असम: बांग्लादेश में हालिया अशांति का हवाला देते हुए चार ज़िलों में आफस्पा की अवधि बढ़ाई गई

पड़ोसी देश बांग्लादेश में हाल ही में हुई अशांति के बाद आंतरिक क़ानून और व्यवस्था के लिए संभावित ख़तरों का हवाला देते हुए असम के चार ज़िलों - तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चराईदेव और शिवसागर में आफस्पा को छह महीने के लिए और बढ़ा दिया गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Spearcorps.Indianarmy)

नई दिल्ली: पड़ोसी देश बांग्लादेश में हाल ही में हुई अशांति के बाद आंतरिक कानून और व्यवस्था के लिए संभावित खतरों का हवाला देते हुए असम के चार जिलों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (आफस्पा) को छह महीने के लिए और बढ़ा दिया गया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार को जारी एक अधिसूचना के अनुसार, तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चराईदेव और शिवसागर जिले आफस्पा के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ के रूप में नामित रहेंगे.

यह विस्तार ऐसे समय में किया गया है जब पिछले कुछ वर्षों में राज्य की सुरक्षा स्थिति में उल्लेखनीय सुधार की खबरें सामने आई हैं.

अधिसूचना में कहा गया है कि यह प्रगति सुरक्षा बलों द्वारा लगातार चलाए गए आतंकवाद रोधी अभियानों के कारण हुई है, जो पिछले तीन वर्षों में विशेष रूप से उल्लेखनीय रही है.

हालांकि, अधिकारियों ने बांग्लादेश में अशांति के प्रभाव पर चिंता जताई, जो असम में आंतरिक सुरक्षा को कमजोर कर सकता है.

अधिसूचना में कहा गया है, ‘पड़ोसी देश बांग्लादेश में हाल ही में हुई अशांति और आंतरिक कानून और व्यवस्था पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव के कारण असम सरकार सिफारिश करती है कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम, 1958 को अगले छह महीने के लिए बरकरार रखा जाए.’

आफस्पा को विस्तारित करने का प्रस्ताव गृह मंत्रालय को प्रस्तुत किया गया, जिसने विचार-विमर्श के बाद 1 अक्टूबर, 2024 से चार जिलों में ‘यथास्थिति’ बनाए रखने का निर्णय लिया.

असम के अन्य हिस्सों से कानून को चरणबद्ध तरीके से वापस लेने के बाद ये जिले अक्टूबर 2023 से आफस्पा के अधीन हैं. आफस्पा पिछले साल जोरहाट, गोलाघाट, कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ जिलों से और पहले अतिरिक्त क्षेत्रों से हटा दिया गया था. यह अधिनियम पहली बार नवंबर 1990 में असम में लगाया गया था और इसे हर छह महीने में लगातार बढ़ाया जाता रहा है.

उल्लेखनीय है कि विवादास्पद आफस्पा अशांत क्षेत्रों में काम करने वाले सशस्त्र बलों के कर्मचारियों को अभियान चलाने और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की व्यापक शक्तियां देता है. यह सुरक्षा बलों को गिरफ्तारी और अभियोजन से छूट भी देता है.

यह सशस्त्र बलों को ‘किसी भी कानून या आदेश के उल्लंघन में काम करने वाले किसी भी व्यक्ति’ के खिलाफ ‘गोली चलाने या बल प्रयोग करने, यहां तक ​​कि उसे जान से मार देने’ का अधिकार भी देता है, अगर उन्हें लगता है कि ऐसा करना आवश्यक है. यह केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना अधिनियम के तहत कार्य करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की भी अनुमति नहीं देता है.

सरकार के रुख के बावजूद नागरिक समाज समूहों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने लगातार इस अधिनियम का विरोध किया है, इसे ‘कठोर’ करार दिया है और इस पर क्षेत्र में सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन को सक्षम करने का आरोप लगाया है.