तेलंगाना हाईकोर्ट के एमबीबीएस प्रवेश में स्थानीय आरक्षण संबंधी आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

तेलंगाना सरकार ने मेडिकल और डेंटल कॉलेज प्रवेश नियम, 2017 को संशोधित करते हुए कहा था कि राज्य के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के इच्छुक छात्रों को योग्यता परीक्षा से पहले राज्य में लगातार चार वर्षों तक पढ़ाई करनी होगी. हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था, जिसे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (20 सितंबर) को तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि राज्य के स्थायी निवासियों को केवल तेलंगाना के बाहर रहने या पढ़ाई करने के कारण स्थानीय कोटे की सीटों पर मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकार की अपील पर नोटिस जारी किया और उच्च न्यायालय में पेश हुए याचिकाकर्ता कल्लूरी नागा नरसिम्हा अभिराम से जवाब मांगा.

हालांकि, तेलंगाना सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने शीर्ष अदालत के समक्ष उन 135 याचिकाकर्ताओं को एक बार छूट देने पर सहमति व्यक्त की, जिन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया था.

पीठ ने कहा, अगली सुनवाई तक तेलंगाना सरकार द्वारा दिए गए बयान पर उच्च न्यायालय के पांच सितंबर, 2024 के आदेश पर रोक रहेगी.

शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के पांच सितंबर के आदेश को चुनौती देने वाली तेलंगाना सरकारी की अपील पर सुनवाई कर रही थी.

मालूम हो कि अपनी अपील में राज्य सरकार ने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट ने गलती से तेलंगाना मेडिकल और डेंटल कॉलेज प्रवेश (एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश) नियम, 2017 के नियम 3 (ए) को 2024 में संशोधित कर दिया. इस नियम में कहा गया था कि तेलंगाना मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाने के इच्छुक छात्रों को योग्यता परीक्षा से पहले राज्य में लगातार चार वर्षों तक पढ़ाई करनी होगी.

अपील में कहा गया है, ‘उच्च न्यायालय का ये आदेश इस तथ्य को नजरअंदाज करता है कि तेलंगाना राज्य के पास प्रदेश के विश्वविद्यालयों में छात्रों के प्रवेश का निर्धारण करने के लिए अधिवास (Domicile), स्थायी निवासी स्थिति आदि सहित विभिन्न आवश्यकताओं को निर्धारित करने की विधायी क्षमता है.’

बार एंड बेंच के मुताबिक, इस साल 19 जुलाई को संशोधित नियमों में सरकार ने अनिवार्य किया कि उम्मीदवारों को योग्यता परीक्षा से पहले लगातार चार साल तेलंगाना में पढ़ाई की होनी चाहिए या वहां रहे हों.

जिन उम्मीदवारों ने आंध्र प्रदेश और अन्य पड़ोसी राज्यों में अपनी इंटरमीडिएट की शिक्षा पूरी की थी और इस प्रकार स्थानीय कोटा के लाभ से वंचित थे, उन्होंने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया था. इस पर अदालत ने छात्रों के पक्ष में फैसला सुनाया और नियम को ख़ारिज कर दिया.

हालांकि, हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि इस तरह के निर्णय से पूरे भारत के छात्रों को तेलंगाना के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश का अधिकार मिल जाएगा, ने संशोधन को पूरी तरह से रद्द करने से इनकार कर दिया था. इसने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता राज्य के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए पात्र होंगे, यदि उनका निवास तेलंगाना राज्य का है या यदि वे राज्य के स्थायी निवासी हैं.

अदालत ने सरकार को यह स्वतंत्रता भी दी थी कि वह इस बारे में दिशानिर्देश या नियम बना सके कि किसी छात्र को तेलंगाना राज्य का स्थायी निवासी कब माना जा सकता है.