नई दिल्ली: देश और दुनिया के अलग-अलग विश्वविद्यालयों के 1,300 से अधिक छात्रों और संकाय सदस्यों ने बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) से 23 सितंबर को आयोजित होने वाले ‘भारत-इजरायल व्यापार शिखर सम्मेलन‘ को ‘अनुचित’ बताते हुए इसे रद्द करने का आह्वान किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, यह कार्यक्रम थिंक इंडिया, इंडियन चैंबर ऑफ इंटरनेशनल बिजनेस और मैसूर लांसर्स हेरिटेज फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया जा रहा है.
आईआईएससी के निदेशक गोविंदन रंगराजन को संबोधित एक पत्र में हस्ताक्षरकर्ताओं ने इस शिखर सम्मेलन को अनुचित बताते हुए चिंता व्यक्त की कि इसका आयोजन गाजा में इज़रायल की सैन्य कार्रवाइयों के लिए समर्थन का संकेत होगा, जो ‘नरसंहार’ और पड़ोसी देशों के खिलाफ आक्रामकता और उपनिवेशवाद को वैधता देना है.
इस पत्र में बीते साल अक्टूबर में हमास द्वारा इज़रायल पर किए गए हमले के बाद गाजा पर इज़रायली हमले से हुई तबाही का भी जिक्र है. गाजा पर इज़रायल के हवाई और जमीनी हमलों में कथित तौर पर 40,000 से अधिक फिलिस्तीनी लोग मारे गए हैं, जिनमें 16,500 बच्चे भी शामिल हैं.
लांसेट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस संघर्ष के चलते गाजा में मरने वालों की संख्या स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमान से पांच गुना अधिक हो सकती है, जो गाजा की कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत होगी.
छात्रों और शिक्षकों ने अपने पत्र में यह भी कहा कि इज़रायल ने गाजा के बुनियादी ढांचे को तबाह कर दिया है, जिसमें विश्वविद्यालय और स्वास्थ्य सुविधाएं शामिल हैं, जिससे पोलियो जैसी बीमारियां फिर से उभर रही हैं. इसमें ये भी कहा गया है कि इजराइल लेबनान में घातक पेजर विस्फोटों में कई नागरिकों की मौत के लिए भी जिम्मेदार है.
पत्र में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जुलाई के फैसले का हवाला दिया गया है, जिसमें इज़रायल द्वारा फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जे को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध माना गया था, और हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव में 12 महीने के भीतर कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों से इज़रायल को वापस जाने की मांग की गई थी.
गौरतलब है कि हाल ही में भारत ने 18 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में व्यापक रूप से समर्थन प्राप्त फ़िलस्तीन से जुड़े एक प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया था. इस प्रस्ताव में एक साल के भीतर गाजा और वेस्ट बैंक पर इजरायल के कब्जे को समाप्त करने का आह्वान किया गया था.
193 सदस्यीय महासभा में पेश प्रस्ताव के पक्ष में 124 देशों ने मतदान किया, जबकि इसके विरोध में 14 वोट पड़े. वहीं, भारत समेत 43 देशों ने मतदान नहीं किया था.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने इस मतदान में हिस्सा न लेने के लिए स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि भारत बातचीत और कूटनीति का एक मजबूत समर्थक रहा है और मानता है कि संघर्षों को हल करने के लिए इसके अलावा कोई दूसरा तरीका नहीं है. भारत का मानना है कि युद्ध से किसी की जीत नहीं नहीं होती, इसकी कीमत सिर्फ इंसानी जिंदगी और तबाही से चुकाई जाती है.
सम्मलेन के आयोजकों की सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार, इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य ‘दोनों देशों के व्यापार प्रतिनिधियों, उद्यमियों और नीति निर्माताओं को साथ लाना है, जो सहयोग के संभावित क्षेत्रों को तलाशने और उस पर चर्चा कर साझेदारी को बढ़ावा देने, तालमेल का पता लगाने और नवाचार को बढ़ावा देने पर काम करेंगे.
इसमें कहा गया है कि भारत और इजरायल के बीच द्विपक्षीय व्यापार और निवेश, रक्षा और साइबर सुरक्षा, स्टार्टअप और उद्यम पूंजी, टिकाऊ प्रौद्योगिकी और जल प्रौद्योगिकी पर चर्चा होगी.
उधर, छात्रों और शिक्षकों के पत्र में आईआईएससी से रक्षा और साइबर सुरक्षा से संबंधित चर्चाओं की मेजबानी न करने का आग्रह किया गया तथा चिंता व्यक्त की गई कि सहयोग के ये क्षेत्र इज़रायल की कार्रवाइयों को और अधिक वैध बना देंगे.
इसमें कहा गया है कि दुनिया भर के छात्रों और संकाय सदस्यों ने फिलिस्तीन के साथ एकजुटता व्यक्त की है और इज़रायल से अलग होने का आह्वान किया है. इस संदर्भ में हस्ताक्षरकर्ताओं ने आईआईएससी से इस आयोजन को रोकने और एक मंच के रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान के उपयोग की अनुमति नहीं देने के लिए कहा है.
पूरा पत्र और हस्ताक्षरकर्ताओं की विस्तृत जानकारी को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.