नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी अपराध में कथित संलिप्तता किसी संपत्ति के विध्वंस का आधार नहीं है और वह ऐसे विध्वंस की धमकियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता, जो ऐसे देश में अकल्पनीय हैं जहां कानून सर्वोच्च है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा, ‘ऐसे देश में जहां राज्य की कार्रवाइयां कानून के शासन द्वारा संचालित होती हैं, वहां परिवार के किसी सदस्य द्वारा किया गया उल्लंघन परिवार के अन्य सदस्यों या उनके कानूनी रूप से निर्मित आवास के खिलाफ कार्रवाई को आमंत्रित नहीं कर सकता है. अपराध में कथित संलिप्तता किसी संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है. इसके अलावा कथित अपराध को न्यायालय में उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से साबित करना होता है. न्यायालय ऐसे विध्वंस की धमकियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता, जो ऐसे देश में अकल्पनीय हैं जहां कानून सर्वोच्च है. अन्यथा ऐसी कार्रवाइयों को देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने के रूप में देखा जा सकता है.’
पीठ ने गुजरात के एक व्यक्ति की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए यह बात कही. व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि नगर निगम के अधिकारियों ने एक सितंबर, 2024 को परिवार के एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद उसके घर को गिराने की धमकी दी है.
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि इस बीच, याचिकाकर्ता की संपत्ति के संबंध में सभी संबंधित पक्षों द्वारा यथास्थिति बनाए रखी जाएगी.
याचिकाकर्ता जावेद अली महबूबमिया सैयद की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता इकबाल सैयद ने खेड़ा जिले के काठलाल गांव के राजस्व अभिलेखों का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को संबंधित भूमि का सह-स्वामी बताया गया है.
उन्होंने कहा कि 21 अगस्त, 2004 के प्रस्ताव के माध्यम से कठलाल ग्राम पंचायत ने उक्त भूमि पर आवासीय घर बनाने की अनुमति दी थी और याचिकाकर्ता के परिवार की तीन पीढ़ियां पिछले लगभग 2 दशकों से उक्त घरों में रह रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘फिर भी, जब 01.09.2024 को एक परिवार के सदस्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, तो नगर निगम के अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के परिवार के घर को गिराने की धमकी दी है.’
वरिष्ठ वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 6 सितंबर, 2024 को खेड़ा जिले के नाडियाड के डिप्टी एसपी के पास भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 333 के तहत एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें स्थिति का वर्णन किया गया था और यह स्पष्ट किया गया था कि अपराध के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कानून को अपना काम करना चाहिए, लेकिन नगर पालिका या नगर पालिका क्षेत्र में रहने वाले अन्य लोगों के पास याचिकाकर्ता के वैध रूप से निर्मित और वैध रूप से कब्जे वाले मकान/आवास को ध्वस्त करने के लिए धमकी देने या बुलडोजर का उपयोग करने जैसा कोई कदम उठाने का कोई कारण नहीं होना चाहिए.
मालूम हो कि बीते 2 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों द्वारा अपराध के आरोपी व्यक्तियों या यहां तक कि उनके परिजनों के घरों और निजी संपत्तियों को गिराने को सार्वजनिक प्रतिशोध की संभावित कार्रवाई बताते हुए सवाल उठाया था और कहा था कि कानून दोषियों के परिवारों के घरों को भी नष्ट करने की अनुमति नहीं देता.
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में कई राज्य सरकारों ने गंभीर अपराधों में शामिल लोगों के घरों और संपत्तियों को ध्वस्त किया है.