महाराष्ट्र चुनाव: महायुति बनाम एमवीए के इर्द-गिर्द ठहरी राजनीति में कभी भी समीकरण बदल सकते हैं

लोकसभा चुनाव से पहले तक विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी की राह कठिन दिखाई दे रही थी, लेकिन नतीजों ने राज्य के राजनीतिक समीकरण बदल डाले. सदन में लगभग 20% विधायकों वाले एमवीए ने ‘इंडिया’ गठबंधन के तले क़रीब दो-तिहाई लोकसभा सीटें (30) जीतकर सत्तारूढ़ महायुति को चिंता में डाल दिया है.

(बाएं से, क्लॉकवाइज़) उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे, अजित पवार और शरद पवार. (सभी फोटो संबंधित फेसबुक पेज)

नई दिल्ली: महाराष्ट्र चुनावी मुहाने पर खड़ा है और कभी भी विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है. लेकिन, इस बार इस राज्य का चुनाव अलग है. गठबंधन की राजनीति राज्य में काफ़ी पहले से होती आई थी, इस बार गठबंधन जटिल हैं क्योंकि दो प्रमुख क्षेत्रीय दलों (शिवसेना और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी) में हुए विभाजन के चलते उनका एक गुट सत्तापक्ष में है तो दूसरा विपक्ष में.

पिछले विधानसभा चुनाव में जहां मुख्यत: भाजपा-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधनों के बीच मुकाबला था, इस बार राज्य की राजनीति महायुति बनाम महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के इर्द-गिर्द ठहरी हुई है. दोनों ही गठबंधनों में क़रीब 8-8 सहयोगी दल हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ महायुति के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), शिवसेना (एकनाथ शिंदे), एनसीपी (अजित पवार) और एमवीए के कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे-यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार) के बीच है.

लोकसभा के नतीजों ने एमवीए के पक्ष में बदले राजनीतिक समीकरण

राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा में 2019 में भाजपा 106 सीट जीतकर सबसे बड़ा दल बनी थी. इसके सहयोगी (संयुक्त) शिवसेना को 56 सीट मिलीं और भाजपा-शिवसेना गठबंधन 161 सीट जीतकर बहुमत में था, लेकिन सत्ता में भागीदारी पर बात बिगड़ी और दोनों के रास्ते अलग हो गए. भाजपा ने 98 सीट जीतने वाले कांग्रेस (44) और एनसीपी (54) गठबंधन में फूट डाली और आधी रात एनसीपी के अजित पवार के सहयोग से देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली. हालांकि, अगले ही दिन पवार वापस पुराने गठबंधन में लौट आए, नतीजतन फडणवीस सरकार गिर गई और शिवसेना के उद्धव ठाकरे अपने वैचारिक विरोधियों कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गए.

ठाकरे अधिक सत्ता सुख नहीं भोग सके. जून 2022 में उनकी पार्टी का एक धड़ा दो-तिहाई से अधिक (39) विधायकों और 12 निर्दलीय विधायकों के साथ भाजपा से जा मिला. शिवसेना के एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में महायुति ने सरकार बना ली. इसके अगले वर्ष एनसीपी के भी क़रीब तीन-चौथाई (40) विधायक अजित पवार के नेतृत्व में एमवीए छोड़कर महायुति सरकार में जा मिले.

कानूनी मुकदमेबाजी के बाद शिवसेना और एनसीपी की कमानें क्रमश: शिंदे और पवार को मिलीं. तब शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) अस्तित्व में आईं.

लोकसभा चुनाव से पहले तक एमवीए की राह कठिन दिखाई दे रही थी, लेकिन नतीजों ने राज्य के राजनीतिक समीकरण बदल डाले. सदन में लगभग 20% विधायकों वाले एमवीए ने ‘इंडिया’ गठबंधन के तले क़रीब दो-तिहाई लोकसभा सीटें (30) जीतकर सत्तारूढ़ महायुति को चिंता में डाल दिया है.

पिछले विधानसभा चुनाव में चौथे पायदान वाली कांग्रेस ने सर्वाधिक 13 सीट जीतीं. भाजपा द्वारा टूट का शिकार ठाकरे की शिवसेना 9 और शरद पवार की एनसीपी 8 सीट जीत गए. भाजपा केवल 9 और शिवसेना का बड़ा धड़ा शिंदे गुट केवल 7 सीट जीत पाए. सर्वाधिक फजीहत अजित पवार की हुई. 40 विधायकों के साथ एनसीपी पर कब्ज़ा करने वाले अजित एक सीट जीते.

