केरल: विधानसभा स्पीकर का हेमा समिति की रिपोर्ट पर चर्चा से इनकार, विपक्ष ने वॉकआउट किया

2017 में एक अभिनेत्री के अपहरण और यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद केरल सरकार ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की समस्याओं पर गौर करने के लिए हेमा समिति का गठन किया था. ये रिपोर्ट दिसंबर 2019 में सरकार को सौंपी गई थी, जिसे करीब पांच सालों बाद जारी किया गया.

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केरल विधानसभा भवन. (फोटो साभार: विकिपीडिया/ Rajith Mohan)

नई दिल्ली: मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाकर्मियों की बदहाल स्थिति को उजागर करती जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट इन दिनों केरल विधानसभा में विवाद का विषय बनी हुई है.

हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के संबंध में जांच की कथित कमी के मुद्दे पर विधानसभा में चर्चा करने के लिए पेश किए गए नोटिस को स्पीकर ने अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने शुक्रवार (11 अक्टूबर) को सदन से वॉकआउट कर लिया.

मालूम हो कि 2017 में एक अभिनेत्री के अपहरण और यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद केरल सरकार ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की समस्याओं पर गौर करने के लिए हेमा समिति का गठन किया था. अब सामने आई इसकी रिपोर्ट में ‘कास्टिंग काउच’ की एक घटना की भी पुष्टि भी की गई है.

जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि मलयालम फिल्म उद्योग (मॉलीवुड) में महिला अभिनेत्रियों को काम के बदले अक्सर ‘समझौता’ करने का दबाव जाता है. इस पुरुष वर्चस्ववादी उद्योग में महिला कलाकारों का यौन शोषण और उत्पीड़न करने के बाद उन्हें मुंह न खोलने की धमकी भी दी जाती है.

हेमा समिति की रिपोर्ट को लेकर विपक्षी दल यूडीएफ ने केरल सरकार का घेराव करते हुए आरोप लगाया है कि केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीएम) के नेतृत्व वाली सरकार, जस्टिस हेमा समिति द्वारा दिसंबर 2019 में सौंपी गई रिपोर्ट के निष्कर्षों पर समय से कार्रवाई करने में विफल रही.

यूडीएफ का दावा है कि केरल की वामपंथी सरकार यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार की घटनाओं के बारे में बचाव में थी और इसीलिए राज्य विधानसभा में इस पर चर्चा नहीं की जा रही थी. इसके साथ ही विपक्ष ने आरोप लगाया कि अगर सदन में महिलाओं से जुड़े इस मुद्दे पर चर्चा नहीं होती है. तो यह सदन का अपमान है.

ज्ञात हो कि क्रांतिकारी मार्क्सवादी पार्टी (आरएमपी) विधायक केके रेमा ने सदन को स्थगित करने और रिपोर्ट के निष्कर्षों पर सरकारी कार्रवाई की कथित कमी पर चर्चा करने की मांग करते हुए नोटिस दिया था. स्पीकर एएन शमसीर ने यह कहते हुए इस पर चर्चा की अनुमति देने से इनकार कर दिया कि ये मामला केरल उच्च न्यायालय में विचाराधीन है.

इस संबंध में विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने कहा, ‘स्पीकर का फैसला सदन के निर्धारित नियमों के खिलाफ है. हमारा मुख्यमंत्री से सवाल है कि महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर विधानसभा के अलावा और कहां चर्चा हो सकती है. विधानसभा कौरव सभा में बदलती होती जा रही है.’

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि रिपोर्ट में नाबालिगों के खिलाफ यौन उत्पीड़न सहित शोषण के गंभीर आरोप हैं. लेकिन इन सब की जानकारी होने के बावजूद सरकार हेमा पैनल की रिपोर्ट पर साढ़े चार साल तक बैठी रही.

उन्होंने कहा, ‘पॉक्सो अधिनियम की धारा 21 और भारतीय न्याय संहिता की धारा 199 (सी) के तहत, यौन अपराध की जानकारी होने के बावजूद अगर एफआईआर के आधार पर जांच नहीं की जाती है, तो मामला छुपाने के लिए छह महीने तक की कैद की सजा हो सकती है. इस रिपोर्ट को छिपाकर मंत्रियों और अधिकारियों ने अपराध किया है.’

इससे पहले संस्कृति मंत्री साजी चेरियन ने 9 अक्टूबर को विधानसभा को बताया था कि सरकार ने जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट इसलिए सार्वजनिक नहीं कि थी क्योंकि इसमें फिल्म उद्योग से गवाई देने वाले लोगोंं की गोपनियता बनाए रखने का मासला था, जिसके लिए सरकार चिंतित थी.

