नई दिल्ली: मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाकर्मियों की समस्याओं पर प्रकाश डालने वाली जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट पर चार साल की निष्क्रियता के लिए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को पुलिस को निर्देश दिया कि वह पूरी रिपोर्ट को देखे और अगर रिपोर्ट में कोई अपराध पाया जाता है तो कार्रवाई करे.
समिति ने दिसंबर, 2019 में राज्य सरकार के सांस्कृतिक मामलों के विभाग को रिपोर्ट सौंप दी थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने सवाल किया, ‘राज्य सरकार अब तक निष्क्रिय क्यों थी, जबकि उसे 2019 में रिपोर्ट मिली थी?’ अदालत ने कहा कि सरकार ने चार साल से अधिक समय तक रिपोर्ट को दबाए रखने के अलावा कुछ नहीं किया.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ए. मुहम्मद मुस्ताक और सीएस सुधा की पीठ ने कहा, ‘हम राज्य सरकार की निष्क्रियता से चिंतित हैं, जिसमें एफआईआर दर्ज करना भी शामिल है, जब मलयालम फिल्म उद्योग में मुद्दों पर गौर करने वाली रिपोर्ट फरवरी 2021 में राज्य पुलिस प्रमुख को सौंपी गई थी.’
जब सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि एसआईटी को अभी रिपोर्ट की पूरी कॉपी नहीं मिली है, तो अदालत ने राज्य सरकार को रिपोर्ट की अप्रकाशित कॉपी और सभी संबंधित दस्तावेज विशेष जांच दल- जिसका गठन महिला फिल्म पेशेवरों की ताजा शिकायतों की जांच के लिए किया गया है, को सौंपने का निर्देश दिया.
पीठ ने कहा, ‘एसआईटी को अपनी जांच पूरी कर लेनी चाहिए और देखना चाहिए कि क्या कोई अपराध बनता है, चाहे वह संज्ञेय हो या अन्यथा, और फिर कार्रवाई करनी चाहिए. क्या कार्रवाई की गई है, इसकी रिपोर्ट दो सप्ताह में अदालत को देनी होगी.’
पीठ ने कहा कि एक बार कार्रवाई रिपोर्ट पेश हो जाने के बाद अदालत हेमा समिति की पूरी रिपोर्ट देखेगी. अदालत ने कहा, ‘फिर हम देखेंगे कि एसआईटी की कार्रवाई न्यायोचित है या नहीं. यह शिकायतों पर पहले से शुरू की गई कार्रवाई पर किसी भी तरह का पूर्वाग्रह नहीं है.’
उल्लेखनीय है कि 19 अगस्त को हेमा समिति की रिपोर्ट जारी होने के बाद कुछ महिला पेशेवरों ने मीडिया में कहा था कि उद्योग में पुरुषों द्वारा उनका यौन शोषण किया गया था. इसके बाद राज्य सरकार ने यौन शोषण के नए आरोपों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया था. पिछले कई वर्षों में हुए शोषण की विभिन्न शिकायतों के आधार पर अब तक एसआईटी द्वारा 22 मामले दर्ज किए गए हैं.
हालांकि, एसआईटी ने हेमा कमेटी की रिपोर्ट पर गौर नहीं किया और यह भी नहीं देखा कि इसमें कोई अपराध शामिल है या नहीं. हाईकोर्ट के निर्देश के बाद अब पूरी रिपोर्ट एसआईटी के संज्ञान में होगी.
इससे पहले 22 अगस्त को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह जस्टिस हेमा समिति की पूरी, बिना संपादित रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में पेश करे. कोर्ट ने कहा था कि अगर समिति के सामने कोई संज्ञेय अपराध उजागर होता है, तो आपराधिक कार्रवाई जरूरी है या नहीं, इसका फैसला कोर्ट को करना होगा. राज्य सरकार ने सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट कोर्ट को पेश की है.
मंगलवार को जब मामला सुनवाई के लिए आया तो कोर्ट ने पूछा कि राज्य सरकार रिपोर्ट पर क्यों बैठी रही. ‘हम सरकार की खतरनाक निष्क्रियता से हैरान हैं. इस देरी को उचित नहीं ठहराया जा सकता. सरकार से न्यूनतम अपेक्षा की गई थी, उसे रिपोर्ट और उसकी सिफारिशों पर कार्रवाई करनी चाहिए थी,’ कोर्ट ने कहा.
इसमें आगे कहा गया है, ‘जब राज्य सरकार को समाज में किसी बीमारी के अस्तित्व और अपराधों के होने की जानकारी दी जाती है, तो राज्य से कम से कम क्या करने की अपेक्षा की जाती है? जब राज्य सरकार को समाज में मौजूद महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक कुछ प्रथाओं का सामना करना पड़ता है, तो सरकार को न्यूनतम क्या करना चाहिए? फरवरी, 2021 में रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद से डीजीपी ने कुछ नहीं किया. हम केरल में महिलाओं की स्थिति के बारे में चिंतित हैं, न कि केवल फिल्म उद्योग में महिलाओं के बारे में.’
पीठ सरकार के इस रुख से सहमत नहीं थी कि हेमा समिति की रिपोर्ट केवल घटनाओं का विवरण है. अदालत ने कहा, ‘आप कैसे जानते हैं कि रिपोर्ट में गवाहों को केस दायर करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. अगर उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है, तो आप कार्यवाही बंद कर सकते हैं.’
मालूम हो कि जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट आने के बाद केरल के मलयालम फिल्म उद्योग में कई नामी हस्तियों और फिल्मकारों पर यौन अपराधों के आरोप लगे हैं.