इस तरह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे एमवीए के प्रमुख घटक दलों ने सारे समीकरण उलट दिए.

महायुति में उठापटक

लोकसभा चुनाव में एनडीए तले महायुति के खराब प्रदर्शन से गठबंधन के भीतर तलवारें खिंच गईं. विशेषकर, एनसीपी भाजपा-शिवसेना नेताओं के निशाने पर है.

जुलाई में आरएसएस से जुड़ी मराठी पत्रिका ‘विवेक’ ने लोकसभा में भाजपा के खराब प्रदर्शन का जिम्मेदार एनसीपी से गठबंधन को ठहराया और लिखा, ‘भाजपा कार्यकर्ताओं को गठबंधन पसंद नहीं आया. पार्टी नेतृत्व भी यह जानता है. शिवसेना से भाजपा की साझेदारी ‘हिंदुत्व आधारित’ और ‘स्वाभाविक’ थी, लेकिन एनसीपी के साथ गठबंधन बेमेल है.’

आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने भी एक लेख में लोकसभा में भाजपा के खराब प्रदर्शन का ठीकरा एनसीपी से गठबंधन पर फोड़ा.

हाल में, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और शिवसेना नेता तानाजी सावंत ने कहा कि ‘कैबिनेट में एनसीपी मंत्रियों के पास बैठने से मुझे उल्टी आती है. मैं कट्टर शिवसैनिक हूं, जीवन में कभी कांग्रेस-एनसीपी से तालमेल नहीं बैठा पाया.’

इसके बाद, भाजपा प्रवक्ता गणेश हेक ने भाजपा-एनसीपी गठबंधन को दुर्भाग्यपूर्ण और अपवित्र बताते हुए कहा कि गठबंधन न भाजपा, न ही एनसीपी को रास आया. उन्होंने यह भी दावा किया कि ‘लोकसभा चुनाव में एनसीपी नेताओं/कार्यकर्ताओं को कांग्रेसी खेमे में देखा गया.’

इसी तरह, भाजपा नेता दिलीप देशमुख ने कहा कि भाजपा-शिवसेना सगे और एनसीपी सौतेला भाई है, जिसके कारण भाजपा कार्यकर्ताओं को बहुत नुकसान हुआ है.

गौरतलब है कि उपमुख्यमंत्री अजित पवार की जन-सम्मान यात्रा को भाजपा कार्यकर्ता काले झंडे दिखा चुके हैं.

गठबंधन में निशाने पर आए पवार ने प्रतिक्रिया में कहा, ‘मैंने पीएम मोदी, अमित शाह और फडणवीस से चर्चा की है. अगर भाजपा नेता ऐसी बातें करते रहेंगे, तो हमारे कार्यकर्ता भी मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं.’

गौरतलब है कि बीते दिनों एनसीपी (एसपी) ने दावा किया था कि भाजपा अप्रत्यक्ष तौर पर अजित पवार को गठबंधन छोड़ने के लिए कह रही है, क्योंकि उसे एहसास है कि यह गठबंधन उसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाएगा.

वहीं, भाजपा और शिवसेना के बीच भी टकराव की स्थिति दिखाई दी है, जब सेना नेता रामदास कदम ने राज्य सरकार में भाजपा के मंत्री रवींद्र चव्हाण को ‘बेकार मंत्री’ बताया और गठबंधन तोड़ने की बात कही. मामले में हस्तक्षेप करके उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को कहना पड़ा, ‘कदम ऐसी सार्वजनिक टिप्पणी करके किस गठबंधन धर्म का पालन कर रहे हैं? वह हमारे साथ बैठकर अपनी समस्याएं उठा सकते थे.’

दोनों ओर से जोड़-तोड़

जुलाई में विधान परिषद की 11 सीटों पर चुनाव में 9 सीट महायुति और 2 सीट एमवीए ने जीती हैं. दिलचस्प है कि सात कांग्रेसी विधायकों ने महायुति को वोट दिया. नतीजतन, कांग्रेस ने पिछले हफ्ते दो विधायक, जीशान सिद्दीकी और जितेश अंतापुरकर, पार्टी से बाहर निकाल दिए. अंतापुरकर भाजपा में गए, सिद्दीकी अजित पवार के करीब दिख रहे हैं.

