मुंबई: टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) एक बार फिर सुर्खियों में है. संस्थान ने अपने हैदराबाद परिसर के एक सहायक प्रोफेसर को इस महीने की शुरुआत में एक निलंबित दलित पीएचडी स्कॉलर के साथ एकजुटता दिखाने के लिए नोटिस जारी किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, सहायक प्रोफेसर अर्जुन सेनगुप्ता ने छात्र नेता और पीएचडी स्कॉलर रामदास प्रिनी शिवानंदन के समर्थन में आयोजित एक बैठक में हिस्सा लिया था. रामदास प्रिनी शिवानंदन को 18 अप्रैल को टिस प्रशासन ने ‘देश-विरोधी गतिविधियों’ के आरोप में दो साल के लिए निलंबित कर दिया था.
इस संबंध में बीते चार अक्टूबर को दिए सेनगुप्ता के भाषण का एक हिस्सा सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित हुआ, जिसके चलते कुछ दिनों के भीतर ही उन्हें 18 अक्टूबर को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया.
मालूम हो कि 4 अक्टूबर को प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (पीएसओ) और आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े छात्रों ने हैदराबाद में संस्थान के ऑफ-कैंपस स्थान पर एक सार्वजनिक बैठक का आयोजन किया था. इस बैठक में बड़ी संख्या में छात्र एकत्र हुए थे और सेनगुप्ता ने छात्रों और कर्मचारियों के बीच एकता के बारे में बात की थी.
इस बैठक में टिस में वर्तमान शैक्षणिक कामकाज से संबंधित कई मुद्दों पर चिंता जाहिर की गई. इसके साथ ही 119 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के सामने आने वाले गहरे रोजगार की अनिश्चितता का मुद्दा भी उठाया गया, जिनके पदों को टाटा एजुकेशन ट्रस्ट (टीईटी) द्वारा वित्तपोषित किया जाता है.
सेनगुप्ता, जो खुद टीईटी के तहत कार्यरत हैं, ने कार्यक्रम के दौरान संस्थान के छात्रों, शिक्षण कर्मचारियों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के बीच एकता को जरूरी बताया था.
ज्ञात हो कि इस साल जून में संस्थान ने अचानक 119 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का फैसला किया था. जैसे ही इस मामले ने तूल पकड़ा, प्रशासन ने अपना फैसला वापस ले लिया. हालांकि, 119 कर्मचारी दिसंबर के बाद से ही अपने रोजगार की स्थिति को लेकर चिंता में हैं.
इस संबंध में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने 28 जून को बड़े पैमाने पर संस्थान के मुंबई, हैदराबाद, गुवाहाटी और महाराष्ट्र के तुलजापुर कैंपस से सौ से अधिक टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की छंटनी कर दी थी. नौकरी से निकाले गए ज्यादातर कर्मचारी इस संस्थान में पिछले एक दशक से भी अधिक समय से काम कर रहे थे और यह सभी संविदा पर थे. प्रशासन के इस कदम की चौतफा आलोचना होने के बाद इस फैसले को वापस लिया गया था.
ध्यान रहे कि हाल के वर्षों में टिस उन सार्वजनिक समारोहों में भाग लेने वाले छात्रों या शिक्षकों के प्रति अधिक सख्त हो गया है, जिन्हें वह प्रशासन या भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के लिए आलोचनात्मक मानता है.
केरल के दलित समुदाय से आने वाले शिवानंदन को अप्रैल में नई दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के विरोध में भाग लेने के लिए संस्थान द्वारा निलंबित कर दिया गया था. वह वर्तमान में अदालत में अपने निलंबन आदेश के खिलाफ लड़ रहे हैं.
‘भाषण अदालती कार्यवाही की अवमानना’
सेनगुप्ता को जारी कारण बताओ नोटिस इस बात पर जोर देता है कि शिवानंदन का मामला अदालत में लंबित है और ‘न्यायालय के विचाराधीन’ है. इसलिए सहायक प्रोफेसर का एकजुटता वाला भाषण अदालती कार्यवाही के प्रति अवमाननापूर्ण है.
संस्थान ने नोटिस में यह भी दावा किया है कि पीएसओ संस्थान का ‘मान्यता प्राप्त छात्र निकाय नहीं है’ और उसका ‘झूठे बयान प्रकाशित करने का इतिहास’ रहा है.
उल्लेखनीय है कि टिस प्रशासन किसी भी प्रकार के छात्र संघ या अनौपचारिक समूहों के गठन पर नकेल कस रहा है. हालांकि, देश के शिक्षण परिसरों में छात्रों द्वारा अपने राजनीतिक झुकाव के आधार पर संगठन बनाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस तरह की सज़ा देना एक नई बात जरूर है.
सहायक प्रोफेसर सेनगुप्ता, स्कूल ऑफ जेंडर एंड लाइवलीहुड्स के फैकल्टी सदस्य हैं और उन्होंने 8 अक्टूबर को जारी अपने खिलाफ नोटिस का जवाब दिया है.
द वायर ने उनके जवाब की प्रति देखी है, जिसमें सेनगुप्ता ने कहा है कि उक्त ज्ञापन में जो कहा गया है, उसके उलट पीएसएफ के बारे में बोलने पर रोक नहीं है. इस तरह के निषेधात्मक आदेशों को कार्यवाहक रजिस्ट्रार द्वारा 19 अगस्त, 2024 को एक कार्यालय आदेश (TISS/Reg/OO/2024) में वापस ले लिया गया था.
सेनगुप्ता, जिन्हें स्वयं सहित संस्थान के 119 कर्मचारियों के अनिश्चित भविष्य पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया था, ने कॉलेज प्रशासन को अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है, ‘4 अक्टूबर, 2024 को मेरी बातचीत ने सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित उच्च शिक्षा संस्थान में चल रही शैक्षणिक चिंताओं को संबोधित किया है और इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) द्वारा ये संरक्षित है. इसके अलावा, वायरल वीडियो को सरसरी तौर पर देखने से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) में सूचीबद्ध प्रतिबंध इस मामले में लागू नहीं होते हैं.’
शिक्षण स्टाफ के अनुबंध नहीं बढ़ाए गए तो छात्र प्रभावित होंगे
यह स्थिति न केवल रोजगार बल्कि इन शिक्षकों के अधीन पढ़ने वाले छात्रों के भविष्य को लेकर भी चिंता पैदा करती है. यदि शिक्षण स्टाफ के अनुबंध नहीं बढ़ाए जाते हैं, तो छात्रों को उनके एमए शोध प्रबंध और पीएचडी थीसिस के लिए मार्गदर्शन की कमी होगी. इस चिंता को बार-बार टिस प्रशासन के साथ उठाया गया है.
कारण बताओ नोटिस के जवाब में सेनगुप्ता ने संस्थान की प्रक्रिया को ‘तथ्यात्मक रूप से निराधार, असंवैधानिक और अवैध’ बताया है. प्रशासन का आरोप है कि सेनगुप्ता ‘छात्रों को भड़का रहे थे.’ हालांकि, उन्होंने इस दावे का पुरजोर विरोध किया है.
सेनगुप्ता ने अपने जवाब में कहा है, ‘उक्त कारण बताओ नोटिस में जो आरोप लगाया गया है, उसके विपरीत और जैसा कि वीडियो को सरसरी तौर पर देखने से भी स्पष्ट है, यह पूरी तरह से झूठ है कि मैं अपनी बातचीत के दौरान किसी के लिए ‘नारेबाजी’ कर रहा था या किसी को ‘उकसा’ रहा था.’