नई दिल्ली: केरल विधानसभा ने सोमवार (14 अक्टूबर) को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को वापस लेने का अनुरोध किया. ये बिल मानसून सत्र में लोकसभा में पेश किया गया था, लेकिन विपक्ष की आपत्ति के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल के अल्पसंख्यक कल्याण, खेल, वक्फ और हज यात्रा मंत्री वी. अब्दुरहिमान ने इस प्रस्ताव को नियम 118 के तहत विधानसभा में पेश किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि वक्फ समवर्ती सूची का विषय है. केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नया विधेयक राज्य सरकारों और वक्फ बोर्डों से उनके अधिकार छीन लेगा. ये संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. इस प्रस्तावित विधेयक में कई प्रावधान अस्वीकार्य हैं.’
मंत्री ने आगे ये भी कहा कि संविधान से मिले मौलिक अधिकार, किसी भी धर्म को मानने की आज़ादी, संघवाद, धर्मनिरपेक्षता और संविधान में निहित लोकतांत्रिक आदर्शों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है. इसलिए, विधानसभा को सर्वसम्मति से केंद्र से वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को वापस लेने के लिए कहना चाहिए.’
इस प्रस्ताव को लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) विधायकों के समर्थन के बाद विधानसभा में पारित कर दिया गया.
मालूम हो कि राज्य विधानसभा में फिलहाल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कोई विधायक नहीं है.
इस संबंध में वायनाड जिले के कलपेट्टा से कांग्रेस विधायक टी. सिद्दीकी ने अखबार से कहा, ‘मैं सरकार द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव का तहे दिल से समर्थन करता हूं. इस विधेयक के परिणामस्वरूप देश भर में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए केवल केंद्र को अधिकृत किया जाएगा. इससे एक खतरनाक स्थिति पैदा होगी, जहां प्रत्येक राज्य में राज्यों और वक्फ बोर्डों के अधिकार छीन लिए जाएंगे.’
वहीं, केरल में भाजपा के प्रवक्ता टीपी सिंधुमोल ने कहा कि पार्टी बिल के समर्थन में केंद्र के साथ खड़ी है औ वो वक्फ परिषद में महिलाओं और सभी वर्गों के लोगों को समायोजित किए जाने के प्रावधानों का समर्थन करते हैं.
उन्होंने अखबार से कहा कि भाजपा मांग करती है कि राज्य की सभी विवादित संपत्तियों का अध्ययन कराया जाए और सही मालिकाना हक निर्धारित किया जाए.
मालूम हो कि कि इससे पहले केरल विधानसभा ने 10 अक्टूबर को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लागू करने के केंद्र के प्रस्ताव के खिलाफ भी सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था. इस प्रस्ताव में कहा गया था कि यह प्रक्रिया अलोकतांत्रिक है और इसका उद्देश्य देश के संघीय ढांचे को कमज़ोर करना है.
जेपीसी बैठक से विपक्ष का वॉकआउट
इस बीच मंगलवार (15 अक्टूबर) को वक्फ बिल पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की हुई बैठक से एक बार फिर विपक्ष के सांसदों ने वॉकआउट कर लिया. ये दूसरी बार है, जब बीते दो दिनों में विपक्षी सांसदों ने इस बैठक का बहिष्कार किया है.
विपक्ष का आरोप है कि बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर अनुचित टिप्पणी की जा रही है, जो इस समिति के सदस्य भी नहीं है. वहीं, सत्ता पक्ष समिति अध्यक्ष जगदंबिका पाल के अपमान का विपक्ष पर आरोप लगा रहा है.
मालूम हो कि इससे पहले सोमवार को भी इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पर कथित तौर पर वक्फ संपत्ति आवंटन मामले में टिप्पणी को लेकर नाराज विपक्षी सांसदों ने बैठक का बहिष्कार कर दिया था. साथ ही स्पीकर को चिठ्ठी लिखकर कमेटी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल को हटाने की मांग करने की बात भी कही थी.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, विपक्षी सांसदों ने खरगे के नाम का उल्लेख किए जाने पर आपत्ति जताई, क्योंकि वह समिति के सदस्य नहीं हैं.
सूत्रों ने अखबार को बताया कि सांसदों का मानना है कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता के खिलाफ ऐसी टिप्पणियों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
वॉकआउट करने वाले विपक्षी सांसदों में शामिल शिव सेना सांसद अरविंद सावंत ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि संसदीय समिति को नियम और निर्देशों के अनुसार चलाया जाना चाहिए. कुछ नैतिकताएं हैं. यदि इनका पालन नहीं किया गया, तो हम बहिष्कार करेंगे. हमने आज यही किया है.’
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे पर और अधिक नहीं कहना चाहते.
मालूम हो कि इससे पहले भी विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया है कि कमेटी में हितधारकों की बात नहीं सुनी जा रही है और कार्यवाही के नाम पर राजनीति की जा रही है.
लोकसभा में कांग्रेस के सचेतक (ह्विप) डॉ. मोहम्मद जावेद ने पिछले हफ्ते सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा था कि ऐसे धार्मिक संगठन जो मुस्लिम समुदाय से संबंधित नहीं हैं को बैठक के लिए आमंत्रित किया जा रहा है. उन्होंने इस पर पुनर्विचार करने की बात कही थी.
ज्ञात हो कि पिछले महीने ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, जो वक्फ विधेयक पर इस संसद की संयुक्त समिति के सदस्य भी हैं, ने उस समय विवाद खड़ा कर दिया था, जब उन्होंने समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल को लिखे एक पत्र में इस मुद्दे पर प्राप्त बड़ी संख्या में प्रतिक्रियाओं पर गंभीर चिंता जताते हुए इस मामले में अंतरराष्ट्रीय हाथ होने की आशंका जताई थी.
उन्होंने इसकी जांच गृह मंत्रालय से कराने की मांग की थी. इसके साथ ही दुबे ने इसमें जाकिर नाइक से लेकर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और चीन की कारस्तानी होने का भी संशय जताया था. उन्होंने इसे भारत की संसदीय प्रणाली में विदेशी दखल का हवाला देते इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा मानने की बात कही थी.