताल जाइए. हम 11 अगस्त को सदर अस्पताल लेकर पहुंचे तो वहां से आजमगढ़ के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल भेज दिया गया. यहां 24 घंटे बाद 13 अगस्त की रात दो बजे रेहान की मौत हो गई.
अख्तरून द वायर हिंदी से बातचीत में सिसकते हुए बोलीं, ‘मेरा बच्चा बिस्तर पर छटपटा रहा था. उसे ऑक्सीजन दी गई. हम उसको गोद में लिए बैठे थे. हमारे गोद में ही बाबू ने दम तोड़ दिया.’
बच्चे के इलाज के लिए गहने बेच दिए, कर्ज़ लेना पड़ा
मिन्हाज और अख्तरून के आठ बच्चे है. रेहान सातवीं संतान था. उससे छोटी एक बच्ची है. अख्तरून ने कहा कि रेहान के इलाज में 50-60 हजार रुपए खर्च हो गए. बच्चे के इलाज के लिए मैंने पायल और कान का बूंदा 22 हजार रुपये में बेच दिए. ये पैसे खत्म हो गए तो लोगों से कर्ज लिया.
मिन्हाज के सबसे बड़े दो बच्चे अकबरपुर जिले के टांडा कस्बे के मदरसे में पढ़ते हैं. मिन्हाज की वहां रिश्तेदारी है. मिन्हाज याद करते हैं कि रेहान इस बार अपने बड़े भाई से जिद कर रहा था कि भैया के साथ हम भी टांडा पढ़ने जाएंगे. बड़ी मुश्किल से उसे समझाया गया कि अगली बार चले जाना. रोते हुए मिन्हाज ने कहा कि हमें क्या पता था कि कुछ दिन बाद ही रेहान को मिट्टी देनी पड़ेगी.
सुरजहना और मीरू की 3 वर्षीय बेटी साजमा की 13 अगस्त को संदिग्ध डिप्थीरिया से मौत हो गई. सुरजहना की शादी मोहम्मदपुर ब्लॉक के अरारा गांव में मीरू से हुई है. वह दो महीने पहले साजमा को लेकर मायके आई थी. सुरजहना के पिता नेकी और मां रेशमा ने बताया कि मौत के तीन दिन पहले साजमा को बुखार आया. फिर गला सूज गया. उनका छोटा बेटा शाहिद इलाज के लिए बाइक से साजमा को मिर्जापुर लेकर निकला लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई.
सुहेल के दो जुड़वा बच्चे थे- मुहम्मद और अहमद. गलघोटू बीमारी ने 12 अगस्त को अहमद से मोहम्मद को सदा के लिए अलग कर दिया. सुहेल ने बताया कि मुहम्मद को पहले गले के दाएं और फिर बाएं तरफ सूजन हुई. खाते समय उसको जलन होती थी. दो दिन बाद ऐसी स्थिति हो गई कि उसे बोलने में भी दिक्कत होने लगी. किसी तरह सांस ले पा रहा था. मैं उसे लाहिडीह कस्बे में डॉ. फैसल के क्लीनिक पर ले गया. वहां उसे इंजेक्शन लगाए. वीगो चढ़ाया. थोड़ा आराम लगा तो बच्चे को लेकर घर आ गए. आधे घंटे बाद ही उसने पत्नी अंजुम की गोद में दम तोड़ दिया.
मुहम्मद की मौत से अंजुम गहरे सदमे में है. सदमे से उबरने के लिए सुहेल ने उसे मायके भेज दिया है. सुहेल ने बताया कि अहमद अपने बड़े भाई मुहम्मद के बारे में पूछता रहता है. पांच वर्ष की बेटी भी पूछती है कि भाई कहां है. दोनों बच्चों के इस सवाल पर कलेजा मुंह को आ जाता है.
सुहेल की 10 वर्षीय बहन तरन्नुम और बेटी शैदा को भी गलघोटू के लक्षण दिखे तो वे भाग कर दोनों को मेडिकल कॉलेज ले गए. वहां भर्ती कर लिया गया लेकिन इलाज में लापरवाही दिखाई दी तो बेटी शैदा को शाम को वहां से लेते आए और सरायमीर में एक निजी चिकित्सक के यहां भर्ती किया. चार दिन इलाज के बाद दोनों ठीक हो गए. बहन तरन्नुम को लेकर उनके पिता पांच दिन तक मेडिकल कॉलेज में भर्ती रहे. तरन्नुम अब ठीक है और घर आ गई है.
