अपने कविता संग्रह ‘न्यूड’ के लोकार्पण के मौके पर फिल्मकार विशाल भारद्वाज ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित करने से रचनात्मकता को पनपने के लिए नए रास्ते मिल जाते हैं.
मुंबई: फिल्मकार विशाल भारद्वाज ने रविवार को कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने से अंतत: रचनात्मक आवाज़ों को पनपने के लिए नए रास्ते मिलते हैं.
52 वर्षीय फिल्मकार ने यहां अपनी कविता संकलन ‘न्यूड’ का विमोचन किया. इस किताब में उन्होंने समकालीन मुद्दे उजागर किए हैं. इनमें गोमांस के कारण भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या करने जैसे मुद्दे भी शामिल हैं.
इस किताब का लोकार्पण मशहूर गीतकार गुलज़ार ने किया, जो कि लंबे समय से निजी और पेशेवर तौर पर विशाल भारद्वाज से जुड़े रहे हैं. विशाल की अधिकांश फिल्मों के गीत गुलज़ार ने ही लिखे हैं.
देश के माहौल के बारे में उनका नज़रिया पूछने पर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित विशाल भारद्वाज ने कहा, ‘मुझे लगता है कि जो भी हो रहा है, वह बहुत अच्छा है. जब लोगों को एक कोने में धकेला जाता है, तो वे चिल्लाते हैं. यदि कोई आपको किनारे नहीं करता, तब आप आवाज़ बुलंद नहीं करेंगे. रचनात्मकता हमेशा तभी पनपती है, जब इसे दबाया जाता है या रोक दिया जाता है. इसलिए रचनात्मक लोगों के लिए यह सबसे अच्छा समय है.’
भारद्वाज यहां टाइम्स लिटफेस्ट-2017 के मौके पर बोल रहे थे. निर्देशक ने कहा कि पहली किताब ले कर आना उनके लिए बहुत बड़ा काम था.
उन्होंने कहा, ‘मैं खुद में बाथरूम कवि था. मैं किताब ले कर आने में बहुत संकोच कर रहा था. मेरी कविताएं नितांत व्यक्तिगत हैं. मुझे कभी नहीं लगा कि मैं अच्छा लिखता हूं.’
विशाल ने कहा, ‘इसलिये मैं बहुत झिझकता था. मैं हमेशा लोगों के साथ अपनी कविताओं को साझा करने और यहां तक कि ख़ुद को कवि कहने में बहुत झिझाकता था.’
कविताओं से इतर गीत लिखने के बारे में पूछने पर भारद्वाज ने कहा, ‘मैं इन्हें संगीत के नज़रिये से नहीं देखना चाहता. मैंने कभी अपनी कविताओं को संगीतबद्ध करने का प्रयास नहीं किया और कभी किसी से ऐसा करने के लिए कहा.’
विशाल भारद्वाज के अनुसार, किताब का नाम ‘न्यूड’ रखना उनकी पहली प्राथमिकता नहीं थी, बल्कि उन्हें यह नाम रखने की सलाह गुलज़ार ने दी थी.
विशाल ने कहा, ‘शुरुआत में किताब का नाम अ स्पाई इन माय हार्ट रखने का ख़्याल आया था, जो कि मेरी एक कविता की ही लाइन थी. लेकिन यह नाम काफी लंबा था. न्यूड शीर्षक रखने की सलाह गुलज़ार साहब ने दी थी.’
बतौर संगीतकार बॉलीवुड में कदम रखने वाले विशाल भारद्वाज अब तक चार श्रेणियों में सात राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीत चुके हैं. विशाल ने मकड़ी, मक़बूल, द ब्ल्यू अम्ब्रेला, ओंकारा, कमीने, सात ख़ून माफ़, मटरू की बिजली का मंडोला, हैदर और रंगून आदि फिल्मों का निर्देशन किया है.
आलोचकों द्वारा सराही गईं उनकी फिल्में- मक़बूल, ओंकारा और हैदर विलियम शेक्सपीयर के नाटकों- मैक्बेथ, ओथेलो और हैमलेट पर आधारित हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)