जम्मू-कश्मीर: प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी और सांसद इंजीनियर राशिद की पार्टी के बीच गठबंधन

विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के महज़ दो दिन पहले सांसद इंजीनियर राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है. एआईपी दक्षिण कश्मीर के पुलवामा और कुलगाम में जमात के उम्मीदवारों का समर्थन करेगी, वहीं जमात पूरे कश्मीर में एआईपी के उम्मीदवारों को समर्थन देगी.

इंजीनियर राशिद की पार्टी का पोस्टर. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सांसद इंजीनियर राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) और प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) ने गठबंधन में साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, ये फैसला विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के महज़ दो दिन पहले इंजीनियर राशिद और गुलाम कादिर वानी की बैठक के दौरान हुआ. वानी, उस 8 सदस्यीय जमात समिति के प्रमुख हैं जो केंद्र के साथ वार्ता में शामिल है और चुनाव लड़ने के अपने इरादे की घोषणा कर चुकी है.

इस संबंध में जमात के मुख्य चुनाव प्रभारी शमीम अहमद थोकर ने पुष्टि की कि दोनों दलों ने विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया है.

मालूम हो कि प्रतिबंधित संगठन जेईआई ने कश्मीर घाटी में नौ उम्मीदवारों को निर्दलीय के रूप से मैदान में उतारा है और घोषणा की है कि वह जैनापोरा से एक स्वतंत्र उम्मीदवार अजाज अहमद मीर का समर्थन करेंगे. पीडीपी के पूर्व विधायक मीर ने अपनी पार्टी द्वारा टिकट नहीं दिए जाने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है.

दूसरी ओर, राशिद की एआईपी ने चुनाव में कुल 34 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें 33 घाटी में और एक जम्मू में हैं. चूंकि, अवामी इत्तेहाद पार्टी चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत नहीं है, इसलिए इसके उम्मीदवार भी निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.

एआईपी के एक पदाधिकारी ने अखबार से कहा, ‘यह जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए शांति, न्याय और राजनीतिक सशक्तिकरण की खोज में संयुक्त मोर्चा बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.’

उन्होंने आगे बताया कि दोनों दलों ने कश्मीर मुद्दे को हल करने और क्षेत्र में स्थायी और सम्मानजनक शांति को बढ़ावा देने के लिए गठबंधन किया है. स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बदल रहे राजनीतिक परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए एआईपी के अधिकारी ने इस बात पर जोर दिया कि न तो जेईआई और न ही एआईपी मूकदर्शक बने रहने का जोखिम उठा सकते हैं.

जहां एआईपी दक्षिण कश्मीर के पुलवामा और कुलगाम में जमात के उम्मीदवारों का समर्थन करेगा, वहीं जमात पूरे कश्मीर में एआईपी के उम्मीदवारों का समर्थन करेगी.

इस संबंध में एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘उन क्षेत्रों में जहां एआईपी और जेईआई दोनों ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं- खासकर लंगेट, देवसर और जैनापोरा जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में- गठबंधन ‘दोस्ताना मुकाबले’ के लिए सहमत है, जबकि अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव के प्रति एकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए आपसी समर्थन बढ़ाया जाएगा.’

जमात और एआईपी ने अपने कार्यकर्ताओं से ‘समझौते के अनुरूप, एक-दूसरे के उम्मीदवारों के लिए समर्थन का संदेश प्रसार’ के लिए कहा है.

एआईपी की विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘हमारा लक्ष्य एआईपी और जेईआई उम्मीदवारों के लिए एक शानदार जीत सुनिश्चित करना है. यह सुनिश्चित करना है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के पास मजबूत प्रतिनिधि हों जो उनकी भावनाओं और आकांक्षाओं को व्यक्त कर सकें.’

जमात के एक पूर्व नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पैनल द्वारा लिए गए निर्णयों से पार्टी के भीतर पहले ही दरार पैदा हो गई है, पार्टी 2004 में भी विभाजन देख चुकी है जब हुर्रियत के संरक्षक सैयद अली शाह गिलानी ने जमात से अलग होकर तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया था.

उन्होंने कहा, ‘जमात में आंतरिक विभाजन देखे हुए लगभग दो दशक हो गए हैं. इसकी आधिकारिक तौर पर शुरुआत 1997 में हुई जब भट साहब (जमात प्रमुख) ने जमात को आतंकवाद से अलग कर दिया. पैनल उसी समूह का विस्तार है और इसके द्वारा लिए गए निर्णयों पर जमीनी कार्यकर्ताओं की मुहर नहीं होती है. राशिद के साथ हाथ मिलाने का यह ताजा फैसला कैडर को पसंद नहीं आएगा और इससे दरारें और गहरी हो सकती हैं.’

जमात और एआईपी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने गठबंधन में ‘पर्दे के पीछे’ साजिश का संकेत दिया.

वरिष्ठ पीडीपी नेता और पूर्व मंत्री नईम अख्तर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘कोई नहीं जानता कि यह कैसे हो रहा है. पहली नज़र में, यह कुछ ताकतों द्वारा प्रचारित एक असामान्य गतिविधि की तरह लगता है, लोगों को कुछ समय के लिए गुमराह किया जा सकता है लेकिन आखिर में उन्हें हर किसी की सच्चाई पता चल जाएगी. यह (गठबंधन) न तो जम्मू-कश्मीर और न ही लोकतंत्र के हित में है.’ उन्होंने कहा कि दोनों दलों ने यह सार्वजनिक नहीं किया है कि वे किस बात पर सहमत या असहमत हैं और समझौते की शर्तें क्या हैं.