पांच बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग तब सचेत हुआ जब रेहान की मृत्यु गर्वनमेंट मेडिकल कालेज, आजमगढ़ में हुई. स्वास्थ्य अधिकारियों व कर्मचारियों की टीम पहली बार 15 अगस्त को सीधा सुल्तानपुर गांव पहुंची. स्वास्थ्य टीम ने पाया कि 10 बच्चे बीमार हुए.
नट बस्ती के बुजुर्ग शमा मोहम्मद द वायर हिंदी से कहते हैं कि ‘ऐसी तावन हमने अभी तक नहीं देखा. चार पीढ़ी से हम यहां रह रहे हैं. न हैजा का तावन आया न कोरोना का. बच्चों की हो रही मौत से हम सभी हदास गए. हमें लगा कि अब कोई नहीं बचेगा.’
टीकाकरण नहीं होने को जिम्मेदार बता रहा है स्वास्थ्य विभाग
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने संक्रमण के लिए नट बस्ती के लोगों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया और कहा कि उन्होंने बच्चों का टीकाकरण नहीं कराया. मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) अशोक कुमार का बयान अखबारों में छाया हुआ है कि बस्ती के लोग टीकाकरण नहीं कराते हैं और एएनम जब टीका लगाने जाती हैं तो उसे गाली देकर भगा देते हैं.
गांव के लोग बच्चों को टीका नहीं लगवाने के आरोपों से इनकार करते हैं. मिन्हाज द वायर से कहते हैं, ‘उन्होंने रेहान को सभी टीके लगवाए थे.’ इसी तरह सुहेल भी टीका लगाने की बात कहते हैं. शमा मोहम्मद स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को बस्ती से भगाने के आरोपों को गलत बताते हैं.
गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुभावती और आशा सुशीला का भी कहना था कि नट बस्ती के लोग बच्चों को टीके नहीं लगवाते हैं. समझाने पर भी नहीं मानते. बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र पर नहीं भेजते हैं. आंगनबाड़ी कार्यकत्री सुभावती ने द वायर हिंदी को बताया कि पूरे गांव में 115 बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र में पंजीकृत हैं. नट बस्ती से तीन-चार बच्चे ही आंगनबाड़ी में आते हैं. उनका कहना था कि नट बस्ती की अपेक्षा गांव की दो दलित बस्तियों में जागरूकता अधिक है.
यह पूछे जाने पर कि नट बस्ती में ठीक से टीकाकरण नहीं होने से उच्चाधिकारियों को अवगत कराया गया था कि नहीं, और ऐसे बच्चों के टीकाकरण के लिए विशेष प्रयास क्या किए गए, वह कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सकी. इस सवाल पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) अशोक कुमार भी साफ जवाब नहीं दे सके कि जब बस्ती के लोग टीकाकरण नहीं करा रहे थे तो स्वास्थ्य विभाग ने क्या किया ?
घोर उपेक्षा की शिकार है नट बस्ती, एक दर्जन बच्चे हैं कुपोषित
सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती घोर उपेक्षा का शिकार है. सभी नट परिवार आवास, शौचालय, रसोई गैस, पेंशन योजनाओं के अलावा पेयजल सुविधाओं के हकदार हैं लेकिन पूरे नट बस्ती में एक भी सरकारी हैंडपंप नहीं है. जब से नाली बनी है, तबसे उसकी सफाई नहीं हुई थी. जब बच्चों की मौत हुई और अधिकारियों-नेताओं का दौरा हुआ, तब नाली की सफाई हुई है.
द वायर हिंदी से बातचीत में लोगों ने बताया कि दस वर्ष पहले नट बस्ती में 18 आवास मिले थे. एक – दो को छोड़ सभी झोपड़ी में रहते हैं. कई घर तो महज प्लास्टिक की आड़ हैं. मौजूदा सरकार में नट बस्ती के लोगों को आवास नहीं मिला है. चार परिवारों को शौचालय मिले हैं. तीन लोगों को रसोई गैस मिलने की बात कही जा रही है. गांव में सात वर्ष बाद बिजली जरूर आई है.
