बीते एक दशक में भारत के अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक में गिरावट आई: रिपोर्ट

दुनिया के 665 विश्वविद्यालयों के नेटवर्क 'स्कॉलर्स एट रिस्क' की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छात्रों और स्कॉलर्स की शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए सबसे गंभीर ख़तरों में सत्तारूढ़ भाजपा का राजनीतिक नियंत्रण और राष्ट्रवादी एजेंडा थोपने की कोशिश शामिल हैं.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय. (फोटो साभार: Wikimedia Commons/GS Meena/CC BY-SA 3.0)

नई दिल्ली: स्कॉलर्स एट रिस्क (एसएआर) अकादमिक स्वतंत्रता निगरानी परियोजना की ‘फ्री टू थिंक 2024’ की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में भारत में शैक्षणिक स्वतंत्रता में चिंताजनक गिरावट आई है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, एसएआर दुनिया भर में 665 विश्वविद्यालयों का एक नेटवर्क है, जो शैक्षणिक समुदायों, स्कॉलर्स और छात्रों की सुरक्षा बढ़ाने के साथ-साथ जागरूकता और समर्थन करने के प्रयास में उच्च शिक्षा के खिलाफ हमलों की जांच और रिपोर्ट करता है. इसमें कोलंबिया विश्वविद्यालय, ड्यूक विश्वविद्यालय और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय भी शामिल हैं.

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत का शैक्षणिक स्वतंत्रता सूचकांक में वर्ष 2013 और 2023 के बीच 0.6 से 0.2 अंक तक की गिरावट दर्ज की गई है और भारत अब ‘पूर्णतः प्रतिबंधित’ श्रेणी में है, जो 1940 के दशक के मध्य के बाद से इसका सबसे कम स्कोर है.

इस रिपोर्ट में 51 देशों में उच्च शिक्षा समुदायों पर हुए 391 हमलों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है, जो शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए खतरों के व्यापक वैश्विक मुद्दे पर प्रकाश डालता है. इसमें भारत, अफगानिस्तान, चीन, कोलंबिया, जर्मनी, हांगकांग, ईरान, इज़राइल, निकारागुआ, नाइजीरिया, अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र, रूस, टर्की, सूडान, यूक्रेन, ब्रिटेन और अमेरिका पर भी बात की गई है.

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छात्रों और स्कॉलर्स की शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए सबसे गंभीर खतरों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का राजनीतिक नियंत्रण और राष्ट्रवादी एजेंडा थोपने की कोशिश शामिल हैं.

इसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और साउथ एशिया विश्वविद्यालय (एसएयू) जैसे विश्वविद्यालयों में नई नीतियों द्वारा छात्रों के विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाने का भी उल्लेख किया गया है, जिससे छात्रों की अभिव्यक्ति और सक्रियता कमज़ोर हो रही है.

रिपोर्ट में केंद्र बनाम राज्य सरकारों के संघर्ष को भी रेखांकित गया है, जिसमें उच्च शिक्षा पर नियंत्रण को लेकर केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों के बीच चल रहा संघर्ष स्पष्ट है, इसमें विशेष रूप से केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पंजाब जैसे गैर-भाजपा शासित राज्य शामिल हैं.

उदाहरण के लिए, केरल में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का राज्य सरकार के साथ विश्वविद्यालयों के कई मुद्दों पर टकराव देखने को मिला था. उन्होंने विश्वविद्यालय से जुड़े विधायी संशोधनों पर सहमति रोक ली थी, जिसके तहत उन्हें राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाया जा सकता था.

इसके बाद अप्रैल 2024 में केरल सरकार ने प्रस्तावित संशोधन पर सहमति न देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील भी दायर की थी.

ये रिपोर्ट शैक्षणिक गतिविधियों पर कुछ अन्य प्रतिबंधों पर भी प्रकाश डालती है. इसमें ब्रिटेन स्थित प्रोफेसर निताशा कौल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की आलोचना के लिए भारत में प्रवेश से वंचित कर देने के मामले का भी जिक्र है.

इसके साथ ही फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए इजरायली दूतावास के बाहर प्रदर्शन कर रहे जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया और दिल्ली विश्वविद्यालय के 200 से अधिक छात्रों को हिरासत में लेने की बात भी कही गई है.

इसके अलावा रिपोर्ट में जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन का भी उल्लेख किया गया है, जिनके साथ 12 मार्च, 2024 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े कुछ छात्रों ने धक्का-मुक्की की थी.

इसमें आईआईटी, बॉम्बे में अचिन वानाइक के मामले को भी प्रमुखता से रखा गया है, जिनकी एक वार्ता को रद्द कर दिया गया था. इस वार्ता में इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के इतिहास और क्षेत्र में पिछले साल से शुरू हुई हिंसा के नतीजों पर बात होनी थी. वानाइक नामी लेखक और दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी घटनाओं के परिणामस्वरूप प्रतिबंधात्मक नीतियां बनती हैं, जो स्वतंत्र संस्थागत स्वायत्तता को सीमित तथा शैक्षणिक स्वतंत्रता को बाधित कर सकती हैं.