नई दिल्ली: मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के 45 वर्षीय बेटे उदयनिधि स्टालिन को शनिवार शाम को तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री के पद पर पदोन्नत किया गया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह निर्णय कैबिनेट फेरबदल के साथ आया, जिसमें स्टालिन ने डॉ. गोवी चेझियन को उच्च शिक्षा विभाग के साथ चौथे दलित मंत्री के रूप में नियुक्त करके अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया.
राजभवन द्वारा घोषित यह निर्णय सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के भीतर चल रहे नेतृत्व एकीकरण में एक महत्वपूर्ण क्षण है. सभी नव नियुक्तों का शपथ ग्रहण समारोह 29 सितंबर को चेन्नई के राजभवन में होगा.
वर्ष 2021 में चेपाक से पहली बार विधायक बने उदयनिधि पहले युवा कल्याण और खेल विकास मंत्री के पद पर कार्यरत थे. उदयनिधि ने खुद सरकार के भीतर ‘बड़ी स्वीकृति’ हासिल करने और अपने पिता पर प्रशासनिक बोझ कम करने के लिए पदोन्नति की मांग की थी.
अखबार के अनुसार, अगस्त के आखिरी हफ़्ते में स्टालिन की अमेरिका यात्रा से पहले ही इस पदोन्नति की योजना बनाई गई थी, लेकिन कई कारणों से इसमें देरी हुई. चेन्नई में पार्टी द्वारा अपनी 75वीं वर्षगांठ हीरक जयंती मनाने के कुछ दिनों बाद डीएमके नेतृत्व को लगा कि औपचारिक घोषणा करने का समय आ गया है.
इस फेरबदल में सेंथिल बालाजी को भी राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है, जिन्हें दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने जेल से रिहा किया था. उन्हें उन विभागों के साथ वापस लाया गया है, जो उन्होंने नौकरी घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा देने से पहले संभाले थे.
बालाजी को मंत्रिमंडल में फिर से शामिल किया जाना पार्टी के भीतर एक महत्वपूर्ण रणनीतिक समायोजन के रूप में देखा जा रहा है. पार्टी के एक शीर्ष नेता ने कहा कि बालाजी को पश्चिमी तमिलनाडु जिलों की पूरी जिम्मेदारी दी जाएगी.
कैबिनेट फेरबदल में सबसे उल्लेखनीय घटनाक्रमों में से एक डॉ. गोवी चेझियान का शामिल होना है, जो उच्च शिक्षा विभाग का कार्यभार संभालेंगे. स्टालिन के कैबिनेट में अब कुल चार दलित मंत्री हैं, जो डीएमके के नेतृत्व वाले प्रशासन में व्यापक प्रतिनिधित्व की दिशा में एक कदम है. कैबिनेट में उनका प्रवेश ऐसे समय में हुआ है जब सत्तारूढ़ पार्टी अपने आधार को मजबूत करना चाहती है और राज्य में आगामी चुनावों के मद्देनजर समावेशी नेतृत्व पेश करना चाहती है.
फिर भी, इस फेरबदल के साथ पार्टी के भीतर तनाव की संभावना है. इस बात को लेकर चिंता थी कि उदयनिधि की पदोन्नति से पार्टी और कैबिनेट के भीतर सत्ता संतुलन पर क्या असर पड़ेगा.
जुलाई में पार्टी के एक दिग्गज नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, ‘जब तक ताकतवर मंत्रियों को परेशान नहीं किया जाता, तब तक कोई समस्या नहीं होगी.’ पार्टी नेतृत्व के भीतर आम सहमति यह प्रतीत होती है कि उदयनिधि के उभार का विरोध नहीं किया जाएगा, बशर्ते प्रमुख मंत्री अपने विभागों को बनाए रखें, जिससे गुटीय चुनौतियों को कम किया जा सके.
उदयनिधि का उपमुख्यमंत्री बनना ऐसे समय में हुआ है जब वे लगातार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों के केंद्र में रहे हैं.
पिछले साल उन्होंने तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स आर्टिस्ट एसोसिएशन द्वारा आयोजित ‘सनातन उन्मूलन सम्मेलन’ नामक एक कार्यक्रम में सनातन धर्म के बारे में अपनी टिप्पणी से विवाद खड़ा कर दिया था. सनातन धर्म की तुलना मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों से करते हुए उदयनिधि ने तर्क दिया कि इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह जाति व्यवस्था को कायम रखता है और सामाजिक न्याय के विचार का विरोध करता है.
इस टिप्पणी पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और आरोप लगाया कि उनके शब्द हिंदुओं के नरसंहार का आह्वान थे. महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार सहित विभिन्न राज्यों में उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए. जून में सुप्रीम कोर्ट ने उदयनिधि की टिप्पणियों की आलोचना करते हुए चेतावनी दी थी कि वह मीडिया की तरह दंड से मुक्ति का दावा नहीं कर सकते.
द न्यूज मिनट से बातचीत में उदयनिधि के आगे बढ़ने पर टिप्पणी करते हुए मद्रास विश्वविद्यालय के राजनीति और लोक प्रशासन विभाग के पूर्व प्रमुख रामू मणिवन्नन ने कहा कि डीएमके और कांग्रेस सहित राजनीतिक दलों में ‘बेटा संस्कृति’ का उदय एक आम बात होती जा रही है.
उन्होंने कहा, ‘यह बहुत चिंता की बात है कि ऐसी पदोन्नति बहुत जल्दी और बहुत तेज़ी से हो रही है. साथ ही, पार्टी में दूसरे दर्जे के नेतृत्व की अनुपस्थिति भी चिंताजनक है. उदयनिधि पार्टी में दूसरे दर्जे के नेता भी नहीं हैं. यह पदोन्नति उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने को लेकर की गई है. यह लोकतंत्र के लिए बहुत अच्छा संकेत नहीं है. पार्टी नियंत्रण के लिए इसका क्या मतलब है, इससे नया सत्ता केंद्र बनेगा.’