नई दिल्ली: मणिपुर के एक प्रभावशाली मेईतेई समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटाने का आग्रह किया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, विश्व मेईतेई परिषद का कहना है कि मुख्यमंत्री हिंसा के 17 महीने बाद भी राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने में असमर्थ हैं. संगठन को उम्मीद है कि नए नेता के साथ मणिपुर में शांति और सामान्य स्थिति की वापसी हो सकती है.
मालूम हो कि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह खुद मेईतेई समुदाय से आते हैं. ऐसे में विश्व मणिपुर परिषद ने बीते साल 3 मई को राज्य में भड़की हिंसा के लिए सीएम द्वारा जिम्मेदारी न लेने की भी आलोचना की है.
संगठन ने कहा कि लोकतंत्रिक ढांचे में जवाबदेही सत्ता में बैठी सरकार के शीर्ष यानी मुख्यमंत्री की होती है और अगर वे शासन चलाने में विफल हो रहे हैं, तो उन्हें इस्तीफा देकर दूसरे को सरकार बनाने का अवसर देना चाहिए.
पत्र में ये भी कहा गया है कि मौजूदा मुख्यमंत्री की अक्षमता के कारण मणिपुर के लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. लोग अपनी ही मातृभूमि में शरणार्थी बन गए हैं. क्या वे ऐसी सरकार के हकदार नहीं हैं जो जवाबदेह और जिम्मेदार हो.
गौरतलब है कि इससे पहले मणिपुर में 19 भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायकों ने सीएम बीरेन सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उनके इस्तीफे की मांग की थी.
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, 15 अक्टूबर को दिल्ली में हुई बैठक के बाद विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर कहा है कि मुख्यमंत्री बदलना ही राज्य में हिंसा रोकने का एकमात्र रास्ता है, सिर्फ सुरक्षा बलों की तैनाती से कुछ नहीं होगा.
विधायकों का कहना था कि मणिपुर की जनता अब भाजपा सरकार पर सवाल उठा रही है, जनता का भरोसा खत्म हो रहा है. लोग राज्य में शांति और सामान्य स्थिति चाहते हैं. पत्र में मणिपुर के मौजूदा सीएम पर हिंसा रोकने में असफल रहने की भी बात कही गई है. जनता का भरोसा उन पर टूटा है. ऐसे में वे इस्तीफे की मांग कर रहे हैं.
पत्र में ये भी कहा गया है कि ये संघर्ष जितना लंबा चलेगा, एक राष्ट्र के रूप में भारत को उतना ही अधिक नुकसान होगा. केवल बातचीत और सकारात्मक पहल से ही इस तनाव को कम किया जा सकता है.
मालूम हो कि 3 मई, 2023 को कुकी और मेईतेई जातीय समुदायों के बीच भड़की हिंसा में अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. सीमावर्ती राज्य में कम से कम 60,000 लोग तब से विस्थापित हो चुके हैं, उनमें से एक बड़ा हिस्सा अभी भी राहत शिविरों में रह रहा है. इसके बाद से कई लोग अपने-अपने क्षेत्र छोड़कर मिजोरम, असम और मेघालय चले गए हैं.
साल भर से अधिक समय से चल रहे जातीय संघर्ष की जांच के लिए गठित आयोग को नवंबर 2023 से छह महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया था. अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आयोग से 20 नवंबर 2024 से पहले रिपोर्ट देने को कहा है.