इस बीच, शरद पवार के पुराने साथी पूर्व केंद्रीय मंत्री सूर्यकांता पाटिल और माधव किन्हाल्कर भाजपा छोड़कर फिर एनसीपी (एसपी) में आ गए हैं.

पिंपरी-चिंचवाड़ में अजित पवार खेमे के 20 से ज्यादा नेता-पदाधिकारी शरद पवार खेमे में चले गए हैं. इसी हफ्ते, कोल्हापुर राजघराने के भाजपा नेता समरजीत सिंह घाटगे एनसीपी (शरद पवार) में आ गए.

चुनाव करीब आते ही दलबदल और जोड़-तोड़ में वृद्धि तय है. शरद पवार ने विभिन्न मौकों पर कहा भी है कि अजित समर्थक विधायक हमारे संपर्क में हैं. उनके पोते और पार्टी नेता रोहित पवार के मुताबिक, ऐसे 18-19 विधायक हैं. पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख ने भी ऐसे दावे किए हैं.

शरद पवार की नजर असंतुष्ट भाजपाइयों पर भी है. स्वयं भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले कहते हैं, ‘गठबंधन सहयोगियों के बीच विवाद के कारण 5-6 संभावित उम्मीदवार दूसरे दलों में जा सकते हैं.’

इस बीच, अजित पवार शरद पवार के प्रति विनम्र दिखाई देते हैं. बीते दिनों उन्होंने कहा, ‘बहन सुप्रिया सुले के ख़िलाफ़ पत्नी को लोकसभा चुनाव लड़ाना ग़लती थी.’ वह भाजपा-शिवसेना के हमलों पर शरद पवार के बचाव में दिखे और कहा, ‘सहयोगियों को समझना चाहिए कि वे क्या कह रहे हैं. साथ बैठने पर मैं अपनी राय व्यक्त करूंगा.’

उन्होंने यह भी कहा है कि वह शरद पवार द्वारा की गई किसी भी आलोचना का जवाब नहीं देंगे.

एमवीए में मुख्यमंत्री उम्मीदवार पर खींचतान!

बीते माह उद्धव ठाकरे बोले कि एमवीए चुनाव-पूर्व सीएम उम्मीदवार तय करे, इस आधार पर निर्णय न हो कि कौन ज्यादा सीट जीतता है. इस कदम से एमवीए को नुकसान हो सकता है क्योंकि एक दल गठबंधन में अपने वर्चस्व के लिए दूसरे के उम्मीदवार को हराने का प्रयास करेगा.

उन्होंने कांग्रेस-एनसीपी (एसपी) के सुझाए नाम को भी समर्थन देने की बात कही, लेकिन इस बयान से कुछ दिन पहले ही वह अपनी पत्नी रश्मि और बेटे आदित्य के साथ कांग्रेस नेतृत्व से मिलने दिल्ली गए ताकि स्वयं की उम्मीदवारी के लिए कांग्रेस आलाकमान को मना सकें.

बहरहाल, शरद पवार ने सीएम उम्मीदवार की मांग को खारिज कर कहा है कि ‘फैसला एमवीए साझेदारों द्वारा जीतीं सीटों की संख्या पर आधारित होगा.’ पवार के शब्द ठाकरे के ठीक विपरीत हैं जिन्होंने इस दृष्टिकोण को ‘हानिकारक’ बताकर इसकी आलोचना की थी.

कांग्रेस भी पवार के साथ दिखाई दे रही है. प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले कहते हैं, ‘हम एमवीए के रूप में साथ चल रहे हैं, सीट संख्या के आधार पर चुनाव के बाद मुख्यमंत्री चुनेंगे.’ यहां तक कि उद्धव ठाकरे गुट के प्रमुख नेता संजय राउत ने भी पवार से सहमति जता दी है.

अब देखना रोचक होगा कि महाराष्ट्र की गठबंधन राजनीति आगे क्या मोड़ लेती है और महायुति में एनसीपी की उपेक्षा और एमवीए में ठाकरे की मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा के क्या परिणाम निकलते हैं?