सरकार ने अब इस तक रिपोर्ट और उसमें लगे आरोपों को गंभीरता से नहीं लेने के सभी आरोपों को खारिज किया है.

मालूम हो कि अदालत के आदेश के बाद बीते 19 अगस्त को जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट जारी कर दी गई थी. ये रिपोर्ट असल में 295 पन्नों की सरकार को सौंपी गई थी, लेकिन सभी आपबीती बताने वाले कलाकारों के नाम और संवेदनशील जानकारियां हटाने के बाद 235 पन्ने की रिपोर्ट जारी की गई. समिति ने इसमें कई महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं. ये रिपोर्ट दिसंबर 2019 में सरकार को सौंपी गई थी, जिसे करीब पांच सालों बाद जारी किया गया.

रिपोर्ट में यौन शोषण, अवैध प्रतिबंध, भेदभाव, नशीली दवाओं और शराब का दुरुपयोग, वेतन में असमानता और कुछ मामलों में अमानवीय कामकाजी परिस्थिति की भयानक कहानियां बताई गई हैं.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि काम के बदले यौन संबंध (सेक्सुअल फेवर) से मना करने वाली अभिनेत्रियों को प्रोजेक्ट से बाहर निकाल दिया जाता है. अगर अभिनेत्री बात नहीं मानती, तो उनसे एक ही शॉट को बार-बार देने के लिए मजबूर किया जाता है. मलयालम फिल्म उद्योग पर कुछ बड़े निर्माता-निर्देशकों और कालाकारों का राज है, जो अपने मनमुताबिक किसी का करिअर बनाने या बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं.

रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया है कि मुट्ठी भर निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और प्रोडक्शन कंट्रोलर मिलकर एक ‘शक्तिशाली नेक्सस’ (गठजोड़) चला रहे हैं, जो पूरे सिनेमा उद्योग को नियंत्रित कर रहे हैं.

इस रिपोर्ट में मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की समस्या हल करने के लिए एक क़ानून बनाने और उसके तहत एक ट्रिब्यूनल के गठन की सिफारिश की गई है. रिपोर्ट ये भी रेखांकित करती है कि अन्य क्षेत्र जहां कार्यस्थल पर महिलाएं उत्पीड़न का शिकार होती हैं, वहीं, इस उद्योग में इसके उलट महिलाकर्मियों को किसी भूमिका के लिए चुने जाने से पहले ही दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है.

समिति ने कहा है कि ट्रिब्यूनल को एक सिविल कोर्ट के रूप में कार्य करना चाहिए और इसका नेतृत्व किसी सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश, खासकर एक महिला, जिन्हें कम से कम पांच ट्रायल का अनुभव हो, उन्हें करना चाहिए.

वहीं, नए कानून में समिति ने महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास और परिवहन विकल्प, शौचालय और चेंजिंग रूम तक पहुंच, फिल्म सेट पर नशीली दवाओं और शराब पर प्रतिबंध और विशेष रूप से जूनियर कलाकारों के लिए कार्य अनुबंधों का सख्ती से पालन करने का प्रावधान होना चाहिए.

तीन मलयालम अभिनेताओं पर केस दर्ज

गौरतलब है कि इस बीच पुलिस ने शनिवार (12 अक्टूबर) को बताया कि तीन प्रसिद्ध मलयालम अभिनेताओं पर अपने यूट्यूब चैनलों के माध्यम से एक महिला कलाकार को बदनाम करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई की खबर के मुताबिक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक अभिनेत्री की गरिमा को ठेस पहुंचाने के आरोप में टीवी-सिनेमा कलाकार बीना एंटनी, उनके अभिनेता-पति मनोज और पुरस्कार विजेता अभिनेत्री स्वासिका के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं.

नेदुम्बसेरी पुलिस के अनुसार, शिकायतकर्ता वही महिला कलाकार हैं, जिन्होंनेे हाल ही में जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट जारी होने के बाद मलयालम सिनेमा के कुछ प्रमुख अभिनेताओं के खिलाफ आरोप लगाए थे, जिसके बाद उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं.

एक पुलिस अधिकारी ने अखबार को बताया कि शिकायत में अभिनेत्री ने आरोप लगाया है कि बीना एंटनी, मनोज और स्वासिका ने बदला लेने की भावना से अपने यूट्यूब चैनलों के जरिये उनका अपमान किया क्योंकि उन्होंने जाने-माने लोगों के खिलाफ आरोप लगाए थे.

इस संबंध में पुलिस ने बताया कि तीनों अभिनेताओं के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 79 के तहत मामले दर्ज किए गए, जो ‘किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से  शब्द, इशारा या कृत्य’ को संदर्भित करता है.