मणिपुर: बीरेन सिंह मंत्रिमंडल का फैसला, ग़ैर-मान्यता प्राप्त गांवों को नहीं मिलेंगे सरकारी लाभ

बीरेन सिंह कैबिनेट का ग़ैर-मान्यता प्राप्त गांवों को सरकारी लाभ से वंचित रखने का फैसला मणिपुर सरकार की उस पहल के बीच सामने आया है, जिसमें राज्य के जिलाधिकारियों से 1946 के बाद से घरों की संख्या के साथ-साथ मान्यता प्राप्त और ग़ैर-मान्यता प्राप्त गांवों की संख्या की जानकारी मांगी गई है.

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक/CMofficeManipur)

नई दिल्ली:  मणिपुर कैबिनेट ने मंगलवार (8 अक्टूबर) को मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में सरकारी योजनाओं को मान्यता प्राप्त गांवों तक सीमित रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, बीरेन सिंह सरकार का ये फैसला राज्य सरकार की उस पहल के बीच सामने आया है, जिसमें राज्य के संबंधित जिला अधिकारियों से 1946 के बाद से घरों की संख्या के साथ-साथ मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त, दोनों तरह के गांवों की संख्या के बारे में भी जानकारी मांगी गई थी.

‘गैर-पंजीकृत’ गांवों के लाभ रोकने के संबंध में सीएम बीरेन सिंह ने मणिपुर में वनों और पर्यावरण की सुरक्षा का हवाला दिया. कैबिनेट बैठक के बाद स्वास्थ्य मंत्री सपम रंजन ने संवाददाताओं से कहा कि केवल सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त गांवों को ही सरकारी योजनाएं दी जाएंगी. इसमें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) भी शामिल है. गैर-मान्यता प्राप्त गांवों में रहने वाले लोगों को ये (लाभ) नहीं दिए जाएंगे.

सरकार के प्रवक्ता रंजन ने कहा कि कोई गांव बसाकर, उसे नाम देकर उन योजनाओं का लाभ नहीं उठा सकता. उन्होंने आगे कहा कि नियमों का पालन करना जरूरी है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, मंत्री रंजन ने बताया कि मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में 51 सूचीबद्ध एजेंडा और कुछ गैर-सूचीबद्ध एजेंडा पर चर्चा की गई. इस दौरान कैबिनेट ने राज्य में अशांत क्षेत्र की स्थिति की भी समीक्षा की.

मालूम हो कि इस साल अप्रैल में सीएम बीरेन सिंह ने कहा था कि 2006 के बाद से मणिपुर में 900 से ज्यादा नए गांव बने हैं, जिनमें से ज्यादातर कुकी बहुल इलाकों में हैं. उन्होंने कहा था कि म्यांमार से ‘बेरोकटोक घुसपैठ’ ने स्थानीय समुदायों विशेषकर मेईतेई लोगों की पहचान और संस्कृति के लिए खतरा पैदा कर दिया है.

बीरेन सिंह ने तब ये भी कहा था कि कुकी लोगों द्वारा अफ़ीम की खेती पर उनकी सरकार की कार्रवाई और ‘अवैध प्रवासियों’ के बायोमेट्रिक्स का संग्रह पिछले साल मई से मेईतेई और कुकी समुदाय के बीच संघर्ष का मुख्य कारण था.

दूसरी ओर, कुकी समुदाय का कहना है कि मुख्यमंत्री लगातार कुकी लोगों को अवैध प्रवासियों के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि उन्हें निशाना बनाया जा सके और मेईतेई समुदाय के ‘जातीय हिंसा’ का समर्थन किया जा सके.

मालूम हो कि पिछले साल मई में मणिपुर में मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच शुरू हुई जातीय हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गए और 60,000 से अधिक लोग बेघर हुए हैं.

कुकी और मेईतेई लोगों के बीच तनाव बढ़ने के बाद से चूड़ाचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल जैसे कुकी-प्रभुत्व वाले जिले मेईतई-प्रभुत्व वाले घाटी जिलों से अलग ही हैं. यहां कुकी मांग कर रहे हैं कि केंद्र शासित प्रदेश जैसा ‘अलग प्रशासन’ हो, यही दोनों समुदायों के बीच के संघर्ष को समाप्त कर सकता है.

हालांकि, बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया है, जबकि कुकी-ज़ो समुदाय से संबंधित दस विधायकों ने इसका समर्थन किया है.