नई दिल्ली: देश के प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालयों के फैकल्टी सदस्यों ने कार्यावकाश (ड्यूटी लीव) खत्म करने और समय पर पदोन्नति (प्रमोशन) नहीं मिलने को लेकर चिंता जाहिर की है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अगस्त में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के शिक्षकों के एक समूह ने कथित तौर पर पांच साल तक लंबित पदोन्नति में ‘देरी और अनिश्चितता’ के विरोध में 24 घंटे की भूख हड़ताल की थी. इस संबंध में अब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) से एक मामला सामने आया है, जहां प्रमोशन में देरी का आरोप लगा है.
वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के फैकल्टी सदस्यों ने अधिकारियों पर ड्यूटी लीव देने से इनकार करने का आरोप लगाया है.
मालूम हो कि शिक्षकों को सम्मेलनों में पेपर प्रस्तुत करने या दूसरे शहरों में सेमिनार, वाइवा, कॉन्फ्रेंस या अन्य किसी शैक्षणिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए ड्यूटी अवकाश की आवश्यकता होती है. ये सभी काम उनके प्रमोशन के लिए भी जरूरी हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले लॉ कॉलेज, लॉ सेंटर-1 ने एक आदेश जारी कर दिसंबर तक फैकल्टी के लिए ड्यूटी लीव पर लगभग रोक लगा दी है. कई शिक्षाविदों और फैकल्टी एसोसिएशन ने इसे ‘अकादमिक विरोधी कदम’ करार दिया है.
इस संबंध में उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों का हवाला दिया है, जो शैक्षणिक कर्मचारियों को साल में 30 दिन तक की ड्यूटी छुट्टी की अनुमति देता है.
लॉ सेंटर-1 के आदेश में कहा गया है, ‘सभी को सूचित किया जाता है कि प्रभारी प्रोफेसर, लॉ सेंटर-1 के निर्देशानुसार, आपातकालीन अवकाश को छोड़कर I/III/V सेमेस्टर 24-25 के अंत तक किसी भी ड्यूटी अवकाश की सिफारिश/मंजूरी नहीं दी जाएगी. विशेष परिस्थितियों में ही इस अनुमोदन को स्वीकार किया जाएगा.’
डीयू के तहत राजधानी कॉलेज में गणित के प्रोफेसर और भारतीय राष्ट्रीय शिक्षक कांग्रेस (इंटेक) के अध्यक्ष पंकज गर्ग ने कहा कि यह आदेश शिक्षकों को हतोत्साहित करेगा.
उन्होंने द टेलीग्राफ को बताया, ‘आदेश यूजीसी नियमों का उल्लंघन करता है. ड्यूटी लीव से फैकल्टी को सम्मेलनों में भाग लेने का मौका मिलता है, जहां वे विशेषज्ञों के साथ बातचीत करते हैं और विचारों का आदान-प्रदान करते हैं.’
उन्होंने आगे बताया कि रिफ्रेशर कोर्स डोमेन ज्ञान को बढ़ाने में उपयोगी हैं. ऐसे में ड्यूटी अवकाश से इनकार का मतलब है कि फैकल्टी सदस्यों के शैक्षणिक विकास से इनकार करना है. उन्होंने आगे कहा कि इंटेक ने इस अधिसूचना वापस लेने की मांग की है.
जेएनयू की तरह ही बीएचयू के प्रोफेसरों ने भी पसंदीदा शिक्षकों की चयनात्मक पदोन्नति को लेकर सवाल उठाया है. उनका कहना है कि प्रशासन इस तरह योग्य संकाय सदस्यों को नज़रअंदाज कर रहा है.
इस विश्वविद्यालय में इतिहास और पुरातत्व के एक प्रोफेसर ने पदोन्नति से इनकार किए जाने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.
बीएचयू के एक अन्य प्रोफेसर, जो यहां पिछले 17 वर्षों से पढ़ा रहे हैं और उन्होंने वरिष्ठ प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था, ने कहा कि सभी मानदंडों को पूरा करने के बावजूद उनके प्रमोशन को अस्वीकार कर दिया गया था.
यूजीसी नियमों के तहत, एक प्रोफेसर को शैक्षणिक उपलब्धि और तीन प्रतिष्ठित विषय विशेषज्ञों की अनुकूल समीक्षाओं के आधार पर वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में पदोन्नत किया जा सकता है. इसके साथ ही उम्मीदवार को कम से कम 10 वर्षों तक प्रोफेसर के रूप में कार्य करना होता है, इस अवधि के दौरान कम से कम दो पीएचडी छात्रों का मार्गदर्शन करना होता है और कम से कम 10 पेपर प्रकाशित करने होते हैं.
प्रोफेसर ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, ‘जिस समिति ने मेरा साक्षात्कार लिया, उसमें मेरे विषय, शिक्षा से संबंधित सिर्फ एक विशेषज्ञ था, जबकि समिति के तीनों सदस्य शिक्षा विशेषज्ञ होने चाहिए थे. इस समिति का गठन गलत था.’
उन्होंने कहा कि उन्होंने सुना है कि समिति ने उन्हें पदोन्नत न करने की सलाह दी थी.
प्रोफेसर ने कहा कि अगस्त और सितंबर में हुए साक्षात्कार में बीएचयू में लगभग एक दर्जन योग्य फैकल्टी सदस्यों को वरिष्ठ प्रोफेसर के पद पर प्रमोशन से वंचित कर दिया गया था.