सामाजिक कार्यकर्ता तारिक शफीक ने बताया कि गांव में करीब एक दर्जन बच्चे कुपोषित हैं. एक दर्जन लोग विकलांग पेंशन के पात्र हैं लेकिन दो को ही विकलांग पेंशन मिल रही है.
नट बस्ती में आधा दर्जन ही शौचालय हैं. दलित और नट बस्ती के बीच एक सामुदायिक शौचालय जरूर है लेकिन उसमें सिर्फ दो ही टॉयलेट हैं जो दलित व नट बस्ती की आबादी के लिए नाकाफी हैं.
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सुभावती ने बताया कि आफताब का एक वर्ष का बच्चा अतिकुपोषित है. उसका वजन सिर्फ पांच किलो है. उन्हें जिले के बाल पोषण पुनर्वास केंद्र में जाने की सलाह दी गई है लेकिन वे अभी तक नहीं गए हैं.
पांच बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग ने गांव में कैंप लगाकर 160 बच्चों का टीकाकरण किया है. गांव की नट बस्ती में आयुष्मान कार्ड नहीं बने थे, उन्हें भी बनाया जा रहा है.
संक्रमण का दायरा दो और गांवों तक बढ़ा
संदिग्ध डिप्थीरिया का संक्रमण सीधा सुल्तानपुर गांव तक ही नहीं रूका बल्कि यह मिर्जापुर ब्लॉक के ही दौलतपुर गांव से होता हुआ सरायमीर ब्लॉक के फरिहा गांव तक जा पहुंचा.
दौलतपुर गांव में 22 अगस्त को नट समुदाय की एक लड़की की मौत इसी बीमारी हो गई. पिंटू की 12 वर्षीय बेटी अतीकुल का बुखार के बाद गला सूज गया. पिंटू अपनी बेटी को इलाज के लिए लाहीडीह के एक डाक्टर के पास ले गए. वहां से दवा लेकर घर आए लेकिन अतीकुल की तबियत बिगड़ती ही गई और उसी दिन उसकी मौत हो गई.
पिंटू के पिता इस्लाम ने बताया कि उसका पोता भी बीमार है. बहू उसे लेकर आजमगढ़ इलाज कराने गई है जबकि बेटा मजदूरी करने गया है.
इसी गांव के बबलू की नौ वर्षीय बेटी रजिया और उसके भाई परवेज का चार वर्षीय बेटा अब्दुल रहमान भी संदिग्ध डिप्थीरिया से संक्रमित हुए हैं.
फरिहा में अब्दुर्रहमान के पांच वर्षीय बेटे आरिस की पांच अगस्त को गलाघोंटू के लक्षणों वाली बीमारी से मौत हो गई. अब्दुर्रहमान ने बताया कि आरिस ने सबसे पहले गले में दर्द की शिकायत की थी. उसे बुखार भी आया और बहुत जल्द वह कुछ भी निगलने में असमर्थ हो गया. मैं उसे सरायमीर चौराहे पर एक डाॅक्टर के पास इलाज के लिए ले गया. डाॅक्टर ने वीगो चढ़ाया. इलाज के दौरान पांच अगस्त को दोपहर डेढ़ बजे उसकी मौत हो गई.
अब्दुर्रहमान के अनुसार, डाॅक्टर आरिस की बीमारी को समझ नहीं पाए. यदि वे जान जाते कि गलाघोंटू बीमारी है तो शायद मेरा बेटा बच जाता.
पेशे से इलेक्ट्रिशियन अब्दुर्रहमान का घर फरिहा से आजमगढ़ जाने वाली मुख्य सड़क पर ही है. वह कहते हैं कि उन्होंने सभी टीके लगवाए थे.
आरिस की मौत से अब्दुर्रहमान के घर में मातम है. अब्दुर्रहमान मोबाइल में बेटे की तस्वीर दिखाते हुए फफक कर रोने लगते हैं.
