नई दिल्ली: चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश पर अपने क्षेत्रीय दावों को दोहराते हुए भारतीय पर्वतारोहियों की ओर से अरुणाचल प्रदेश की एक अनाम चोटी का नाम छठे दलाई लामा के नाम पर रखे जाने को लेकर गुरुवार (26 सितंबर) को नाराजगी जाहिर की.
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजिंग में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि जांगनान (अरूणाचल प्रदेश) का क्षेत्र चीनी क्षेत्र है और भारत के लिए चीनी क्षेत्र में तथाकथित ‘अरुणाचल प्रदेश’ स्थापित करना अवैध और अमान्य है. चीन का लगातार यही रुख रहा है.
मालूम हो कि चीन का ये बयान रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाले राष्ट्रीय पर्वतारोहण एवं साहसिक खेल संस्थान (एनआईएमएएस) के एक अभियान के बाद सामने आया है, जिसमें एनआईएमएएस की एक टीम ने अरुणाचल प्रदेश की एक 20,942 फीट की अनाम चोटी पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की और इसका नाम छठे दलाई लामा त्सांगयांग ग्यात्सो के नाम पर रखने का फैसला किया, जिनका जन्म 1682 में मोन तवांग क्षेत्र में हुआ था. इस चोटी को अब तक किसी ने फतह नहीं किया था.
विदेश मंत्रालय का बयान
रक्षा मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, चोटी का नाम उनके शाश्वत ज्ञान और मोनपा समुदाय तथा अन्य क्षेत्रों में उनके गहन योगदान के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में रखा गया है.
इस संदर्भ में जियान से प्रतिक्रिया मांगने पर उन्होंने कहा कि उन्हें नामकरण की कोई जानकारी नहीं है, लेकिन मैं व्यापक तौर पर यह कहना चाहूंगा कि जांगनान क्षेत्र चीन का हिस्सा है.
बता दें कि चीन अरुणाचल प्रदेश को जांगनान कहता है.
इस बीच, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस उपलब्धि के लिए एनआईएमएएस टीम को शुभकामनाएं दी हैं. उन्होंंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसे ऐतिहासिक बताते हुए लिखा कि एनआईएमएएस के निदेशक कर्नल रणवीर सिंह जामवाल के नेतृत्व में टीम ने अरुणाचल प्रदेश के मोन तवांग क्षेत्र के गोरीचेन मासिफ में 6,383 मीटर की चोटी पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की है!
Huge congratulations to Team @DirangNimas on their historic achievement!
Led by Director @imRanveerJamwal, they’ve successfully summited an untamed peak in the Gorichen Massif of Mon Tawang Region of Arunachal Pradesh, reaching an impressive 6,383 meters!
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— Pema Khandu པདྨ་མཁའ་འགྲོ་། (@PemaKhanduBJP) September 25, 2024
अरुणाचल पर क्षेत्रीय दावा
गौरतलब है कि चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत बताता है, जिसे वो जांगनान कहता है और अपने क्षेत्रीय दावों को और मजबूत करने के लिए 2017 से अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों का नाम बदल रहा है.
हालांकि, भारत यह कहते हुए चीन के दावों को खारिज करता रहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अटूट हिस्सा है. कई मौकों पर भारत ने इन क्षेत्रों के नए नाम को नकारते हुए कहा है कि बीजिंग के इस कदम से वास्तविकता नहीं बदलने वाली.
गौरतलब है कि इससे पहले इसी साल मार्च में भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अरुणाचल यात्रा पर बीजिंग की आपत्ति को खारिज कर दिया था. चीन द्वारा अक्सर भारतीय नेताओं के अरूणाचल दौरे को लेकर नाराजगी देखी गई है.
तब, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा था कि ऐसी यात्राओं पर चीन की आपत्ति से यह वास्तविकता नहीं बदलेगी कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा.
हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, चीनी रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को एक बयान जारी कर कहा कि दोनों देश मतभेदों को कम करने और पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर सैनिकों को पीछे हटाने पर कुछ आम सहमति बना पा रहे हैं.
भारतीय राजदूत के साथ चीन की बैठक भी गुरुवार के दिन ही हुई, जिसे लेकर अखबार ने बताया कि भारत और चीन ने इन लंबित मुद्दों पर अपने मतभेद को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है. बैठक में एक संभावित समाधान की रूपरेखा की खोज करना शामिल था, जिसमें अरुणाचल प्रदेश में मौजूदा मुद्दों के समाधान पर सहमति जताते हुए अप्रैल 2020 से पहले की उनकी स्थिति को ध्यान में रखा गया.
सूत्रों ने अखबार को बताया कि इस बैठक का नतीजा ये हो सकता है कि भारतीय सैनिक, जिनकी पूर्वी लद्दाख में एलएसी के कुछ गश्ती बिंदुओं तक पहुंच चीनी सैनिकों या बफर जोन के चलते सीमित हो गई थी, वह दोबारा शुरू हो जाए.
वहीं, संबंध में चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता झांग जियाओगांग ने कहा कि दोनों देश जल्द ही दोनों पक्षों को स्वीकार्य किसी समाधान पर पहुंचने पर सहमत हुए हैं.