असम: सुप्रीम कोर्ट ने ‘बुलडोजर कार्रवाई’ को लेकर राज्य सरकार को अवमानना नोटिस जारी किया

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुलडोजर कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगाए जाने के बाद भी असम में 47 लोगों के घरों पर सरकारी आदेश से बुलडोजर चला दिए गए, जिसके बाद इन लोगों ने सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर कर इस कार्रवाई को अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: देश की शीर्ष अदालत ने ‘बुलडोजर कार्रवाई’ मामले में असम सरकार को अवमानना नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में असम सरकार से तीन हफ्तों के भीतर जवाब मांगा है और अगली सुनवाई तक यथास्थिति बरकरार रखने का भी आदेश दिया है.

एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतरिम रोक लगाए जाने के बाद भी असम के 47 निवासियों के घरों पर सरकारी आदेश से बुलडोजर चला दिए गए, जिसके बाद इन लोगों ने सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर कर अदालती आदेश के उल्लंघन का आरोप लगाया है.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने बुलडोजर कार्रवाई को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी बताया है.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को पूरे देश में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिना अदालत की अनुमति के कोई भी ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं की जाएगी. हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने यह स्पष्ट किया था कि उसका यह मामलों में लागू नहीं होगा जहां सड़कों, फुटपाथों, रेलवे पटरियों और जल निकायों पर अवैध अतिक्रमण किया गया हो.

अब याचिकाकर्ताओं का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अधिकारियों द्वारा उनके घरों को ध्वस्त कर दिया गया. साथ ही उन्होंने कहा कि असम के महाधिवक्ता ने 20 सितंबर को गुवाहाटी उच्च न्यायालय को आश्वासन दिया था कि उनकी याचिकाओं का निपटारा होने तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, फिर भी उनके घरों को तोड़ा गया.

ज्ञात हो कि ये मामला असम के कामरूप जिले के कचुटोली पथार गांव और आसपास के इलाकों में 47 घरों पर बुलडोजर की कार्रवाई से जुड़ा है, जहां इन 47 लोगों के घरों को असम के अधिकारियों ने बिना किसी पूर्व सूचना के गिरा दिया.  याचिकाकर्ताओं का कहना था कि वे ज़मीन के वास्तविक मालिकों के साथ समझौते के तहत दशकों से वहां रह रहे हैं. उन्होंने तर्क दिया कि वे सरकार द्वारा उन्हें आदिवासी भूमि के ‘अवैध कब्जाधारियों’ के रूप में वर्गीकृत किए जाने का भी विरोध करते हैं.  साथ ही कहा कि उन्होंने किसी भी कानूनी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है और उनका कब्जा मौजूदा समझौतों के तहत वैध है.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि अधिकारियों ने कानूनी प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है, जिसमें कब्जाधारियों को खाली करने के लिए एक महीने के समय के साथ बेदखली नोटिस जारी करने की आवश्यकता होती है. इसके अतिरिक्त, यह तर्क दिया गया है कि निवासियों को उचित सुनवाई का मौका दिए बिना उन्हें उनके घरों और आजीविका से वंचित कर दिया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है और जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है.