अब्दुर्रहमान के घर से थोड़ी ही दूर पर अजीम का घर है. उनकी नौ वर्षीय बेटी उम्मेमिहानी की 25 अगस्त की सुबह संदिग्ध डिप्थीरिया से मौत हो गई. अजीम के भाई फहीम ने बताया कि मिहानी को बुखार आने के बाद गले में सूजन हो गई. हम उसे मेडिकल कॉलेज ले गए. वहां से उसे वाराणसी रेफर कर दिया गया. वाराणसी पहुंचते-पहुंचते उसकी मौत हो गई.
आठ नहीं, तीन बच्चों की मौत हुई है: सीएमओ
आजमगढ़ सीएमओ डाॅ. अशोक कुमार गलाघोंटू से तीन बच्चों की ही मौत स्वीकार कर रहे हैं. द वायर हिंदी से उन्होंने कहा कि बच्चों में डिप्थीरिया के लक्षण पाए गए लेकिन जिन पांच बच्चों के नमूने जांच के लिए लखनऊ भेजे गए थे, उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई हैं. इसलिए हम इस बीमारी के बारे में और छानबीन कर रहे हैं कि ये वास्तव में क्या है.
सीएमओ के अनुसार, सीधा सुल्तानपुर गांव में लोगों के बीच टीकाकरण को लेकर कई भ्रांतिया हैं. टीकाकरण का वे विरोध भी करते रहे हैं. टीकाकरण के लिए जब भी टीम जाती है तो बच्चे गांव में नहीं मिलते क्योंकि यह घुमंतू समुदाय है. फरिहा में भी जिन बच्चों की मौत हुई है, उन्हें टीका नहीं लगा था. सीधा सुल्तानपुर में टीम भेजकर बच्चों को टीकाकरण कराया गया है.
जन प्रतिनिधियों का दौरा
पिछले एक पखवाड़े से सीधा सुल्तानपुर गांव में निजामाबाद के समाजवादी पार्टी विधायक आलम बदी, लालगंज के सांसद दरोगा सरोज, कांग्रेस के सांसद राकेश राठौर, कांग्रेस के संगठन महासचिव अनिल यादव, किसान नेता राजीव यादव दौरा कर बयान जारी कर चुके हैं. सभी नेताओं ने बच्चों की मौत के लिए जिला व स्वास्थ्य प्रशासन की ढिलाई को जिम्मेदार बताया है.
सहारनपुर के कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्ढा को पत्र लिखकर बच्चों की मौत की जानकारी देते हुए कहा है कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और जिलाधिकारी ने प्रभावित गांवों का दौरा नहीं किया है.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने 18 अगस्त को सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर लिखा, ‘उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में गलाघोंटू बीमारी से बड़ी संख्या में बच्चों की मौतें अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण व दुखद हैं. यहां के सीधा सुल्तानपुर गांव में पूरी नट बस्ती संक्रमण की चपेट में है. खबरों में कहा गया है कि गांव में बच्चों का टीकाकरण ही नहीं हुआ था. पूरे गांव में नाली और गंदगी का साम्राज्य है. उन्नाव में भी कुछ बच्चों की मौतें हुई हैं. यह लापरवाही अक्षम्य है. क्या जिन बच्चों की जान चली गई, उन्हें वापस लाया जा सकता है? मेरी राज्य सरकार से अपील है कि उपचार, साफ-सफाई की तत्काल व्यवस्था हो और पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा भी दिया जाए.’
संदिग्ध डिप्थीरिया से आठ बच्चों की मौत ने स्वास्थ्य विभाग पर कई सवाल खड़े किए हैं. आखिर क्यों सीधा सुल्तानपुर की नट बस्ती में कमजोर टीकाकरण की जानकारी होने के बाद कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया? 2 अगस्त को जब पहली बार बच्चे की मौत हुई तो स्वास्थ्य विभाग 12 दिन तक क्या करता रहा? आखिर वह तब क्यों जगा जब पांच बच्चों की मौत हो चुकी थी? नट बस्ती तक सरकारी योजनाएं अब तक क्यों नहीं पहुंची? संक्रमण का दायरा बढ़ते जाने के बाद भी सरकारी अमला उदासीन क्यों है?
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)