जस्टिस हेमा समिति द्वारा दर्ज कई बयान संज्ञेय अपराधों को उजागर करते हैं: केरल हाईकोर्ट

मलयालम फिल्म उद्योग में यौन शोषण से जुड़े मामले पर सुनवाई कर रही केरल हाईकोर्ट की विशेष खंडपीठ ने एसआईटी को निर्देश दिया कि वह जस्टिस हेमा समिति के सामने दर्ज किए गए गवाहों के बयानों को संज्ञेय अपराधों की 'सूचना' के रूप में मानकर आगे की कार्रवाई करे.

(फोटो साभार: swarajyamag.com)

नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने सोमवार (14 अक्टूबर) को मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के यौन शोषण के आरोपों की जांच कर रही विशेष जांच दल (एसआईटी) को निर्देश दिया कि वह पैनल के सामने दर्ज किए गए गवाहों के बयानों को संज्ञेय अपराधों की ‘सूचना’ के रूप में मानकर आगे की कार्रवाई करे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले पर सुनवाई कर रही केरल हाईकोर्ट की जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस सीएस सुधा की विशेष खंडपीठ ने कहा कि उन्होंने संशोधित हिस्से सहित जस्टिस हेमा समिति की पूरी रिपोर्ट का अध्ययन किया है.

पीठ ने आगे कहा, ‘हमने पाया है कि समिति द्वारा दर्ज किए गए कई गवाहों के बयान संज्ञेय अपराधों के होने का खुलासा करते हैं. इसलिए समिति के समक्ष दिए गए बयानों को धारा 173 के तहत ‘सूचना’ के रूप में माना जाएगा. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) और एसआईटी धारा 173 (3) बीएनएसएस के अधीन आवश्यक कार्रवाई करेगी.’

मालूम हो कि बीएनएसएस की धारा 173 पुलिस की शुरुआती जांच से जुड़ी हुई है, जिसमें पुलिस को  14 दिनों के भीतर ये पता लगाना होता है कि किसी आरोपी के खिलाफ प्रथमदृष्टया मामला बनता है या नहीं. वहीं, बीएनएसएस की धारा 173(3) प्रारंभिक जांच के बाद एफआईआर दर्ज करने से जुड़ी है.

अदालत ने कहा कि इस मामले को पुलिस कानून के अनुसार जांच आगे बढ़ाएगी और इसके पूरा होने पर जांच अधिकारी तय करेंगे कि अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कोई सामग्री तैयार की गई है या नहीं. यदि नहीं, तो अधिकारी एक रेफर रिपोर्ट दाखिल करेंगे.

कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि इस मामले में गवाहों को बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.

विशेष खंडपीठ ने कहा कि अपराध दर्ज करने पर एसआईटी पीड़ितों/बचे लोगों से संपर्क करने और उनके बयान दर्ज करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी. यदि गवाह सहयोग नहीं करते हैं, और मामले को आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं है, तो धारा 176 बीएनएसएस के तहत उचित कदम उठाए जाएंगे.

अदालत ने यह भी कहा कि हेमा समिति की रिपोर्ट में फिल्म सेट और उससे जुड़े कार्यस्थलों में शराब और नशीली दवाओं के बड़े पैमाने पर उपयोग का जिक्र है. इसलिए एसआईटी इसकी भी जांच करेगी और आवश्यक कार्रवाई करेगी.

गौरतलब है कि मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाकर्मियों की बदहाल स्थिति को उजागर करती जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट इन दिनों केरल विधानसभा में भी विवाद का विषय बनी हुई है. हाल ही में इस रिपोर्ट के निष्कर्षों के संबंध में जांच की कथित कमी के मुद्दे पर विधानसभा में चर्चा करने के लिए पेश किए गए नोटिस को स्पीकर ने अनुमति देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने सदन से वॉकआउट किया था.

कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) का दावा है कि केरल की वामपंथी सरकार यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार की घटनाओं के बारे में बचाव में थी और इसीलिए राज्य विधानसभा में इस पर चर्चा नहीं की जा रही थी. इसके साथ ही विपक्ष ने आरोप लगाया कि अगर सदन में महिलाओं से जुड़े इस मुद्दे पर चर्चा नहीं होती है. तो यह सदन का अपमान है.

हालांकि, सरकार ने अब इस तक रिपोर्ट और उसमें लगे आरोपों को गंभीरता से नहीं लेने के सभी आरोपों को खारिज किया है.

ज्ञात हो कि 2017 में एक अभिनेत्री के अपहरण और यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद केरल सरकार ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की समस्याओं पर गौर करने के लिए हेमा समिति का गठन किया था.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मलयालम फिल्म उद्योग (मॉलीवुड) में महिला अभिनेत्रियों को काम के बदले अक्सर ‘समझौता’ करने का दबाव जाता है. इस पुरुष वर्चस्ववादी उद्योग में महिला कलाकारों का यौन शोषण और उत्पीड़न करने के बाद उन्हें मुंह न खोलने की धमकी भी दी जाती है.

ये रिपोर्ट दिसंबर 2019 में राज्य सरकार को सौंपी गई थी, जिसे करीब पांच सालों बाद अदालत के आदेश के बाद बीते 19 अगस्त को जारी किया गया था. ये रिपोर्ट असल में 295 पन्नों की सरकार को सौंपी गई थी, लेकिन सभी आपबीती बताने वाले कलाकारों के नाम और संवेदनशील जानकारियां हटाने के बाद 235 पन्ने की रिपोर्ट जारी की गई. समिति ने इसमें कई महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं.